बिठूर का पेशवा घाट अब महाराज घाट, आकर्षित करती है गंगा मां की विशाल प्रतिमा
गंगा नदी के किनारे बाजीराव पेशवा ने घाट बनवाया था।
कानपुर, जेएनएन। बिठूर गंगा किनारे एक ऐसा छोटा सा कस्बा है जो किसी जमाने में सत्ता का केंद्र था। आज यहां की पुरानी एतिहासिक इमारतें, बारादरियां और मंदिर जीर्ण-क्षीर्ण हालत में पड़ी हैं, लेकिन स्थानीय लोगों के पास इतिहास की वो यादें हैं जिनका पाठ हर बच्चे को स्कूल में पढ़ाया जाता है। ये नानाराव और तात्या टोपे जैसे लोगों की धरती रही है। बिठूर का इतिहास धार्मिक एवं पौराणिक महत्व से परिपूर्ण है जिसे ब्रमांड का केंद्र बिंदु कहा जाता है यहां ब्रम्हा जी की खूंटी, लव कुश की जन्म स्थली, महर्षि बाल्मीक की तपोस्थली और न जाने कितने ऐसे उदाहरण हैं जो बिठूर के पौराणिक महत्व को दर्शाते हैं।
बाजीराव पेशवा ने बनवाया था घाट
इसी माटी की तासीर से मनु को लक्ष्मीबाई बनाया यहां के गंगा किनारे कभी बावन राजाओं के बावन घाट हुआ करते थे, जिसमे एक था पेशवाघाट। अब इसे महाराज घाट के नाम से जाना जाता है। बाजीराव पेशवा ने वर्ष 1829 में इसका निर्माण कराया था। घाट के उपर एक भगवान शंकर का प्राचीन मंदिर है। यह मंदिर पूर्व में पेशवा की पत्नी सरस्वती का महल था। बाजीराव ने उन्हीं के लिए इस महल का निर्माण कराया था।
प्राचीन है सरश्वतेश्वर मंदिर
इतिहासकारों के मुताबिक बाद में इसे मंदिर का रूप दे दिया गया। इसकी भव्यता और नक्काशी इसके जीवंतता का प्रमाण दे रहे हैं। आज इसे सरश्वतेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है। मंदिर की देखरेख का जिम्मा पुजारी पं राजेंद्र कुमार गोस्वामी करते है। उन्होंने बताया कि यहां से जाते समय अंग्रेजों ने तोपों द्वारा सभी घाटों को ध्वस्त कर दिया गया था। बिठूर के पेशवा घाट को अंग्रेजों ने कोई नुकसान नहीं पहुंचाया था।
कांच मंदिर में मां गंगा की विशाल प्रतिमा
महाराज घाट के दाहिनी तरफ बना मंदिर कांच मंदिर के रूप में जाना जाता है। इसमे विशाल मां गंगा की मूर्ति लगी हुई थी। कुछ साल पहले चोरों ने मंदिर की मूर्ति चोरी कर ली। इस समय मंदिर जीर्णशीर्ण अवस्था में है। बिठूर के आठ घाटों को नमामि गंगे द्वारा सुंदरीकरण के लिए चुना गया है। इसमें ब्रह्मावर्त, रानी लक्ष्मीबाई, सीता, महिला, बारादरी, तुलसी, राम और लक्ष्मण घाट शामिल हैं। इसमें महाराज घाट को शामिल नहीं किया गया है।