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चुनाव प्रचार के अंतिम दिन तुरुप का पत्ता चलते थे मुलायम सिंह, हमेशा खास रही उनकी चुनावी रणनीति

यूपी विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव की चुनावी रणनीति हमेशा से खास रही है । समाजवाद की ताकत लेकर नेता जी उतरे तो इटावा सदर विधानसभा सीट के भी राजीनीतिक समीकरण बदल गए।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Published: Tue, 18 Jan 2022 05:20 PM (IST)Updated: Tue, 18 Jan 2022 05:20 PM (IST)
चुनाव प्रचार के अंतिम दिन तुरुप का पत्ता चलते थे मुलायम सिंह, हमेशा खास रही उनकी चुनावी रणनीति
नेता जी के लिए नाक का सवाल रही इटावा सदर सीट।

कानपुर, चुनाव डेस्क। इटावा देसी घी की मंडी के रूप में प्रसिद्ध है। इटावा सदर विधानसभा क्षेत्र की राजनीति में भी घी सरीखी चिकनाहट देखने को मिलती है। यह सीट कई मौकों पर एक हाथ से फिसल दूसरे हाथ में आती-जाती रही। कांग्रेस के वर्चस्व वाले इटावा के राजनीतिक समीकरण तब बदले, जब अखाड़े में समाजवाद की ताकत के साथ 'पहलवान' मुलायम सिंह यादव और राम मंदिर आंदोलन की लहर के साथ भाजपा उतरी। सबकी निगाह रहती थी कि चुनाव प्रचार के अंतिम दिन मुलायम क्या तुरुप का पत्ता चलने वाले हैं, उनकी चुनावी रणनीति खास रही है। गौरव डुडेजा की रिपोर्ट...।

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कभी सपा संरक्षक की कोठी पर होता था भोज

शहर के सिविल लाइंस में समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव की कोठी में इस समय सन्नाटा है। बाहर दो कर्मचारी मिलते हैं। कभी यही कोठी चुनावों का केंद्र बना करती थी। पड़ोस में ही रहने वाले रामवीर सिंह बताते हैं कि मुलायम सिंह यादव चुनावों के दौरान जब भी एक या दो दिन के लिए आते थे, शहर के लोगों को बुलाकर चुनाव की चर्चा जरूर करते थे। कचहरी के अधिवक्ताओं को याद करना नहीं भूलते थे। कोठी पर भोज का आयोजन होता और राजनीति की चर्चा होती थी। इस बार मुलायम सिंह क्या आएंगे, यह प्रश्न महज प्रश्न ही है। यहां से आगे बढऩे पर नौरंगाबाद में वरिष्ठ अधिवक्ता डीडी मिश्रा मिले। मुलायम सिंह के साथ बिताए चुनावी दिनों को याद कर बोले, नेता जी (मुलायम) के लिए इटावा सदर सीट का चुनाव नाक का सवाल रहता। मुलायम ही कहते थे कि उनकी पहचान इटावा से है। अगर इटावा की सीट हार गए तो फिर प्रदेश और देश में पहचान क्या होगी।

चाय की दुकानों पर लगाते थे जमघट

डीडी मिश्रा अधिवक्ताओं के लिए किए मुलायम सिंह के कामों को भी गिनाते हैं। यहां से नगर पालिका चौराहे पर पहुंचे तो मानो वो तस्वीर जीवंत हो उठी, जब मुलायम चुनाव प्रचार के अंतिम दिन यहां मुख्य बाजार में जनसभा करते थे। यहा 40 साल से पान की दुकान लगा रहेे राजेश कुमार चौरसिया बताते हैं, मुलायम के भाषण उन्होंने खूब सुने। वह 1967 से पहले के दिनों को याद कर बोले, मुलायम सिंह यादव राजागंज चौराहे पर स्वामी जी की चाय की दुकान पर शाम को जमघट लगाते, जहां राजनीति की चर्चा होती थी। व्यवसायी आलोक दीक्षित बताते हैं कि चुनाव प्रचार के अंतिम दिन मुलायम सिंह मुख्य बाजार में आकर जनसभा करके व्यापारियों सहित पूरे जिले में अपनी हवा बनाते थे। वह नाम से व्यापारी को बुलाते थे। इससे जो उनके विरोधी होते थे, वे व्यापारी भी उनके कायल हो जाते थे और उनकी जनसभा में चले आते थे। व्यापारी श्रवण गुप्ता कहते हैं, सदर सीट के लिए मुलायम सिंह का यह तुरुप का पत्ता था जो हमेशा काम आता था।

छह बार कांग्रेस विधायक : वर्ष 1952 से वर्ष 2017 तक कांग्रेस ने अब तक छह बार जीत हासिल की। सपा ने चार बार विजय पायी। भाजपा और जनसंघ ने दो- दो यह सीट जीती। उपचुनाव में बसपा अपना परचम लहरा चुकी है। राम मंदिर आंदोलन की लहर में भाजपा ने 1991 में पहली बार यहां खाता खोला था। 2007 में दलबदल की वजह से यहां उपचुनाव भी हुआ। सपा विधायक महेंद्र राजपूत बसपा में शामिल हो गए। उपचुनाव में वह बसपा के टिकट से जीते।

सीट पर अबतक बने विधायक

1952 : गोपीनाथ दीक्षित, कांग्रेस

1957 : भुवनेश भूषण शर्मा, जनसंघ

1962 : होली लाल अग्रवाल, कांग्रेस

1967 : भुवनेश भूषण शर्मा, जनसंघ

1969 : होती लाल अग्रवाल, कांग्रेस

1974 : सुखदा मिश्रा, कांग्रेस

1977 : सत्यदेव त्रिपाठी, जनता पार्टी

1980 : सुखदा मिश्रा, कांग्रेस

1985 : सुखदा मिश्रा, कांग्रेस

1989 : सुखदा मिश्रा, जनता दल

1991 : अशोक दुबे, भाजपा

1993 : जयवीर सिंह भदौरिया, सपा

1996 : जयवीर सिंह भदौरिया, भाजपा

2002 : महेंद्र राजपूत, सपा

2007 : महेंद्र राजपूत, सपा

2012 : रघुराज शाक्य, सपा

2017 : सरिता भदौरिया, भाजपा

पहली महिला विधायक सुखदा मिश्रा : ब्राह्मण बाहुल्य इटावा सदर विधान सभा सीट पर सुखदा मिश्रा को पहली महिला विधायक होने का मौका मिला। वह चार बार इस विधान सभा सीट से विधायक बनीं। 1989 में कांग्रेस छोड़कर वह मुलायम सिंह के साथ जनता दल में शामिल हो गई थीं और नगर विकास मंत्री बनीं।


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