आंखों के सामने दिल दहलाने वाला हादसा देख फट गया कलेजा तो जाग उठी कलावती की नारी शक्ति
एक हादसे ने कलावती को शौचालय बनवाने का अभियान चलाने के लिए प्रेरित कर दिया था।
कानपुर, जेएनएन। कुछ लोग सम्मान या पुरस्कार के मोहताज नहीं होते, लेकिन ये सम्मान समाज के लिए प्रेरणा का काम करते हैं। कानपुर में राजापुरवा निवासी कलावती ऐसी ही शख्सीयत हैं, जिन्होंने 32 साल की अथक मेहनत से चंदा जुटाकर 4000 शौचालय बनवा डाले। यही नहीं उन्होंने गरीब महिलाओं को अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए बूंद बचत जैसा सफल अभियान भी चलाया। यही वजह थी कि अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर राष्ट्रपति ने रविवार को जब उन्हें नारी शक्ति सम्मान दिया तो पूरा शहर पुलक उठा।
13 वर्ष की उम्र में हो गया था ब्याह
कलावती की इस कामयाबी के पीछे एक कठिन संघर्ष है। 60 वर्ष से अधिक उम्र की अपढ़ कलावती का मायका लखनऊ के मोहनलालगंज में है। 13 वर्ष की उम्र में उनका ब्याह राजापुरवा निवासी राजमिस्त्री जयराज सिंह से हुआ। करीब 42 साल पहले गौना होने के बाद वह यहीं आ गईं। यहां आकर उन्होंने देखा कि महिलाओं को शौच के लिए बाहर जाना पड़ता था। वह कहती हैं, उस वक्त यहां एक तालाब में लोग शौच को जाते थे। बहू, बेटी, बहन, भाई, पिता, ससुर सबके लिए एक ही जगह थी। कुछ समय बाद क्रासिंग और जीटी रोड के पार एक सार्वजनिक शौचालय बना।
वो हादसा, जिसे देख फट गया कलेजा
कलावती ने बताया कि सार्वजनिक शौचालय से लौट रही बूढ़ी अम्मा क्रासिंग पार करते समय ट्रेन की चपेट में आ गईं और उनकी मौत हो गईं। यह दृश्य देख मेरा कलेजा फट गया। तभी सोच लिया कि इस समस्या का हल खोजना ही पड़ेगा। दस सीट का एक शौचालय भी बन जाए तो समस्या कम हो सकती है, मगर लोगों के पास पैसे नहीं थे। जैसे-तैसे मीटिंग की और बहुत प्रयास के बाद चंदा करके शौचालय बनवाया गया। इस बीच परिवार और समाज से टोकाटाकी भी होती रही, लेकिन इरादा अटल था। महिलाओं के लिए शौचालय बेहद जरूरी थे, इसलिए इस दिशा में काम करना शुरू कर दिया और बीते 32 सालों में लोगों की मदद से चार हजार शौचालय खड़े करवा दिए, जहां बहू-बेटियां इज्जत के साथ शौच जा सकती हैं।