फ्लैश बैक : इंदिरा राजनीति में लाईं, परिवार के बेहद करीबी अरुण नेहरू फिर क्यों हुए अलग
परिवार की विरासत रायबरेली सीट से भी जीत दर्ज की और राजीव गांधी सरकार में आंतरिक सुरक्षा मंत्री भी रहे थे।
By AbhishekEdited By: Published: Tue, 12 Mar 2019 05:45 PM (IST)Updated: Tue, 12 Mar 2019 05:45 PM (IST)
कानपुर, [जागरण स्पेशल]। वर्तमान में अकबरपुर और पूर्व में बिल्हौर लोकसभा सीट पर हमेशा स्थानीय नेता ही चुनाव लड़ते और जीतते रहे। मगर, जनता दल के गठन के समय एक दौर ऐसा आया जब बिल्हौर सीट से पहली बार कोई बाहरी नेता मैदान में उतरा और जीता भी। वह थे नेहरू-गांधी परिवार के सदस्य अरुण नेहरू।
नेहरू-गांधी परिवार के अरुण नेहरू करीबी सदस्य थे। इमरजेंसी के बाद वर्ष 1980 जब इंदिरा गांधी उत्तर प्रदेश में रायबरेली और आंध्र प्रदेश में मेडक सीट से चुनाव लड़ी थीं तो दोनों जगह जीत गईं। रायबरेली को अपनी मजबूत सीट देखते हुए उन्होंने इस सीट को छोड़ा, लेकिन यहां जब प्रत्याशी तलाशने की बात आई तो अरुण नेहरू का नाम आगे आया। परिवार की विरासत यह सीट परिवार में रहे, इसलिए उनका नाम आगे बढ़ाया गया। अरुण नेहरू यहां से जीते भी और पार्टी के अंदर उनका कद काफी तेजी से बढ़ा।
इंदिरा गांधी के निधन के बाद राजीव गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए अरुण नेहरू ने प्रस्ताव किया। इससे वह राजीव गांधी के भी काफी करीब हो गए। उन्हें आतंरिक सुरक्षा मंत्री भी बनाया गया, लेकिन इस सरकार के कार्यकाल के दौरान उनका राजीव गांधी से कई मुद्दों को लेकर विरोध भी हुआ। आखिर उन्होंने वीपी सिंह के साथ कांग्र्रेस छोड़ दी।
जनता दल का गठन हुआ तो वीपी सिंह ने उन्हें बिल्हौर से प्रत्याशी बनाया। पहली बार कोई बाहरी प्रत्याशी यहां से चुनाव लड़ा था। अपने बड़े कद के चलते वह आसानी से चुनाव जीत गए। उन्हें कुल मतदान के 57.47 फीसदी वोट मिले। 2,85,047 वोट हासिल कर उन्होंने इस सीट पर कांग्र्रेस प्रत्याशी जगदीश अवस्थी को 1,46,232 वोटों से पराजित कर दिया। हालांकि इसके बाद वह कभी दोबारा इस सीट से नहीं लड़े। 24 अप्रैल 1944 को जन्मे अरुण नेहरू का 25 जुलाई 2013 में निधन हो गया।
नेहरू-गांधी परिवार के अरुण नेहरू करीबी सदस्य थे। इमरजेंसी के बाद वर्ष 1980 जब इंदिरा गांधी उत्तर प्रदेश में रायबरेली और आंध्र प्रदेश में मेडक सीट से चुनाव लड़ी थीं तो दोनों जगह जीत गईं। रायबरेली को अपनी मजबूत सीट देखते हुए उन्होंने इस सीट को छोड़ा, लेकिन यहां जब प्रत्याशी तलाशने की बात आई तो अरुण नेहरू का नाम आगे आया। परिवार की विरासत यह सीट परिवार में रहे, इसलिए उनका नाम आगे बढ़ाया गया। अरुण नेहरू यहां से जीते भी और पार्टी के अंदर उनका कद काफी तेजी से बढ़ा।
इंदिरा गांधी के निधन के बाद राजीव गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए अरुण नेहरू ने प्रस्ताव किया। इससे वह राजीव गांधी के भी काफी करीब हो गए। उन्हें आतंरिक सुरक्षा मंत्री भी बनाया गया, लेकिन इस सरकार के कार्यकाल के दौरान उनका राजीव गांधी से कई मुद्दों को लेकर विरोध भी हुआ। आखिर उन्होंने वीपी सिंह के साथ कांग्र्रेस छोड़ दी।
जनता दल का गठन हुआ तो वीपी सिंह ने उन्हें बिल्हौर से प्रत्याशी बनाया। पहली बार कोई बाहरी प्रत्याशी यहां से चुनाव लड़ा था। अपने बड़े कद के चलते वह आसानी से चुनाव जीत गए। उन्हें कुल मतदान के 57.47 फीसदी वोट मिले। 2,85,047 वोट हासिल कर उन्होंने इस सीट पर कांग्र्रेस प्रत्याशी जगदीश अवस्थी को 1,46,232 वोटों से पराजित कर दिया। हालांकि इसके बाद वह कभी दोबारा इस सीट से नहीं लड़े। 24 अप्रैल 1944 को जन्मे अरुण नेहरू का 25 जुलाई 2013 में निधन हो गया।
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