पर्ची कटाने के बाद शव को घाट पर रखकर चले जाते परिवार वाले, अंतिम संस्कार नहीं करते इंतजार
कोरोना ने जिंदगी ही रिश्तों का भी कत्ल किया है। कोरोना संक्रमितों के शवों को लेकर आने वाले बिना इंतजार किए लौट जा रहे हैं। नंबर आने पर स्वजन के न होने पर शवदाह के कर्मचारी अंतिम संस्कार करा रहे हैं।
कानपुर, [राहुल शुक्ल]। कोरोना सिर्फ लोगों को ही नहीं रिश्तों की भी जान ले रहा है। जो लोग एक दूसरे के लिए प्राण न्योछावर करने का दम भरते थे, वह आज अंतिम विदाई देने से भी कतरा रहे हैं। रिश्ते तार-तार हो रहे हैं। रिश्तेदार और दोस्त तो दूर सगे संबंधी तक शवों को विद्युत शवदाह गृह में पर्ची कटा छोड़कर चले जा रहे हैं। वे अस्थियां लेना तो दूर अंतिम संस्कार का भी इंतजार नहीं कर रहे। घंटों इंतजार करने के झंझट से बचने के लिए लावारिस की तरह शव को छोड़ देते हैं। टोकन नंबर आने पर किसी के न आने पर शवदाह गृह के कर्मचारी शव को उठाकर उसका अंतिम संस्कार कराते हैं। रोज ही विद्युत शवदाह गृह में लोग अपनों के शव छोड़कर चले जाते हैं। इसकी हकीकत जानने के लिए ये तीन मामले काफी हैं..।
केस एक : सफीपुर चकेरी के रहने वाले वीरेंद्र कोरोना संक्रमित अपने पिता अरविंद सिंह का अंतिम संस्कार कराने भैरोघाट विद्युत शवदाह गृह आए थे। पर्ची कटाकर छोड़ गए। नंबर आने पर कर्मचारियों ने टोकन नंबर से बुलाया तो कोई नहीं आया। बाद में कर्मचारियों ने शव को मशीन में रखवाकर अंतिम संस्कार किया।
केस दो : श्यामनगर के रहने वाले कृष्ण अपने पिता विद्याशंकर का अंतिम संस्कार कराने भैरोघाट विद्युत शवदाह गृह आए थे। रजिस्टर में नाम व पता लिखाकर पर्ची लेकर चले गए। शव को विद्युत शवदाह गृह के परिसर में रखकर चले गए। साथ में आए लोग भी चले गए। बाद में कर्मचारियों ने अंतिम संस्कार कराया।
केस तीन : महरपुर कन्नौज के गुरु प्रसाद ने अपने रिश्तेदार दिनेश चंद्रा का अंतिम संस्कार कराने के लिए इंतजार तक नहीं किया। एंबुलेंस से शव को लेकर आए और भैरोघाट विद्युत शवदाह गृह में टोकन कटाकर शव को किनारे रखकर चले गए। इसके बाद कोई अस्थियां तक लेने नहीं आया।