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मंदी का असर, कानपुर के दूसरे सबसे बड़े उद्योग में 30 फीसद तक गिरावट Kanpur News

जानकारों का मानना है कि अगर दीवाली तक बाजार न सुधरा तो कामगारों की छंटनी होना तय है।

By AbhishekEdited By: Published: Tue, 03 Sep 2019 01:38 PM (IST)Updated: Tue, 03 Sep 2019 01:38 PM (IST)
मंदी का असर, कानपुर के दूसरे सबसे बड़े उद्योग में 30 फीसद तक गिरावट Kanpur News
मंदी का असर, कानपुर के दूसरे सबसे बड़े उद्योग में 30 फीसद तक गिरावट Kanpur News

कानपुर, जेएनएन। चमड़ा उद्योग के बाद कानपुर जिले में प्लास्टिक उद्योग सबसे बड़ा माना जाता है। करीब 19 हजार करोड़ के इस उद्योग को भी इन दिनों मंदी के झटके लग रहे हैं। हालांकि घरेलू उपयोग के उत्पादों पर तो इतना असर नहीं है, लेकिन पूरे सेक्टर में 25 से 30 फीसद तक की डिमांड कम बताई जा रही है। हालांकि उद्यमियों को उम्मीद है कि फेस्टिव सीजन में स्थिति सुधरेगी, लेकिन ऐसा न हुआ तो कामगारों की छंटनी भी तय बताई जा रही है।

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प्लास्टिक उद्योग का हब है शहर

कानपुर जिले में प्लास्टिक उद्योग के तहत कई काम होते हैं। इसमें पॉलीबैग के उत्पादन से लेकर पैकेजिंग, बोरी, तिरपाल के साथ घरेलू उपयोग की वस्तुओं का निर्माण आदि शामिल है। सबसे ज्यादा काम पैकेजिंग के क्षेत्र में होता है। खाद्य पदार्थों की पैकेजिंग के निर्माण पर असर इसलिए दिखाई दे रहा है क्योंकि एफएमसीजी (फास्ट मूविंग कंच्यूमर गुड्स) उत्पादों की मांग बाजार में कम हुई है। जिससे पैकिंग का काम भी कमजोर हुआ है।

इसी तरह पॉलीथिन को प्रतिबंधित किए जाने और इस सेक्टर में प्रतिबंध की स्थिति एकदम साफ न होने से पॉलीबैग आदि का निर्माण भी बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। घरेलू उत्पादों कुर्सियां, बाल्टी, मग जैसे सामान की मांग भी इन दिनों कम जरूर है, लेकिन बरसात के सीजन में हर साल यह मंदी आती है। उद्यमियों का कहना है कि हर साल के बरसाती सीजन के मुकाबले इस बार मांग और कम हो गई है क्योंकि बाजार में पैसे का प्रवाह कम है और लोग केवल बेहद जरूरत होने पर ही खरीद कर रहे हैं।

हजारों कामगारों की रोजी पर संकट

शहर में प्लास्टिक उद्योगों की संख्या एक हजार से भी अधिक है। जिसमें काम करने वालों की तादाद लगभग बीस हजार के आसपास है। यदि इस उद्योग पर संकट आया और त्योहारी सीजन तक मांग नहीं बढ़ी तो कामगारों की नौकरी संकट में आ सकती है। फिलहाल अभी किसी तरह की छंटनी नहीं दिख रही है।

इनकी राय भी जानिए, क्यों है मंदी

  • इस बार बाजार की स्थिति अजीब हो गई है। तिरपाल बनाने का काम क्रूड ऑयल पर निर्भर है। इसलिए जब डॉलर चढ़ता है तो डिमांड बढ़ जाती है, लेकिन इस बार उल्टा हो रहा है। डिमांड तीस फीसद तक नीचे आ गई है। इसे मंदी का असर माना जा रहा है। मंदी को देखते हुए लग रहा है कि हालात और खराब होंगे। यह स्थिति चिंताजनक है। -नितिन नेमानी, तिरपाल इंडस्ट्री
  • हमारा काम फूड आइटम की पैकिंग का है। बाजार में खाद्य उत्पादों की डिमांड कम होने से डिमांड 25 से 30 फीसद कम हो गई है। खाद्य उत्पादों के बड़े ब्रांड छंटनी कर रहे हैं तो जाहिर है यह मंदी है और इसका असर हम पर भी है। हमने अभी किसी तरह की कोई छंटनी तो नहीं की है क्योंकि सभी कर्मचारी बेहद पुराने हैं। लेकिन, जब खुद दिक्कत में आ जाएंगे तो कुछ करना पड़ेगा। -हरीश सारावगी, उद्यमी

  • हम घरेलू उपयोग के प्लास्टिक उत्पाद बनाते हैं। इसमें बाल्टी, तसले जैसे उत्पाद शामिल हैं। इन उत्पादों की बाजार में डिमांड 30 से 35 फीसद घटी है। जिन बाजारों में पैर रखने को जगह नहीं मिलती थी, वहां सन्नाटा है। समझ में नहीं आता है कि ये नोटबंदी, जीएसटी का असर है या फिर अमेरिका-चीन के ट्रेडवार का। यह साफ है कि लोगों की जेब का पैसा बाहर नहीं आ रहा है। सरकार मार्केट में पैसे का फ्लो बढ़ाने का दावा कर रही है, लेकिन असर अभी नहीं दिख रहा है। - राकेश गुप्ता, उद्यमी प्लास्टिक हाउस होल्ड

  • मंदी का असर मैं नहीं मानता। बरसात में हर बार ऐसी स्थिति होती है। मार्केट डाउन रहता है। पॉलीमोर बेचने वाली कंपनियां अपने रेट बढ़ा रही हैं तो जाहिर है कि मंदी नहीं है। मंदी होती तो यह दाम नहीं बढ़ाए जाते। अगर दीवाली के दौरान भी बाजार डाउन रहेगा, तभी इसे मंदी का असर माना जा सकता है। -सत्यप्रकाश गुप्ता, उद्यमी पॉलीमोर

  • प्लास्टिक इंडस्ट्री बुरी तरह चौपट हो रही है। सबसे ज्यादा असर तो कैरीबैग निर्माण पर पड़ा है। कई प्रदेशों में 50 माइक्रान से अधिक की पॉलीथिन प्रतिबंधित नहीं है। यूपी में कुछ पता ही नहीं चल रहा है, ऐसे में पैकेजिंग का काम भी प्रभावित हो रहा है। अधिकारी किसी भी स्तर पर कार्रवाई कर देते हैं। स्थिति स्पष्ट होनी चाहिए। रिसाइकिल वाली प्लास्टिक से कैरीबैग बनाने का काम होना चाहिए। प्लास्टिक के अन्य सेक्टरों में भी मंदी का साफ असर है। -हरीश इसरानी, अध्यक्ष, यूपी प्लास्टिक मैन्यूफैक्चरर वेलफेयर एसोसिएशन

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