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लीड : अस्पताल की पड़ताल : सरकारी में परीक्षण, इलाज के लिए निजी अस्पताल

जागरण संवाददाता, कन्नौज : सरकारी अस्पतालों में परीक्षण करने वाले डॉक्टर इलाज के लिए निजी

By JagranEdited By: Published: Sat, 17 Mar 2018 03:02 AM (IST)Updated: Sat, 17 Mar 2018 03:02 AM (IST)
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लीड : अस्पताल की पड़ताल : सरकारी में परीक्षण, इलाज के लिए निजी अस्पताल

जागरण संवाददाता, कन्नौज : सरकारी अस्पतालों में परीक्षण करने वाले डॉक्टर इलाज के लिए निजी क्लीनिक व नर्सिग होम को ज्यादा मुफीद समझते हैं। ओपीडी में मरीजों को देखने के बाद उनको निजी अस्पताल बुलाया जाता है। यह खेल अर्से से चल रहा है। इसके पीछे चिकित्सक खुद सरकारी अस्पताल में बेहतर उपचार न होने का हवाला देते हैं। तमाम उपकरण महज शोपीस बने हुए हैं। सरकारी महकमे में कार्यरत कई डॉक्टर मरीज की नब्ज पकड़ने से पहले 100 से 500 रुपये तक का शुल्क वसूलते हैं। इसके बाद उनको भर्ती करने के नाम पर हजारों रुपये का चूना लगाते हैं। जगह-जगह खुले कई बिना मानक नर्सिंग होम पर भी किसी की निगाह नहीं पड़ती है। इसी तरह आशा बहुओं व स्टाफ नर्स का प्रसव में खूब खेल चलता है। यह महिलाओं को सरकारी के बजाय निजी अस्पतालों में सुरक्षित प्रसव की सलाह देकर माल कमा रही हैं। कई बार जांच में सच्चाई पकड़े जाने के बाद भी बचा दिया जाता है।

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एक्सरे-अल्ट्रासाउंड मशीनें अक्सर खराब, बाहर से जांच

सरकारी अस्पताल में लाखों रुपये की मशीनें धूल खा रही हैं। जिला अस्पताल, मेडिकल कालेज से लेकर सामुदायिक व प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र समेत तकरीबन सभी जगह कमीशन का खेल चल रहा है। दो से चार घंटे एक्सरे व अल्ट्रासाउंड कक्ष खुलते हैं। उस पर भी मशीनें अक्सर खराब होने की पीड़ा मरीजों को झेलनी पड़ती है। मशीनें ठीक होने पर टेक्नीशियन या चिकित्सकों की कमी का हवाला देकर टालमटोल होती है। इससे अक्सर जरूरतमंद बाहर से जांच कराते हैं।

अधिकारी व कर्मी बाहर कराते इलाज

अधिकारी व कर्मचारी सरकारी अस्पतालों की सुविधाओं से वाकिफ हैं। इसलिए छोटी बीमारियों पर भी सरकारी अस्पतालों में नहीं जाते हैं। न किसी अपने को उपचार की राय देते हैं। सरकारी अस्पताल में चिकित्सक नहीं आते हैं। जांच केंद्रों की स्थिति खराब है। इमरजेंसी में चिकित्सक नहीं बैठते हैं। परिसर में चिकित्सकों व कर्मियों को ढूंढना पड़ता है। जिला अस्पताल की बात करें तो यहां फिजीशियन, कार्डियोलाजिस्ट समेत तमाम विशेषज्ञ चिकित्सकों की अर्से से कमी है। इमरजेंसी के चिकित्सक ओपीडी भी चलाते हैं। तिर्वा में राजकीय मेडिकल कालेज है। इसके बाद भी अधिकारी व कर्मचारी लखनऊ व कानपुर में इलाज कराने जाते हैं।

बोले जिम्मेदार

चिकित्सकों व कर्मियों की कमी है। निजी प्रैक्टिस पर रोक लगाई जाएगी। बाहरी इलाज या जांच लिखने पर सीधे शिकायत करें। कार्रवाई की जाएगी। जिला अस्पताल में डिजिटल मशीन खराब है, जबकि दूसरी मशीन से एक्सरे किए जा रहे हैं। काफी सुधार हुआ है।

-डा. कृष्ण स्वरूप, मुख्य चिकित्सा अधिकारी।


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