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दिल, गुर्दे और लिवर का हाल बताएगी थ्री-डी प्रिंटिंग मशीन, इलाज होगा और आसान

एचबीटीयू के मैकेनिकल इंजीनियरिंग के छात्र ने तैयार की है विश्वविद्यालय और मेडिकल कॉलेज के बीच जल्द करार होगा।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Published: Sat, 11 Jul 2020 11:54 AM (IST)Updated: Sat, 11 Jul 2020 02:13 PM (IST)
दिल, गुर्दे और लिवर का हाल बताएगी थ्री-डी प्रिंटिंग मशीन, इलाज होगा और आसान
दिल, गुर्दे और लिवर का हाल बताएगी थ्री-डी प्रिंटिंग मशीन, इलाज होगा और आसान

कानपुर, जेएनएन। हरकोर्ट बटलर टेक्निकल यूनिवर्सिटी (एचबीटीयू) के छात्रों ने थ्री-डी प्रिंटिंग मशीन तैयार की है। इससे दिल, गुर्दे, लिवर, पित्त की थैली और शरीर के अंदरूनी हिस्सों की समस्याओं का पता लगाना आसान होगा। डॉक्टर संबंधित अंग के रोग की पूरी जानकारी मिलने से इलाज और ऑपरेशन ठीक ढंग से कर सकेंगे। थ्री-डी प्रिंटिंग पर आधारित होने से इस्तेमाल के कुछ ही मिनटों में शरीर के अंदरूनी अंगों का मॉडल बनने से रोग को समझा जा सकेगा। इसका जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों के साथ रोगियों पर इस्तेमाल किया जाएगा। इसके लिए विश्वविद्यालय और मेडिकल कॉलेज के बीच जल्द ही करार होगा।

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विश्वविद्यालय के मैकेनिकल इंजीरियरिंग के एसोसिएट प्रो जितेंद्र भाष्कर के निर्देशन में छात्रों ने रीढ़, गले की हड्डी, न्यूरो और शरीर के जोड़ वाले हिस्सों की समस्या को देखने के लिए थ्री-डी प्रिंटिंग मशीन बनाई थी। यह मशीन सीटी स्कैन, एमआरआइ की सहायता से थर्मो प्लास्टिक के महीन तारों को पिघलाकर हड्डी के रूप में तैयार कर सकते थे। अबकी बार एमटेक अंतिम वर्ष के प्रदीप यादव, अर्पित सिंह, रिसर्च एसोसिएट कमल सिंह ने मिलकर थर्मो सेटंग प्लास्टिक की मदद से शरीर के अंदरूनी अंगों के मॉडल तैयार किए हैं। थर्मो प्लास्टिक को पिघलाकर रूप परिवर्तित किया जा सकता है, जबकि थर्मो सेटिंग प्लास्टिक हमेशा अपने ही रूप में रहती है।

दिल में छेद और लिवर की समस्या चलेगी पता

विशेषज्ञों के मुताबिक यह मशीन अल्ट्रावायलेट रेंज पर आधारित रहती है, जिसकी इमेज सीटी स्कैन और एमआरआइ की रिपोर्ट को सर्च करके मॉडल बना सकती है। दिल में छेद, लिवर की सूजन, गुर्दों में पथरी आदि का मॉडल के रूप में पता लग सकेगा।

टीईक्यूआइपी ने किया सहयोग

प्रो. जितेंद्र भाष्कर ने बताया कि मशीन को तैयार करने में टेक्निकल एजूकेशन क्वालिटी इंप्रूवमेंट प्रोग्राम (टीईक्यूआइपी) की ओर 1.80 लाख रुपये का फंड मिला था। इस तकनीक की बाजार में काफी महंगी मशीनें आती हैं, लेकिन यह 40 से 50 हजार के बीच में तैयार हुई है। स्वास्थ्य क्षेत्र में इसका बेहतर इस्तेमाल हो सकता है। उन्होंने बताया कि दिल्ली स्थित एम्स में इस तकनीक का इस्तेमाल अभी तक जटिल आपरेशन के मामलों में रहा है।


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