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विकास के सिर पर रहा हर पार्टी का हाथ, ब्राह्मण और पिछड़ी जाति के बीच जंग में बना नेताओं का हथियार

पिता के अपमान का बदला लेने के लिए चौधरियों को पीटा था थाने में राज्य मंत्री संतोष शुक्ल की हत्या में सत्ता संबंधों के चलते आत्मसमर्पण कर पाया था।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Published: Sat, 04 Jul 2020 09:03 AM (IST)Updated: Sat, 04 Jul 2020 11:29 AM (IST)
विकास के सिर पर रहा हर पार्टी का हाथ, ब्राह्मण और पिछड़ी जाति के बीच जंग में बना नेताओं का हथियार
विकास के सिर पर रहा हर पार्टी का हाथ, ब्राह्मण और पिछड़ी जाति के बीच जंग में बना नेताओं का हथियार

कानपुर, जेएनएन। पिता के अपमान का बदला लेने के लिए 1990 में डिब्बा निवादा गांव में घुसकर लोगों को मारने वाले लड़के को सत्ता की इतनी सीढ़ियां चढ़ने को मिल गई कि वह दुर्दांत अपराधी बन गया। किसी को भी मार देने का उसका दुस्साहस क्षेत्र में ब्राह्मण और पिछड़ी जाति के वर्चस्व की लड़ाई में हथियार के रूप मेें काम आने लगा और नेताओं ने उस पर अपना हाथ रख दिया। क्या कांग्रेस-भाजपा और क्या सपा-बसपा, हर दल से उसे समर्थन मिला।

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हालांकि पुलिस पर हमले, कारोबारियों से रंगदारी समेत कई मामलों में कुख्यात होने के बाद उसकी हिस्ट्रीशीट खुल गई। 1993 से अब तक उसके विरुद्ध 60 मुकदमे दर्ज हुए, इनमें दो मामले में उसे आजीवन कारावास हुई। हालांकि हाईकोर्ट से दोनों मामले में उसे जमानत मिली। सितंबर 2017 में तत्कालीन एसएसपी सोनिया सिंह ने कंजती के प्रधान वेदप्रकाश के भाई की हत्या और पूर्ति निरीक्षक प्रशांत सिंह से मारपीट मामले में 25 हजार रुपये का ईनाम घोषित किया था। 31 अक्टूबर 2017 को लखनऊ में इसे एसटीएफ ने गिरफ्तार किया था।

सभी दलों में बनाई गहरी पैठ

विकास का आपराधिक साम्राज्य पूर्वांचल के कई जिलों में है। सपा, बसपा, कांग्रेस और भाजपा यानी प्रदेश की सभी प्रमुख पार्टियों में गहरी पैठ ही उसकी ताकत रही। बिल्हौर विधानसभा क्षेत्र में तो कोई भी नेता उसका विरोध करने का साहस नहीं जुटा पाता था। यहां तक कि बसपा से जुड़े एक पूर्व मंत्री अब भाजपा से विधायक, और बसपा छोड़ कांग्रेस में गए एक पूर्व सांसद एक मामले में उसे पुलिस की हिरासत से छुड़ाने के लिए धरने पर बैठ गए थे। उन्हेंं भय था कि कहीं विकास का एनकाउंटर न कर दिया जाए। शिवली थाने में राज्यमंत्री दर्जा प्राप्त संतोष शुक्ल हत्याकांड में मुख्य आरोपित होने के बावजूद वह बड़ी आसानी से सरेंडर करने में सफल हो गया था।

सपा, बसपा, कांग्रेस और भाजपा की सरकारों में कई एनकाउंटर हुए और बदमाश मारे गए लेकिन कभी भी विकास दुबे की तरफ आंख नहीं उठाई जा सकी। हालांकि वह कई बार गिरफ्तार हुआ पर वह मार न दिया जाए इसलिए नेता उसकी ढाल बनते रहे। भाजपा से जुड़े एक सांसद, एक-एक पूर्व सांसद, बसपा से भाजपा में आकर विधायक बने एक पूर्व मंत्री, भाजपा की एक पूर्व मंत्री, कांग्रेस व बसपा से सांसद रह चुके एक नेता, जिला पंचायत अध्यक्ष रह चुके सपा के एक एमएलसी, बसपा से सपा में आए एक पूर्व विधायक और सपा छोड़ चुकीं एक पूर्व मंत्री हमेशा उसका साथ देती रहीं। बताया जा रहा है कि वह रनिया सीट से चुनाव लड?े की तैयारी कर रहा था।

बसपा सरकार में खूब चला विकास का सिक्का

2002 में बसपा सरकार में विकास का सिक्का बिल्हौर, शिवराजपुर, रनियां, चौबेपुर में इस कदर चला कि अवैध कब्जे बिकरू समेत आसपास के दस से ज्यादा गांवों में अपनी दहशत कायम कर ली। इसी दहशत के चलते विकास 15 वर्ष तक जिला पंचायत सदस्य के पद पर कब्जा किए रहा। वर्ष 1995 से 2000 तक बिकरू से प्रधान रहा। सीट आरक्षित होने पर समर्थक राजकुमार की पत्नी को निॢवरोध प्रधान बनाया और खुद बसपा के समर्थन से जिला पंचायत सदस्य बन गया। इसके बाद अपने भाई अनुराग दुबे को जिपं सदस्य बनवाया। वर्ष 2015 के चुनाव में पत्नी ऋचा दुबे को घिमऊ से सपा के समर्थन से जिपं सदस्य बनाया। इस चुनाव में बसपा के लोगों ने बहुत खुलकर विरोध भी नहीं किया था।

इन मामलों में हुई सजा

शिवली स्थित ताराचंद्र इंटर कॉलेज के प्रधानाचार्य की हत्या 14 नवंबर 2000 को हुई थी। इस मामले में विकास को 2008 में आजीवन कारावास की सजा मिली और शिवली नगर पंचायत के अध्यक्ष लल्लन वाजपेयी के घर पर 22 अक्टूबर 2002 को बम फेंकवाने और फायरिंग हुई थी। इसमें तीन की मौत हो गई थी। मामले में जेल में रहकर साजिश रचने के आरोप में 2012 में विकास को आजीवन कारावास हुई। दोनों मामलों में जमानत पर छूटा था।

जिसे चाहा उसे प्रधान बनाया

इसके अलावा विकरू, भीठी, सुज्जा निवादा, बसेन, कंजती, काशीराम निवादा, मदारीपुर सहित दो दर्जन गांवो में पंडित की मर्जी से ही प्रधान बनते रहे। 2015 से चचेरे भाई अतुल दुबे की पत्नी अंजलि दुबे प्रधान है। पड़ोस के भीठी गांव में उसका दहिना हाथ कहा जाने वाला जिलेदार निर्विरोध ग्राम प्रधान हैं।


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