पक्षी बिहार की दुर्दशा, घूम रहे आवारा जानवर
संवाद सहयोगी तिर्वा लाख बहोसी पक्षी बिहार इस वर्ष दुर्दशा का शिकार हो गया। पक्षी बिहार की
संवाद सहयोगी, तिर्वा: लाख बहोसी पक्षी बिहार इस वर्ष दुर्दशा का शिकार हो गया। पक्षी बिहार की झील में पानी न होने से विदेशी तो दूर स्वदेशी पक्षी भी नहीं आए। इससे झील में आवारा मवेशियों का चारागाह बन गया। पर्यटक मायूस होकर लौट रहे।
तहसील क्षेत्र के लाख बहोसी पक्षी बिहार 1988-89 में बनाया गया था और 80 वर्ग किलोमीटर के दायरे में है। यहां पर प्राकृतिक सौंदर्य का नजारा प्रतिवर्ष सर्दी में दिखाई देता था। सर्दी की शुरूआत होने कई देशों से पक्षी आने लगते थे। मौसम ढ़लते ही फरवरी में वापस अपने देशों को पक्षी लौट जाते थे। विदेशी पक्षियों के अलावा स्वदेशी पक्षी कई प्रांतों से आते थे। इसमें करीब 40 हजार विदेशी पक्षी व 70 हजार के लगभग स्वदेशी पक्षी आते थे। उनकी अटखेली देखने के लिए आसपास जिलों से पर्यटक आते थे। इस वर्ष झील में पानी नहीं भर सका। इससे विदेशी तो दूर स्वदेशी पक्षी भी नजर नहीं आ रहे। झील में आवारा जानवर घूम रहे और पालतू जानवरों के लिए झील चारागाह बन गई है। इन देशों से आते थे पक्षी
चाइना से कूट, साइबेरिया से गर्गनी टील, श्रीलंका से कूट, सेंट्रल एशिया से सोबलर, यूरोप से नार्दन, दक्षिण भारत से स्पोट बिल डक, कोमक डक, स्नेक वर्ड, कारवोरेंट, ई-ग्रेट, हेरान, पेनटड, स्ट्रोक व स्पोनबिल समेत कई देशों से परिदे आते हैं। चार वर्ष से ट्यूबवेल को नहीं मिला करंट
निचली गंग नहर से प्रतिवर्ष झील में पानी भरा जाता था। नहर में पानी न होने पर झील भरने के लिए दो ट्यूबवेल लगाए गए। ट्यूबवेल के पोल व तार पक्षियों की सुरक्षा को लेकर हटा दिए गए थे। भूमिगत केबल डालने का प्रस्ताव था। भूमिगत केबल चार वर्ष से नहीं पड़ सकी। इससे ट्यूबवेल चालू नहीं हो सके। नहर सूखी होने से परिदे नहीं आए। नहर से पानी भरा जाता था, लेकिन इस वर्ष नहर भी सूखी है। दो ट्यूबवेल लगे हैं, लेकिन बिजली कनेक्शन नहीं। इससे दिक्कतें बनी है। प्रस्ताव भेजा जा चुका है। एक बार फिर से रिमाइंडर भेजा जाएगा।
सुशील श्रीवास्तव, रेंजर