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Chitrakoot Case: निलंबित जेई को आज दिल्ली लेकर जाएगी CBI , अदालत ने मंजूर की सात दिन की रिमांड

सीबीआइ की तरफ से सहायक शासकीय अधिवक्ता मनोज दीक्षित और बचाव पक्ष के अधिवक्ता देवदत्त त्रिपाठी ने बहस की। अदालत ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद शाम करीब चार बजे फैसला सुनाया। रिमांड अवधि सात से 13 जनवरी तक आरोपित सीबीआइ टीम की अभिरक्षा में रहेगा।

By Akash DwivediEdited By: Published: Wed, 06 Jan 2021 08:03 PM (IST)Updated: Wed, 06 Jan 2021 08:03 PM (IST)
Chitrakoot Case: निलंबित जेई को आज दिल्ली लेकर जाएगी CBI , अदालत ने मंजूर की सात दिन की रिमांड
रिमांड अवधि सात से 13 जनवरी तक आरोपित सीबीआइ टीम की अभिरक्षा में रहेगा

कानपुर, जेएनएन। बुधवार को अपर सत्र न्यायाधीश पंचम मो. रिजवान अहमद ने निलंबित जेई की जांच दिल्ली स्थित एम्स में कराने को लेकर सात दिन की रिमांड मंजूर कर दी है। सीबीआइ टीम उसे गुरुवार सुबह बांदा जेल से लेकर दिल्ली के लिए रवाना होगी।सीबीआइ टीम ने आरोपित निलंबित जेई की मानसिक, शारीरिक और वॉयस जांच कराने के लिए दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ले जाने को लेकर अदालत में तीन अर्जियां दाखिल की थीं। बुधवार दोपहर सीबीआइ के डिप्टी एसपी अमित कुमार के नेतृत्व में टीम कोर्ट पहुंची। अदालत में सुनवाई के दौरान सीबीआइ की तरफ से सहायक शासकीय अधिवक्ता मनोज दीक्षित और बचाव पक्ष के अधिवक्ता देवदत्त त्रिपाठी ने बहस की। अदालत ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद शाम करीब चार बजे फैसला सुनाया। रिमांड अवधि सात से 13 जनवरी तक आरोपित सीबीआइ टीम की अभिरक्षा में रहेगा। 

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उल्लेखनीय है कि चित्रकूट के कर्वी में सिंचाई विभाग में तैनात निलंबित जेई रामभवन को 50 से अधिक बच्चों बच्चों का यौन शोषण करके अश्लील वीडियो व फोटो बेचने के आरोप में सीबीआइ ने 16 नवंबर को बांदा से गिरफ्तार किया था। साक्ष्यों के आधार पर उसकी पत्नी दुर्गावती को भी 28 दिसंबर को गिरफ्तार करके जेल भेजा जा चुका है। दोनों वर्तमान में बांदा जेल में बंद हैं।  

इनका ये है कहना 

  • सीबीआइ की तीन अर्जियों पर अदालत ने सात दिन की रिमांड मंजूर की है। बचाव पक्ष के अधिवक्ता को भी अपने खर्चे पर साथ जाने की अनुमति दी गई है।             

                                                                                  मनोज दीक्षित, सहायक शासकीय अधिवक्ता  

  • सीबीआइ दिल्ली के बजाय कानपुर या आगरा में भी जांच करा सकती थी। बेवजह परेशान करने को लेकर ये कदम उठाया गया है।   

                                                                                   देवदत्त त्रिपाठी, बचाव पक्ष के अधिवक्ता


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