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अमृत महोत्सव : कौन थीं वीरांगना हेलेन लेपचा, जिन्होंने नेताजी को गृहबंदी से भगाने में निभाई थी खास भूमिका

अमृत महोत्सव में स्वतंत्रता सेनानियों की फेहरिस्त में एक नाम वीरांगना हेलेन लेपचा का भी लिया जाता है जो नेताजी सुभाष चंद्र बोस की खास मददगार बनी थीं और उन्हें गृहबंदी से भगाने में खास भूमिका निभाई थी।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Published: Fri, 14 Jan 2022 12:55 PM (IST)Updated: Fri, 14 Jan 2022 12:55 PM (IST)
अमृत महोत्सव : कौन थीं वीरांगना हेलेन लेपचा, जिन्होंने नेताजी को गृहबंदी से भगाने में निभाई थी खास भूमिका
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा एक नाम हेलेन लेपचा।

कानपुर, फीचर डेस्क। सिक्किम के एक छोटे से गांव संगमू में पैदा हुई थीं भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ीं वीरांगना हेलेन लेपचा। उन्होंने देश के अलग-अलग हिस्सों में जाकर न केवल जरूरतमंद लोगों की मदद की, बल्कि उनमें स्वाधीनता की अलख भी जगाई। दी डायरेक्टरी आफ इंडियन वूमन टुडे, 1976 के अनुसार जब नेता जी सुभाष चंद्र बोस गृहबंदी थे, तब नेताजी को गृहबंदी से भगाने में हेलेन की भूमिका काफी सराहनीय रही थी। नेता जी के लिए पठान वाला पहनावा उन्होंने ही तैयार किया था...। पढ़िए डा. स्वर्ण अनिल की खास रिपोर्ट..।

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स्वातंत्र्य युद्ध में समूचा पूर्वोत्तर अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्षरत रहा था। चाहे वे अंग्रेज ईस्ट इंडिया कंपनी में हों या ब्रिटिश शासक के रूप में मौजूद हों। महात्मा गांधी के नेतृत्व में विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार, मादक द्रव्य बहिष्कार, खादी और स्वदेशी का प्रचार, असहयोग आंदोलन, कानून तोड़ो, अंग्रेजों भारत छोड़ो आदि आंदोलनों में संपूर्ण देश के साथ पूर्वोत्तर की वीरांगनाओं ने कंधे से कंधा मिलाकर एकजुटता दिखाई थी।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी ऐसी ही एक वीरांगना थीं सिक्किम की हेलेन लेपचा। सिक्किम के नामची (राजधानी शहर गंगटोक के करीब स्थित एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल) से लगभग 15 किलोमीटर दूर संगमू गांव में 14 जनवरी, 1902 को हेलेन लेपचा का जन्म अचुंग लेप्चा के घर में हुआ था। अचुंग लेप्चा की तीसरी संतान थीं हेलेन। बाद में लेपचा परिवार सिक्किम से स्थानांतरित होकर दार्जिलिंग के कुर्सियांग (दार्जिलिंग के निकट स्थित एक प्रसिद्ध हिल स्टेशन) में आ गया और यहीं पर अपना निवास बनाया।

गांधीजी ने स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए विभिन्न आंदोलन शुरू करने के साथ ही खादी वस्त्र और चरखा का प्रचार भी शुरू कर दिया था। बंगाल के दार्जिलिंग में किसी व्यक्ति से इस बारे में सुनकर हेलेन लेपचा ने इसमें दिलचस्पी ली और कलकत्ता (अब कोलकाता) जाकर चरखा चलाने का प्रशिक्षण प्राप्त किया। गांधीजी के आदर्शों से प्रेरित होकर उन्होंने न केवल चरखा चलाना शुरू किया, बल्कि अलग-अलग जगहों पर जाकर लोगों को स्वदेशी के प्रति जागरूक करने लगीं। इसके साथ ही वह लोगों को देशप्रेम का पाठ पढ़ाती थीं साथ ही जरूरतमंदों की मदद भी करती थीं।

