बलिदानियों की याद दिलाता बरगद का वृक्ष
जिला मुख्यालय से 15 किमी दूर ठठिया में बरगद का एक पुराना दरख्त है जो आजादी के बलिदानियों
जिला मुख्यालय से 15 किमी दूर ठठिया में बरगद का एक पुराना दरख्त है, जो आजादी के बलिदानियों की याद दिलाता है। यहीं पर अंग्रेजों ने 16 क्रांतिकारियों को एक साथ फांसी पर लटकाया था। आज भी बरगद का यह वृक्ष स्वतंत्रता के लिए प्राण गवांने वालों की स्मृति को ताजा करता है। गर्व की बात यह है कि एक छोटे से गांव से निकली क्रांति की ज्वाला ने विकराल रूप धारण कर लिया था, जिसने बाद में ब्रिटिश शासन की चूलें हिला दीं थीं। पर अफसोस इस बात का भी है कि देश आजाद होने के बाद यहां कोई स्मारक भी नहीं बनाया गया।
ब्रिटिश शासन के दौरान 1898 में क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों से लोहा लेने की रणनीति बनाई, जिसकी भनक अंग्रेज अधिकारियों को लग चुकी थी। ठठिया की कमान जिस फिरंगी अफसर के हाथ में थी, वह एक नजदीकी रियासत में रहता था। रात में क्रांतिकारियों ने एक राय होकर घुड़साल पर धावा बोल दिया सिपाहियों को मारपीट कर उनकी बंदूकें छीन लीं और सभी घोड़ों को बंधन मुक्त कर दिया। अंजाम पूरे ठठ्ठगढ़ को भुगतना पड़ा दूसरे दिन सुबह अंग्रेजी फौजों ने ठठिया को चारों ओर से घेर लिया और पूरे दिन बुजुर्गों बच्चों और महिलाओं पर अंधाधुंध कोड़े बरसाए। क्रांतिकारियों को जब सहन नहीं हुआ तब वह किसी तरह छतों पर चढ़कर फिरंगियों पर पथराव करने लगे, जिससे खिसियाए फिरंगी अधिकारी ने गोली मारने के आदेश दे दिए। फायरिग में कई क्रांतिकारी शहीद हो गए। 16 क्रांतिकारी हिरासत में ले लिए गए, जिन पर बर्बरतापूर्वक कोड़े बरसाते हुए सैनिक पुरानी ठठिया स्थित बरगद के पेड़ के पास ले गए और उन्हें सामूहिक फांसी दे दी गई। इसके बाद ऐलान कर दिया गया कि जिस किसी ने भी इनका क्रिया कर्म किया उनका भी यही हाल होगा।
प्रस्तुति : ज्योति अग्निहोत्री, ठठिया कन्नौज