Dangal Girl ज़ायरा से मिलती-जुलती है यूपी की 'नाज फातिमा' की कहानी, पढ़कर आप भी करेंगे आश्चर्य
Heartbreaking Story of Naaz Fatima कानपुर में कौशल विकास मिशन के तहत मॉडल ड्राइविंग ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट एंड रिसर्च सेंटर में प्रशिक्षण के लिए चयनित 27 युवतियों व महिलाओं में फर्रुखाबाद जिले की नाज भी शामिल थीं। उनके सामने सूबे की पहली महिला बस चालक बनने का सुनहरा अवसर भी था।
कानपुर, [विजय प्रताप सिंह]। Heartbreaking Story of Naaz Fatima आपको दंगल फिल्म तो याद ही होगी। नारी सशक्तीकरण को बढ़ावा देने वाली इस फिल्म में गीता फोगाट का किरदार निभाने वाली जायरा वसीम ने अभिनय से दुनिया में शोहरत पाई। फिल्म में काम करने से पहले उन्हें माता-पिता के विरोध का सामना करना पड़ा था। गनीमत रही कि उनके विद्यालय के प्राध्यापक के समझाने पर माता-पिता राजी हुए। जायरा को पांच से 18 वर्ष आयु वर्ग में शिक्षा, संस्कृति, कला, खेल, संगीत आदि क्षेत्रों में असाधारण क्षमता के साथ उच्च उपलब्धि के लिए नवंबर-2017 में राष्ट्रीय बाल पुरस्कार मिला। बंदिशों और दबाव में उन्हें अभिनय का उभरता करियर छोड़ना पड़ा, हालांकि उन्होंने वीडियो जारी कर खुद अभिनय को अलविदा करने की बात कही थी। हम इस कहानी को केवल इसलिए बता रहे हैं, क्योंकि प्रदेश की पहली मुस्लिम महिला बस चालक बनने की राह पर चलीं फर्रुखाबाद निवासी नाज फातिमा के साथ कुछ ऐसा ही वाकया हुअा। बस, दाेनों की कहानी में फर्क इतना है कि दंगल गर्ल जायरा ने धार्मिक कारणों का हवाला देते हुए प्रोफेशन छोड़ा और फर्रुखाबाद की बेटी ने पारिवारिक रजामंदी का कारण देते हुए सपने को अधूरा छोड़ दिया।
कानपुर से प्राप्त करना चाहती थीं प्रशिक्षण: राजेपुर सराय मेंदा गांव निवासी नाज रोडवेज पिंक बस की स्टीयरिंग थामकर महिलाओं की अगुआकार बनने को बेताब थीं। कौशल विकास मिशन के तहत कानपुर के विकास नगर स्थित मॉडल ड्राइविंग ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट एंड रिसर्च सेंटर में प्रशिक्षण के लिए चयनित 27 युवतियों व महिलाओं में नाज भी थीं। उन्होंने पहली मार्च से शुरू हुई डेमो क्लास में भाग लिया। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर प्रशिक्षण की शुरुआत में वह नहीं पहुंचीं। पता चला कि दुर्घटना की वजह से वे नहीं आ सकी हैं। बाद में पता चला कि मां व भाई की मर्जी के मुताबिक प्रशिक्षण लेने से पीछे हट गईं। पारिवारिक बंदिशों में करियर शुरू होने से पहले ही थम गया। कोर्स पूरा कर दो साल बाद वह स्टीयरिंग संभालतीं तो लड़कियों के लिए प्रेरणास्रोत बनतीं, लेकिन उनका बस चालक बनने का ख्वाब अधूरा रह गया।
अब स्वास्थ्य विभाग में नौकरी का बनाया प्लान: दरअसल, नाज को जायरा की तरह कोई मददगार प्राध्यापक नहीं मिला। जो उनकी मां हदीशा बेगम और भाई अहमद मुस्तफा को समझा पाता। स्वजन का मानना है कि बस चलाने का काम पुरुषों का है। बेटी को ये काम नहीं करने देंगे। मां और भाई की मंशा भांपकर नाज ने नौकरी ठुकरा दी। वह 10 मार्च को ज्वाइनिंग लेने नहीं गईं। नाज कहती हैं कि बड़े भाई और मां की इच्छा विरुद्ध नौकरी नहीं करूंगी। उन्होंने बीएससी व जीएनएम (नर्सिंग कोर्स) किया है, इसलिए स्वास्थ्य विभाग में नौकरी का प्रयास करेंगी।
10 साल पहले हो चुका पिता का इंतकाल: नाज के अलावा घर में चार बहनें और भी हैं। इनमें तीन की शादी हो चुकी है। मां-भाई के अलावा छोटी बहन दुआ फातिमा संग कस्बे में रहती हैं। भाई लोहे का व्यापार करते हैं। पिता टीएच कुरैशी आरपी इंटर कालेज में शिक्षक थे। 10 वर्ष पूर्व उनका इंतकाल हो चुका है।
स्वजन की सुनिए: नाज फातिमा के बहनोई मो. खालिद बताते हैं कि नाज ने जब नौकरी के लिए आवेदन किया था तो किसी को नहीं मालूम था कि ये ड्राइवर की नौकरी है। नाज के भाई और मां को जानकारी हुई तो उन्होंने नौकरी से रोक दिया। उनका कहना है कि यह काम पुरुषों का है।
क्या कहता है समाज:
- प्रशिक्षण न लेना नाज का निजी फैसला है। दायरे में रहकर मुस्लिम लड़कियां आगे बढऩा चाहें तो हर्ज नहीं है। शिक्षा, स्वास्थ्य, इंजीनियरिंग सहित हर क्षेत्र में लड़कियां उपस्थिति दर्ज करा रही हैं। नाज प्रशिक्षण पूरा कर लेतीं तो उन्हें प्रदेश की पहली मुस्लिम बस चालक होने का गौरव मिलता। - अजरा, अध्यक्ष, तहारत मंच महिला विंग
- वर्तमान समय में मुस्लिम लड़कियां स्कूटी से लेकर कार तक चला रही हैं। नाज अगर प्रशिक्षण पूरा कर लेतीं तो पिंक बस चलाना अपने आप में एक उपलब्धि होती। - तराना शरफुद्दीन, प्रदेश अध्यक्ष, महिला मुस्लिम समाज