Coronavirus News: बच्चों को दिए जाने वाले थाइमोसिन अल्फा से कोरोना मरीज को मौत के मुंह से बाहर खींच लाए डॉक्टर
बुजुर्ग मरीज की किडनी 75 फीसद खराब हो चुकी थी हृदय की कार्य क्षमता भी 50 फीसद रह गई थी और ब्रेन अटैक भी पड़ चुका था प्लाजमा थेरेपी दने से हालत और बिगड़ गई थी।
कानपुर, जेएनएन। कोरोना के गंभीर मरीज को मौत के मुंह से खींच कर लाने में हैलट के डॉक्टर कामयाब हुए हैं। कोरोना संक्रमित गंभीर मरीज के इलाज में डॉक्टरों का यह अभिनव प्रयोग नजीर बन गया है। कोरोना के इलाज को लेकर देश-विदेश में हुए इस तरह के अनूठे प्रयोग की चर्चा भी नहीं है। इसका शोध पत्र तैयार कर अंतरराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशन को भेजा जा रहा है। वहीं, प्राचार्य प्रो. आरबी कमल ने पूरी टीम को बधाई दी है।
लालबंगला निवासी 65 वर्षीय बुजुर्ग कोरोना संक्रमित हो गए थे। वह गंभीर स्थिति में हैलट के कोविड आइसीयू में भर्ती हुए थे। उनकी किडनी 75 फीसद खराब हो चुकी थी। हृदय की कार्य क्षमता भी 50 फीसद रह गई थी। उन्हें ब्रेन अटैक भी पड़ चुका था। उनकी कई प्रकार की जांच कराई गई। पीसीटी बढ़ा होने से स्पष्ट था कि वायरस के साथ बैक्टीरिया का इंफेक्शन भी है। क्रिटनिन तीन से ऊपर था। डॉक्टर न रेमडेसिविर चला सकते और न ही टॉक्ली जुमेब, दोनों का प्रयोग खतरे से खाली नहीं था। फेफड़े की क्षमता तेजी से घटने से शरीर में ऑक्सीजन का स्तर 75 फीसद हो गया था। ऐसे में प्लाजमा थेरेपी दी गई तो हालत बिगड़ गई। आइसीयू में वेंटीलेटर पर रखना पड़ गया।
थाइमोसिन अल्फा कारगर
एनस्थेटिक्स डॉ. चंद्रशेखर सिंह, प्रो. अनिल वर्मा और मेडिसिन के प्रो. प्रेम सिंह ने इलाज को लेकर काफी मंथन किया। बच्चों में अच्छी कोशिकाएं बनाने वाले थाइमस ग्लैंड, जो तेजी से बैक्टीरिया व वायरस को खत्म कर कोशिकाओं को ठीक करती है। इसे ध्यान में रखते हुए थाइमोसिन अल्फा इंजेक्शन लगाने पर सहमति बनी। इंजेक्शन बाहर से मंगाने के लिए स्वजनों से बात की गई। वह तैयार हो गए। छह इंजेक्शन का कोर्स 84 हजार रुपये का था। दो इंजेक्शन लगते ही तेजी से सुधार शुरू हो गया। तीसरी थेरेपी के बाद आइसीयू से बाहर आ गए। वेंटीलेटर हट गए, फेफड़े की क्षमता 98 फीसद पर पहुंच गई।
- मरीज के बचने की उम्मीद छोड़ चुके थे। अंतिम प्रयास के रूप में लखनऊ से इंजेक्शन मंगाकर लगाने के बाद तेजी से सुधार हो गया। रिपोर्ट निगेटिव आने पर उन्हें शुक्रवार को कोविड से हटाकर दूसरे वार्ड में शिफ्ट कर दिया है। इस प्रयोग की देश-विदेश में कहीं चर्चा नहीं है। -डॉ. चंद्रशेखर सिंह, नोडल अफसर न्यूरो साइंस सेंटर कोविड आइसीयू