कानून की लड़ाई के लिए तैयार सेना से सेवानिवृत्त 85 वर्षीय इंजीनियर मदन बिहारी लाल
इटावा के रहने वाले 85 वर्षीय मदन बिहारी लाल सेना से सेवानिवृत के बाद एलएलएम की उपाधि हासिल की है। वह कानपुर पालिटेक्निक से पढ़ाई करके सेना में भर्ती हुए थे और उन्होंने इलेक्ट्रो होमयोपैथी की भी पढ़ाई की है।
कानपुर, अखिलेश तिवारी। जीतने की ललक हो तो उम्र की बाधाएं भी सिर झुकाकर सलाम करती हैं। कानपुर पालीटेक्निक से पढ़ाई करके भारतीय सेना के सेवानिवृत्त इंजीनियर एमबी लाल ने 85 साल की उम्र में एलएलएम उपाधि हासिल की है। ज्ञानार्जन की अदम्य इच्छा ने उन्हें उम्र के अंतिम पड़ाव तक विद्यार्थी बनाए रखा। सेना की सेवा में रहते इंजीनियर की डिग्री हासिल की और सेवानिवृत्त होने के बाद एलएलबी-एलएलएम की क्लास रूम पढ़ाई कर युवा सहपाठियों को कड़ी चुनौती दी।
भारतीय सेना की इंजीनियरिंग सर्विसेस में लंबा सेवाकाल पूरा करने वाले सेवानिवृत्त इंजीनियर मदन बिहारी लाल इटावा के मूल निवासी हैं। इटावा शहर में आज भी उनका मकान है। कानपुर पालीटेक्निक से सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा हासिल करने वाले एमबी लाल ने 1962 में भारतीय सेना के साथ करियर शुरू किया। 1973 में पूर्वी पाकिस्तान में हुई लड़ाई में बोरजर एयरपोर्ट पर तैनाती के दौरान उनके उत्कृष्ट कार्य की वजह से सेना ने उन्हें मेडल देकर सम्मानित किया था।
1977 में आगरा विश्वविद्यालय से एलएलबी की उपाधि नियमित कक्षाओं में अध्ययन कर प्राप्त की। सुबह छह बजे से नौ बजे तक रोज कानून की पढ़ाई करने जाते और इसके बाद सेना की अपनी नियमित नौकरी करते रहे। इसके बाद उन्होंने इलेक्ट्रो होम्योपैथी की पढ़ाई कर चिकित्सा विज्ञान का ज्ञान हासिल किया। सेवानिवृत्त होने के बाद जब वह बेटे के साथ नागपुर में रहने लगे तो नागपुर विश्वविद्यालय के विधि संकाय में एलएलएम में प्रवेश लिया।
रोज विश्वविद्यालय पढ़ने जाते रहे : नागपुर विश्वविद्यालय में एलएलएम की पढ़ाई के दौरान वह नियमित कक्षाओं में शामिल होते रहे। उनके पुत्र अरविंद मुडवेल इन दिनों केनरा बैंक में चीफ जनरल मैनेजर हैं। उन्होंने बताया कि जब पिता जी का विवाह हुआ था तो मां पोस्ट ग्रेजुएट थीं। मां के कारण ही पिता जी का अध्ययन के प्रति आकर्षण बढ़ा और पूरी जिंदगी पढ़ते-पढ़ाते रहे। उन्होंने बताया कि उनके भाई आनंद सक्सेना और बच्चों को पिताजी ने इंटर तक हर रोज पढ़ाया। मां का 2010 में स्वर्गवास हो गया उसके बाद भी पिताजी का अध्ययन क्रम नहीं टूटा। एलएलएम करने की ठानी और बीते सप्ताह नागपुर विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में उन्हें उपाधि मिल गई।
बीमारी को भी नहीं बनने दिया बाधा : सेना की नौकरी के दौरान ही इंजीनियर एमबी लाल को 38 साल की उम्र में पक्षाघात (पैरालिसिस अटैक) पड़ा था। इलाज कर रहे एम्स के डॉक्टर भी लगभग निराश हो चुके थे, लेकिन एमबी लाल अपने प्रबल आत्मबल के दम पर न केवल पक्षाघात से उबरे, बल्कि अगले कुछ सालों में ही एलएलबी की डिग्री भी हासिल की।