चिकित्सा क्षेत्र में शोध और तकनीक विकसित करने के लिए एचबीटीयू और केजीएमयू के बीच करार
एचबीटीयू के मैकेनिकल इंजीनियरिंग के विशेषज्ञ पिछले दो वर्ष से थ्रीडी प्रिटिंग तकनीक पर कार्य कर रहे हैं। उन्होंने फाइबर से जबड़ा हाथ के पंजे दिल का माडल तैयार किया है। यह एक्स-रे एमआरआइ और सीटी स्कैन की रिपोर्ट के आधार पर बनता है।
कानपुर, जेएनएन। एक्स-रे की फिल्म के साथ रिपोर्ट का कागजी पुर्जा तो एमआरआइ और सीटी स्कैन की भी कागजी रिपोर्ट...डाक्टरों-सर्जनों को अब इसे देख इलाज के लिए मगजमारी नहीं करनी पड़ेगी। अंगों की अंदरूनी दिक्कतें जांच के बाद उनके सामने थ्रीडी फाइबर माडल के रूप में सामने होंगी, जिससे वे बेहतर तरीके से वास्तविक हालात से वाकिफ हो सकेंगे और उस अनुरूप दिल, लिवर, गुर्दा व दिमाग आदि का इलाज कर सकेंगे। यह हरकोर्ट बटलर टेक्निकल यूनिवॢसटी (एचबीटीयू) और लखनऊ की किंग जार्ज मेडिकल यूनिवॢसटी (केजीएमयू) के साथ मिलकर काम करने से संभव हो सकेगा। इसके लिए गुरुवार को दोनों विश्वविद्यालय के बीच करार हुआ। दोनों चिकित्सा क्षेत्र में शोध और तकनीक विकसित करेंगे। प्रारंभिक काम थ्रीडी प्रिटिंग टेक्नोलाजी पर किया जाएगा।
एचबीटीयू के मैकेनिकल इंजीनियरिंग के विशेषज्ञ पिछले दो वर्ष से थ्रीडी प्रिटिंग तकनीक पर कार्य कर रहे हैं। उन्होंने फाइबर से जबड़ा, हाथ के पंजे, दिल का माडल तैयार किया है। यह एक्स-रे, एमआरआइ और सीटी स्कैन की रिपोर्ट के आधार पर बनता है। प्रो. जितेंद्र भास्कर ने बताया कि एक्स-रे की फिल्म से थ्रीडी पिं्रटिंग मशीन से अंग का माडल तैयार किया जा सकता है। एक्स-रे में आई दिक्कत उस माडल पर उतर कर आ जाती है। इससे न्यूरो, दिल, लिवर की गंभीर समस्या होने पर इलाज की प्लानिंग की जा सकती है। एम्स नई दिल्ली और बेंगलुरु और दक्षिण भारत के कुछ अस्पतालों में इस तरह की प्लानिंग होती है।
दोनों विश्वविद्यालय के कुलपति ने किए हस्ताक्षर : करार पत्र पर एचबीटीयू के कुलपति प्रो. शमेशर सिंह और केजीएमयू के कुलपति लेफ्टिनेंट जनरल विपिन पुरी ने हस्ताक्षर किए। एचबीटीयू के कुलसचिव प्रो. नीरज सिंह, प्रो. जितेंद्र भास्कर और केजीएमयू के कुलसचिव प्रो. आरके गर्ग और थ्री डी डीएचआर जेम्स लैब की इंचार्ज प्रो. दिव्या मेहरोत्रा मौजूद रहे।
छात्र दोनों जगह जाकर ले सकेंगे प्रशिक्षण : दोनों विश्वविद्यालय के छात्र एक-दूसरे के यहां प्रशिक्षण ले सकेंगे। एचबीटीयू के छात्र केजीएमयू जाकर उनकी समस्याओं को देखेंगे और नई तकनीक विकसित करेंगे। केजीएमयू के छात्र भी एचबीटीयू आएंगे।