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संवेदनहीनता की हदें पार ! कानपुर में अंतिम सफर पर ले जाने काे मनमाना किराया वसूल रहे एंबुलेंस चालक

नाम न बताने की शर्त पर हैलट में तैनात एक एंबुलेंस चालक ने बताया कि पहले घाट तक जाने में एक हजार से 12 सौ रुपये तक लेते थे जो अब बढ़कर दो से ढाई हजार तक हो गया है।

By Shaswat GuptaEdited By: Published: Sun, 25 Apr 2021 10:40 AM (IST)Updated: Sun, 25 Apr 2021 01:25 PM (IST)
संवेदनहीनता की हदें पार ! कानपुर में अंतिम सफर पर ले जाने काे मनमाना किराया वसूल रहे एंबुलेंस चालक
कानपुर में अस्पताल के बाहर खड़ी एंबुलेंस की सांकेतिक तस्वीर।

कानपुर, जेएनएन। संक्रमण के दौर में कोविड के दंश से जीवन गंवाने वालों के स्वजन के लिए अंतिम सफर भी कष्टकारी बन रहा है। मरीजों को अस्पतालों से घर ले जाने और संक्रमितों के शव को घाट तक पहुंचाने के एंबुलेंस संचालक दो से तीन गुना अधिक किराया ले रहे हैं। पूछने पर बताते हैं कि पीपीई किट और सैनिटाइजेशन की व्यवस्था के साथ शव को ले जाना पड़ता है, इसलिए कुछ रुपये बढ़ाकर ले रहे हैं। सच यह है कि एक ही किट में उनका पूरा दिन व्यतीत हो जाता है और सैनिटाइजेशन के नाम पर फिनायल का पोछा लगा रहे हैं।

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नाम न बताने की शर्त पर हैलट में तैनात एक एंबुलेंस चालक ने बताया कि पहले घाट तक जाने में एक हजार से 12 सौ रुपये तक लेते थे, जो अब बढ़कर दो से ढाई हजार तक हो गया है। वहीं, बड़ी एंबुलेंस का तीन से चार हजार तक लिया जा रहा है। वहीं तीमारदारों का कहना कि एंबुलेंस संचालक पुरानी पीपीई किट पहनकर नई का पैसा ले लेते हैं।

 केस-1 : हैलट के ब्लड बैंक के पास एंबुलेंस वैन पनकी तक मरीज को ले जाने के लिए दो हजार रुपये ले रही है। पहले एक हजार से 1200 रुपये तक लेती थी। तीमारदार राजा संखवार ने बताया कि सभी के रेट एक समान हैं। ऐसे में मरीज को घर तक पहुंचाने के लिए मजबूरी में दोगुना पैसा देना पड़ रहा है।

केस-2 : हैलट के पोस्टमार्टम हाउस के पास शव को घाट तक ले जाने में संक्रमण से पहले एक हजार रुपये पड़ते थे। अब दो से तीन हजार रुपये लिए जा रहे हैं। एंबुलेंस संचालक राजू सोनकर ने बताया कि पीपीई किट और सैनिटाइजेशन का पैसा भी इसमें जोड़ रहे हैं। इसलिए अंतर आ रहा है।

केस-3 : उर्सला के कोविड सेंटर के बाहर खड़ी वैन भी संक्रमितों के शव को घाट तक पहुंचाने के लिए तीन से चार हजार रुपये तक ले रही है। शुक्लागंज के तीमारदार राजेश कुशवाहा ने बताया कि प्रशासन को एक रेट तय कर देने चाहिए। पहले से परेशान तीमारदार को संचालकों की मनमानी झेलनी पड़ती है।


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