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नियमों को ताक पर रख चल रहीं निजी बसें, रोजाना एक करोड़ के कारोबार को कमीशन कर देता 50 लाख

अब जोर केवल गुजरात की ओर है और दूसरे नंबर पर दिल्ली है। पंजीकृत ट्रैवल कंपनियों की बसों की तुलना में दूसरी कंपनियों की बसों का किराया भी अधिक होता है। सीजन में किराए में यह अंतर दो गुना तक हो जाता है।

By Akash DwivediEdited By: Published: Mon, 14 Jun 2021 12:41 PM (IST)Updated: Mon, 14 Jun 2021 12:41 PM (IST)
नियमों को ताक पर रख चल रहीं निजी बसें, रोजाना एक करोड़ के कारोबार को कमीशन कर देता 50 लाख
दोगुना या कभी-कभी इससे भी ज्यादा किराया देने के लिए मजबूर होना पड़ता है

कानपुर, जेएनएन। यातायात नियमों को ताख पर रखकर चलाई जा रही निजी बसों में कदम-कदम पर कमीशन का खेल है। एक अनुमान के मुताबिक शहर से चलने वाली निजी बसों का रोजाना का कारोबार एक करोड़ रुपये का है। इसमें से आधा हिस्सा केवल कमीशन में खप जाता है। बस मालिक को तो टिकट मूल्य का केवल आधा हिस्सा ही मिल पाता है। यही वजह है की सवारियों को दोगुना या कभी-कभी इससे भी ज्यादा किराया देने के लिए मजबूर होना पड़ता है।

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235 बसें, रोजाना दस हजार सवारियां : एक अनुमान के मुताबिक पंजीकृत और गैर पंजीकृत निजी बसों से लंबी दूरी के शहरों के लिए लगभग 235 बसें संचालित होती हैं। अनुमान यह भी है कि इन बसों से रोजाना दस हजार लोग कानपुर से दूसरे शहर या दूसरे राज्यों के लिए सफर करते हैं। कोविड काल से पहले शहर से दिल्ली, अहमदाबाद, सूरत, आगरा, जयपुर, अजमेर, गोरखपुर, वाराणसी और उत्तराखंड के लिए बसें मिलती थीं। मगर लॉकडाउन व अधिक सवारियां न मिलने की वजह से संख्या सीमित हो गई है। अब जोर केवल गुजरात की ओर है और दूसरे नंबर पर दिल्ली है। पंजीकृत ट्रैवल कंपनियों की बसों की तुलना में दूसरी कंपनियों की बसों का किराया भी अधिक होता है। सीजन में किराए में यह अंतर दो गुना तक हो जाता है। इसके पीछे बड़ा कारण कदम कदम पर लगने वाला कमीशन है।

ऐसे बंटती है हिस्सेदारी : सूत्रों के मुताबिक अगर रोडवेज बस चालक सवारी देता है तो वह ट्रैवल एजेंसी से किराए का सीधे सीधे 20 फीसद हिस्सा ले लेता है। इसके बाद ट्रैवल कंपनी 15 फीसद हिस्सा अपने पास रखती है और बाकी बचा 15 फीसद हिस्सा पुलिस, आरटीओ और इस खेल को संरक्षण देने वाले नेताओं व कथित पत्रकारों तक पहुंचता है। झकरकटी बस अड्डे पर सक्रिय कथित पत्रकारों का गिरोह सीधे-सीधे 40 फीसद कमीशन लेता है और टिकट काटने वाली एजेंसी को 10 फीसद हिस्सा मिलता है। पुलिस और आरटीओ को इन टिकटों पर कोई कमीशन नहीं मिलता।

फिलहाल अहमदाबाद और सूरत पर जोर : इन दिनों शहर से सबसे ज्यादा सवारियां अहमदाबाद और सूरत के लिए हैं। इन दोनों स्थानों के लिए डेढ़ हजार से तीन हजार रुपये का किराया वसूला जाता है।

यह हैं सवार उठाने के ठिकाने : वैसे जो फजलगंज सबसे बड़ा ठिकाना है, मगर गैरपंजीकृत ट्रैवल एजेंसियों के लिए फजलगंज के अलावा सबसे बड़ा ठिकाना जाजमऊ पुल है। हालांकि ट्रैवल एजेंसियों के दर्जनों गैर पंजीकृत दफ्तर झकरकटी पुल की ढलान से अफीम कोठी चौराहे के बीच हैं। यहां भी सवारियों को एकत्र करके बसों तक पहुंचाया जाता है। इसके अलावा नौबस्ता चौराहा और भौती बाइपास भी सवारियां उठाने के बड़े ठिकाने हैं। 


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