जीएसवीएम में कृत्रिम तरीके से तैयार दो अलग-अलग एंटीबाडी मिलाकर होंगी इस्तेमाल
शहर के जीएसवीएम मेडिकल कालेज के लाला लाजपत राय (एलएलआर) अस्पताल ट्रायल की तैयारी है। भारतीय फार्मा कंपनी जायडस कैडिला ने मोनोक्लोन एंटीबाडी तैयार की है। औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआइ) से क्लीनिकल ट्रायल की अनुमति मिलने के बाद मानव पर परीक्षण की तैयारी शुरू कर दी है।
कानपुर, जेएनएन। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कोरोना संक्रमित होने पर मोनो क्लोनल एंटीबाडी काकटेल से इलाज के बाद चर्चा में आई ये पद्धति तीसरी लहर से निपटने में अहम हथियार बनेगी। इसका प्रयोग हाईरिस्क कैटेगरी के कोरोना संक्रमितों पर शुरुआती अवस्था में दिया जाएगा, जिससे स्थिति गंभीर होने की नौबत ही नहीं आएगी और संक्रमितों को अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी। शहर के जीएसवीएम मेडिकल कालेज के लाला लाजपत राय (एलएलआर) अस्पताल ट्रायल की तैयारी है। भारतीय फार्मा कंपनी जायडस कैडिला ने मोनोक्लोन एंटीबाडी तैयार की है। औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआइ) से क्लीनिकल ट्रायल की अनुमति मिलने के बाद मानव पर परीक्षण की तैयारी शुरू कर दी है। आनलाइन प्लेटफार्म पर बैठक कर मोनोक्लोनल एंटीबाडी के ट्रायल के लिए जीएसवीएम मेडिकल कालेज समेत कई सेंटरों से संपर्क किया है। जीएसवीएम मेडिकल कालेज को कोविड का लेवल-3 सेंटर बनाया गया है, जहां सामान्य से लेकर गंभीर मरीज तक भर्ती होते हैं। कोरोना हाईरिस्क यानी बुजुर्ग, मधुमेह, हाइपरटेंशन, लिवर, किडनी व हार्ट रोगी जो संक्रमित होंगे उन पर ट्रायल होगा।
ऐसे तैयार की गईं एंटीबाडी : लैब में डीएनए रिकाम्बिनेंट बायोटेक्नोलाजी से मोनोक्लोनल एंटीबाडी कृत्रिम रूप से तैयार की गई है। जो एक प्रकार का प्रोटीन ही है, जिसे हमारा शरीर किसी भी बीमारी से बचाव के लिए बनाता है। कोरोना की बीमारी से लडऩे के लिए एंटीबाडी काकटेल कैसिरिविमैव एवं इमदेविमैव का काम्बिनेशन तैयार किया गया है, जिसे मिलाकर कोरोना संक्रमितों को लगाया जाएगा। इन दोनों की मोनोक्लोनल एंटीबाडी कोरोना के स्पाइक प्रोटीन के खिलाफ काम करती है।
ऐसे करती है काम : कोरोना वायरस के स्पाइक प्रोटीन में दो रिसेप्टर एस-वन एवं एस-टू होते हैं। उसमें से एस-वन रिसेप्टर वायरस के शरीर में प्रवेश करते ही उसे कोशिकाओं में चिपकाने में मदद करता है, जबकि एस-टू रिसेप्टर वायरस को कोशिकाओं के अंदर प्रवेश करके अपने हिसाब से कार्य करने में सहायक होता है। मोनोक्लोनल एंटीबाडी वायरस को फेफड़े की कोशिकाओं और टिश्यू से चिपकने से रोकती है। कोशिकाओं में उसके प्रवेश में रुकावट पैदा करती है। इस वजह से वायरस का शरीर में संक्रमण नहीं हो पाता है।
यह आएंगे ट्रायल के दायरे में
- 65 वर्ष या उससे अधिक उम्र के बुजुर्ग, अत्याधिक मोटे व्यक्ति।
- 55 वर्ष की उम्र के लिवर, किडनी, हृदय रोग, मधुमेह, हाई बीपी, फेफड़े की बीमारी से पीडि़त।
- 12-17 वर्ष की उम्र के गंभीर बीमारियों से सेरेब्रल पाल्सी, अस्थमा व अन्य बीमारी से पीडि़त बच्चे।
इनका ये है कहना
- कोरोना संक्रमित गंभीर बीमारियों से पीडि़त बुजुर्ग और 12 वर्ष से ऊपर के बच्चों पर इसका परीक्षण होगा। संक्रमण के 10 दिन में इसके जरिए इलाज से उन्हेंं अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। कंपनी के स्तर से 15 कोरोना संक्रमितों के लिए मोना क्लोनल एंटीबाडी काकटेल की डोज मुहैया कराई जाएगी। जिसका निश्शुल्क परीक्षण हल्के एवं मध्यम कोरोना संक्रमितों पर किया जाएगा। एक संक्रमित पर लगभग एक लाख रुपये खर्च आएगा। अभी संक्रमित नहीं हैं, इसलिए कंपनी को ट्रायल के लिए समय दिया गया है। संक्रमितों की संख्या बढऩे पर स्क्रीनिंग कर ट्रायल शुरू करेंगे।
प्रो. रिचा गिरि, उप प्राचार्य एवं विभागाध्यक्ष, मेडिसिन विभाग, जीएसवीएम मेडिकल कालेज।