देर रात मेडिकल कॉलेज न आना, डॉक्टर सो रहे हैं
जागरण संवाददाता, कन्नौज : अगर देर रात आपकी तबियत खराब हो गई तो मेडिकल कॉलेज भूलकर भी
जागरण संवाददाता, कन्नौज : अगर देर रात आपकी तबियत खराब हो गई तो मेडिकल कॉलेज भूलकर भी मत आइएगा। क्योंकि यहां के डॉक्टर सो रहे हैं। जितना समय आप उनकी मर चुकी इंसानियत को जगाने में व्यर्थ करेंगे, उतनी ही देर में किसी अन्य अस्पताल जाकर आप अपने की जान बचा पाएंगे।
मेडिकल कॉलेज जब बना था तो लोगों को लगा था कि आधुनिक सुविधाओं से लैश यह अस्पताल उनकी परेशानियों को दूर करेगा। मगर लोगों को क्या पता था, उपकरण तो आधुनिक होंगे, मगर यहां ऐसे डॉक्टर तैनात होंगे, जो आराम पसंद और लापरवाह होंगे। उनके लिए मरीज की जान कम, नींद अधिक जरूरी होगी। मंगलवार रात बहादुरपुर निवासी प्रसूता को महज इसलिए नहीं भर्ती किया गया, क्योंकि यहां के स्टाफ की नींद खराब हो जाती। प्रसूता दर्द से कराहते हुए मिन्नतें कर रही थी, मगर पत्थर दिल डॉक्टर नहीं पसीेजे। लिहाजा अस्पताल के गेट पर ही प्रसव हो गया। डॉक्टरों की संवेदनहीनता अब भी जारी थी। परिजनों ने जब टीकाकरण को बोला तो भी स्टाफ ने मना कर दिया। यह कोई घटना पहली नहीं थी, इससे पहले भी डॉक्टर अपना अमानवीय चेहरा दिखा चुके हैं। यहां पर खुले में प्रसव होना आम बात हो गई। तीन बार खुले आसमान में साड़ियों के आड़ में प्रसव हो चुके हैं।उच्च अधिकारी टालने वाली बात कहकर इन लापरवाह डॉक्टरों को बचा लेते हैं।
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यह हो चुकीं घटनाएं
2017 अक्टूबर में जनरल वार्ड के बाहर हसेरन की महिला का प्रसव
2017 जून में प्रसूति विभाग के बाहर गैलरी में जन्मा था बच्चा
2016 अगस्त को शैक्षणिक व जनरल वार्ड के बीच रोड पर प्रसव
---------- एक डॉक्टर के भरोसे प्रसूति विभाग, कैसे हो आपरेशन?
संवाद सहयोगी, तिर्वा : राजकीय मेडिकल कालेज में सामान्य प्रसव ही हो पा रहे मेडिकल कालेज में स्त्री रोग एवं प्रसूति विभाग में हेड ऑफ डिपार्टमेंट डॉ. रेनू गुप्ता, जो महज हफ्ते में तीन दिन आती और ओपीडी में मरीजों को देख वापस घर को रवाना हो जाती है। इनके निर्धारित दिन और ओपीडी के वक्त सुबह 10 बजे से दोपहर दो बजे तक कोई आपेरशन की जरुरत हो तो तभी प्रसव संभव हो पाता है। इसके अलावा रोजाना ड्यूटी पर सीनियर डॉ. दिव्या व छह जूनियर डॉक्टर मिलती है। इससे प्रसूताओं को काफी दिक्कतें होती है।
-सोने वाली बात गलत है, जिस समय प्रसूता पहुंची थी। उस समय एक और केस आया था। परिजनों से बैठने के लिए कहा गया था, तो परिजन उसे बाहर ले गए।
- ज्ञानेंद्र कुमार, प्राचार्य , राजकीय मेडिकल कॉलेज।