वर्ष 1920 में जब बिहार में बाढ़ आई तो वह पीडि़तों की मदद करने के लिए बिहार के मुजफ्फरपुर आ गईं और वहां बाढ़ पीडि़तों की सेवा में जी जान से जुट गईं। एक दिन बाढ़ से प्रभावित लोगों को देखने के लिए गांधीजी मुजफ्फरपुर आए हुए थे। इसी दौरान गांधीजी की मुलाकात हेलेन लेपचा से हुई। यहां पर गांधीजी ने खुले हृदय से हेलेन की प्रशंसा की साथ ही उन्हें अपने साबरमती आश्रम (गुजरात के अहमदाबाद स्थित) आने का भी न्यौता दिया। इस प्रकार से हेलेन लेपचा गांधीजी के संपर्क में आईं और उन्हें गांधीजी से आशीर्वाद भी मिला। जब वह साबरमती आश्रम गईं, तब गांधीजी ने वहां हेलेन लेपचा का नाम बदलकर सावित्री देवी कर दिया।

बाद में बिहार और उत्तर प्रदेश को ही हेलेन ने अपना कार्यस्थल बनाया। उन्होंने झरिया के कोयला मजदूरों को संगठित किया और उन्हें कांग्रेस के आंदोलन में सहभागी बनाया। आंदोलनों में हेलेन की सक्रिय भागीदारी के कारण ब्रिटिश सरकार की पैनी नजर उन पर थी, परंतु वह जल्दी-जल्दी स्थान बदलकर अपने को छिपाती रहती थीं।

वह वर्ष 1921 में अहमदाबाद कांग्रेस अधिवेशन में डा. सरोजिनी नायडू के साथ भाग लेने गई थीं। कांग्रेस संगठन का अधिकतर काम वह बिहार और उत्तर प्रदेश में ही करती थीं। हेलेन ने बिहार के झरिया कोयला क्षेत्रों (अब झारखंड में) के दस हजार से अधिक खदान श्रमिकों के जुलूस का नेतृत्व किया और आदिवासी मजदूरों के शोषण और उनके प्रतिस्थापन का विरोध किया। उनकी बढ़ती लोकप्रियता ने अंग्रेजों को परेशान कर दिया। यही नहीं अंग्रेजों ने उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया। इससे बचकर वह कुछ समय इलाहाबाद (अब प्रयागराज) के आनंद भवन में भी छिपकर रहीं।

एक बार वह गोरखा सत्याग्रहियों के साथ सिलिगुड़ी में स्वदेशी आंदोलन में भाग लेने गई थीं। इस दौरान कानून तोडऩे के कारण बारह सत्याग्रहियों के साथ वह भी गिरफ्तार हुईं। उनको छह महीने की जेल की सजा हुई। इसके बाद तीन साल तक गृहबंदी बनकर रहना पड़ा।

दी डायरेक्टरी आंफ इंडियन वूमन टुडे, 1976 में यह लिखा है कि वर्ष 1939-40 में जब नेता जी सुभाष चंद्र बोस गृहबंदी थे, तब हेलेन रोटी के अंदर गुप्त सूचनाएं रखकर उनके पास भेजती थीं। गृहबंदी से नेताजी सुभाष चंद्र बोस को भगाने में हेलेन की काफी सराहनीय भूमिका रही है, क्योंकि नेता जी के लिए पठान वाला पहनावा उन्होंने ही तैयार किया था।

स्वतंत्रता के बाद अपनी कर्मठता के कारण हेलेन कुर्सियांग म्यूनिसपैलिटी की अध्यक्ष चुनी गईं। बंगाल सरकार ने वर्ष 1958 में उन्हें पहाड़ की जनजाति मुखिया का सम्मान दिया था। वर्ष 1972 में उन्हें ताम्रपत्र सम्मान और स्वतंत्रता सेनानी की पेंशन दी गई।

18 अगस्त, 1982 को जनसेवा को समर्पित हेलेन लेपचा का देहावसान हो गया, लेकिन आने वाली पीढिय़ां देशसेवा को समर्पित उनके जीवन से हमेशा प्रेरणा प्राप्त करती रहेंगी।


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