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एंटीबायोटिक के अधिक इस्तेमाल से कोरोना मरीज हो रहे इस बीमारी का शिकार, जानिए ब्रिटेन में हुई रिसर्च का पूरा सच

कोरोना के इन मरीजों में से 40 फीसद पर अब ये दवा बेअसर है। उनमें एजिथ्रोमाइसिन के साइड इफेक्ट भी सामने आ रहे है। सुझाव और इसकी गंभीरता को देखते हुए अन्य संक्रमित मरीजों के इलाज की गाइडलाइन से एजिथ्रोमाइसिन डाक्सीसाइक्लिन व रेमडेसिविर को हटाया गया है।

By Akash DwivediEdited By: Published: Thu, 10 Jun 2021 07:42 AM (IST)Updated: Thu, 10 Jun 2021 01:02 PM (IST)
एंटीबायोटिक के अधिक इस्तेमाल से कोरोना मरीज हो रहे इस बीमारी का शिकार, जानिए ब्रिटेन में हुई रिसर्च का पूरा सच
गाइडलाइन से एजिथ्रोमाइसिन, डाक्सीसाइक्लिन व रेमडेसिविर को हटाया गया है

कानपुर (ऋषि दीक्षित)। कोरोना संक्रमित मरीजों को अधाधुंध एंटीबायोटिक दवाएं दिए जाने के दुष्प्रभाव सामने आने लगे हैैं। ब्रिटेन में कोरोना पीडि़तों पर हुए एक शोध के मुताबिक निमोनिया पर प्रभावी एंटीबायोटिक एजिथ्रोरोमाइसिन ज्यादा इस्तेमाल की वजह से अब कोरोना पीडि़त 40 फीसद मरीजों में स्टेप्टोकाकल बैक्टीरिया (निमोनिया का वाहक) पर बेअसर साबित होने लगा है। इंडियन एसोसिएशन आफ मेडिकल माइक्रोबायोलाजिस्ट के वेबिनार में इस शोध पर मंथन के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री को सुझाव दिया गया। इसी आधार पर दो दिन पहले इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च (आइसीएमआर) ने कोरोना के इलाज की गाइडलाइन से सभी दवाएं हटा दीं और सामान्य स्थिति में संक्रमितों को आक्सीजन और गंभीर मरीजों को स्टेरॉयड थेरेपी देने का सुझाव दिया है।

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वेबिनार में शामिल हुए जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के माइक्रोबायोलाजी विभाग के प्रोफेसर डॉ. विकास मिश्र ने बताया कि ब्रिटेन के लैंगफोर्ट एट आल (दूसरे विशेषज्ञों के साथ मिलकर) ने कोरोना संक्रमण फैलने पर दिसंबर 2019 से मार्च 2020 के बीच दुनिया भर के 3338 गंभीर संक्रमितों पर अलग-अलग 24 अध्ययन किए। इसमें ऐसे मरीज लिए, जिन्हेंंं एंटीबायोटिक दवाएं दी गईं। अध्ययन में मिला कि भर्ती हुए 90 फीसद मरीजों को डाक्टरों ने एंटीबायोटिक दवाएं दीं। इनमें सबसे कामन एंटीबायोटिक एजिथ्रोमाइसिन का सबसे ज्यादा इस्तेमाल हुआ।

ऐसे हुआ दुरुपयोग : पाया गया कि कोरोना संग दूसरे बैक्टीरियल संक्रमण प्रभावित महज 3.5 फीसद मरीज ही अस्पताल में भर्ती हुए थे। उन्हेंं एंटीबायोटिक दवाएं देना जरूरी था। इसी तरह, कोरोना संक्रमण के बाद अस्पताल में गंभीर स्थिति में 14.3 फीसद मरीज भर्ती हुए, जिन्हेंं अस्पताल में भर्ती होने के बाद बैक्टीरियल इंफेक्शन हुआ। उनका संक्रमण नियंत्रित करने को एंटीबायोटिक दवाएं दी गईं जबकि कोरोना के संक्रमण के साथ भर्ती हुए 71.8 फीसद मरीजों को जरूरत न होने पर भी एंटीबायोटिक दवाएं दी गईं। विशेषज्ञों ने यह भी पाया कि महज 17.8 फीसद कोरोना संक्रमित, जिन्हेंंं बैक्टीरियल इंफेक्शन हुआ था। उनमें ही एंटीबायोटिक दवाओं की जरूरत थी जबकि 54 फीसद को जरूरत ही नहीं थी। फिर भी वायरल इंफेक्शन के बाद एंटीबायोटिक दवा दी गईं।

दुष्प्रभाव देख गाइडलाइन से हटाई : डॉ. विकास मिश्र बताते हैैं कि एजिथ्रोरोमाइसिन कामन एंटीबायोटिक है, जो सांस संबंधी समस्या में मरीजों को दी जाती है। इसे कम्यूनिटी एक्वायर्ड स्टेप्टोकाकल निमोनिया के इलाज में इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा कान में मवाद, पेट में इंफेक्शन एवं यूरिन ट्रैक इंफेक्शन में मरीजों को चलाई जाती है। कोरोना संक्रमण के 54 फीसद को बेवजह एंजिथ्रोमाइसिन दी गई। कोरोना के इन मरीजों में से 40 फीसद पर अब ये दवा बेअसर है। उनमें एजिथ्रोमाइसिन के साइड इफेक्ट भी सामने आ रहे है। सुझाव और इसकी गंभीरता को देखते हुए अन्य संक्रमित मरीजों के इलाज की गाइडलाइन से एजिथ्रोमाइसिन, डाक्सीसाइक्लिन व रेमडेसिविर को हटाया गया है।

रिसर्च के अहम तथ्य

  •  80 फीसद मरीजों को पैरासिटामाल दी गई।
  •  40 फीसद मरीजों को एंटीबायोटिक दवाएं दीं गई।
  •  40 फीसद मरीजों को ब्रांको डायलेटर यानी स्टेरॉयड दिए गए
  •  22 फीसद मरीजों को हाइड्रो क्लोरोक्विन
  • 22 फीसद मरीजों को प्लाज्मा थेरेपी दी गई।
  • 15 फीसद मरीजों को रेमडेसिविर दिया गया
  • यह एहतियात जरूरी
  • मरीज की पूरी हिस्ट्री पता करें।
  • उसे कहां इंफेक्शन है उसे समझें।
  •  फिर कल्चर जांच कराएं।
  •  उसके बाद एंटीबायोटिक चलाने का निर्णय लें। 

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