Move to Jagran APP

रामभुलाया बनाम सरकार : आधी सदी बाद खत्म हुई 'तारीख'

पचास साल पुराने भूमि अधिग्रहण के मामले में अब आया फैसला। पीडि़त ने मुआवजे को लेकर दाखिल की थी आपत्ति।

By Edited By: Published: Wed, 07 Nov 2018 02:29 AM (IST)Updated: Wed, 07 Nov 2018 01:02 PM (IST)
रामभुलाया बनाम सरकार : आधी सदी बाद खत्म हुई 'तारीख'
रामभुलाया बनाम सरकार : आधी सदी बाद खत्म हुई 'तारीख'
कानपुर (आलोक शर्मा)। अदालतों के रिकार्ड में ऐसे कई मामले हैं जो दस या उससे अधिक वर्ष से लंबित हैं, लेकिन हाल ही में एक ऐसे मुकदमे में निर्णय आया जिसका विवाद आधी सदी पुराना है। हालांकि 56 वर्ष पुराने इस विवाद में 15 वर्ष पूर्व भी निर्णय हुआ था, जिसके विरोध में केंद्र सरकार ने हाईकोर्ट में अपील की और मामला पुन: जनपद न्यायाधीश को भेज दिया गया।
ये था मामला
डिफेंस ऑफ इंडिया रूल्स के तहत केंद्र सरकार ने 29 मई 1962 को नौरैया खेड़ा में जमीन अधिग्रहण की। इसमे रामलुभाया अरोड़ा की 14.88 एकड़ (79,625 वर्गगज) जमीन अधिग्रहण की गई। जिलाधिकारी ने एक रुपये वर्गगज से भी कम कीमत पर क्षतिपूर्ति 63,894 रुपये तय की। रामलुभाया ने आपत्ति दाखिल की, जिस पर जिलाधिकारी ने जनपद न्यायाधीश को रिफरेंस (आपत्ति) भेज दी। दिसंबर 1976 में तत्कालीन जनपद न्यायाधीश आरसी वाजपेयी आर्बीट्रेटर नियुक्त हुए। इसके बाद मामले की सुनवाई चलती रही।
कई जनपद न्यायाधीशों ने की सुनवाई
इस बीच कई जनपद न्यायाधीश ने बतौर आर्बीट्रेटर यह मामला सुना। 24 मार्च 2003 को जनपद न्यायाधीश शैलेंद्र सक्सेना आर्बीट्रेटर नियुक्त हुए। उन्होंने 11 अगस्त 2003 को जिलाधिकारी द्वारा तय क्षतिपूर्ति को खारिज करते हुए दस रुपये प्रति वर्गगज के हिसाब से जमीन की कीमत तय की। कुल धनराशि का 30 फीसद सोलेटियम (एक तरह की क्षतिपूर्ति) और 12 फीसद ब्याज देने के आदेश दिए थे। इस बीच रामलुभाया की मौत हो गई तो उनके वारिसान प्रकाश चंद्र, रमेश चंद्र और मदन मोहन अरोड़ा समेत पांच लोगों ने पैरवी शुरू की।
भारत सरकार गई हाईकोर्ट
इस निर्णय के खिलाफ भारत सरकार की ओर से हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई। मामले में पक्षकार न बनाने और पक्ष न सुने जाने की अपील पर 6 नवंबर 2017 को हाईकोर्ट की दो सदस्यीय खंडपीठ ने जनपद न्यायाधीश शैलेंद्र सक्सेना द्वारा तय क्षतिपूर्ति के निर्णय को रद कर दिया और फाइल जनपद न्यायाधीश को भेजते हुए चार माह में निर्णय करने का आदेश दिया।
जिलाधिकारी द्वारा तय धनराशि ही मिलेगी
भारत सरकार के मुख्य स्टैंडिंग काउंसिल कौशल किशोर शर्मा ने बताया कि इस मामले में जनपद न्यायाधीश आरके गौतम ने 27 अक्टूबर 2018 को अपना निर्णय दिया। निर्णय के तहत न्यायालय ने जिलाधिकारी द्वारा तय किए गए रेट को सही माना। 12 फीसद सोलेटियम धनराशि और मई 1962 से 6 फीसद ब्याज देने के आदेश न्यायालय ने दिए हैं।

Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.