राजनीति के चक्रव्यूह में बुन्देलखण्ड राज्य
झाँसी : विधानसभा चुनाव का शंखनाद होते ही बुन्देलखण्ड राज्य का मुद्दा एक बार फिर राजनीति के चक्रव्यूह
झाँसी : विधानसभा चुनाव का शंखनाद होते ही बुन्देलखण्ड राज्य का मुद्दा एक बार फिर राजनीति के चक्रव्यूह में फँसता दिख रहा है। राज्य के पैरोकार अलग राज्य को लेकर किए गए पुराने वादों का हिसाब माँगने लगे हैं तो कुछ पैरोकारों ने इस बार भी इस खालिस मुद्दे के बल पर चुनावी वैतरणी पार लगाने की तैयारी कर ली है। यह मुद्दा जनता के दिल को छू पाएगा, अतीत के अनुभव इसे लेकर सवाल खड़े कर रहे हैं। दरअसल, सूखे व प्राकृतिक आपदाओं से उपजी त्रासदी से राजनैतिक गलियारों को सुर्ख करने वाला बुन्देलखण्ड कभी अलग राज्य की अंगड़ाई बनकर चुनावी परिणाम प्रभावित करने में कामयाब नहीं हो सका। इतिहास के पन्नों में ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जिसमें बुन्देलखण्ड राज्य के मुद्दे को बुन्देलखण्ड के लोगों ने ही शिकस्त दी है।
बुन्देलखण्ड राज्य के नाम पर लड़ा चुनाव, नहीं बचा पाए जमानत
देश की स्वतन्त्रता के साथ ही शुरू हुई बुन्देलखण्ड राज्य की माँग को राजनैतिक मुकाम कभी नहीं मिल पाया। इस मुद्दे को जनता की कचहरी में भी हार ही मिली। ़जमीन पर बुन्देलखण्ड राज्य के लिए बड़ा आन्दोलन खड़े करने वाले सबसे बड़े पैरोकार शंकर लाल मेहरोत्रा ने बुन्देलखण्ड मुक्ति मोर्चा के बैनर तले वर्ष 1996 में बुन्देलखण्ड राज्य के मुद्दे पर विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन जनता ने उन्हें सिर्फ 2,789 वोट दिए और वह जमानत भी नहीं बचा पाए। इसी चुनाव में बुन्देलखण्ड मुक्ति मोर्चा ने मऊरानीपुर में निर्मला को चुनाव लड़ाया, जिन्हें सिर्फ 691 वोट ही मिले। इसके बाद से ही राजनैतिक दलों ने बुन्देलखण्ड राज्य के मुद्दे से लगभग तौबा कर ली। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में सिने अभिनेता राजा बुन्देला ने एक बार फिर बुन्देलखण्ड राज्य के फॉर्मूले को हवा दी। उन्होंने बुन्देलखण्ड कौंग्रेस बनाकर चुनाव लड़ा। उन्हें केवल 1,897 वोट मिले और वह अपनी जमानत जब्त करवा बैठे। इसी संगठन से गरौठा सीट से जगत सिंह राजपूत 388 वोट पाकर जमानत जब्त करा लिया। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में बुन्देलखण्ड मुक्ति मोर्चा से सुयोग्य कुमार शर्मा ने बबीना सीट से भाग्य आजमाया, लेकिन उन्हें भी महज 382 मतों पर ही सन्तोष करना पड़ा और उनकी भी जमानत राशि जब्त कर ली गई। वर्ष 2017 के चुनाव में बुन्देलखण्ड क्रान्ति दल से सतेन्द्र पाल सिंह ने चुनाव लड़ा और उन्हें 671 मत ही मिले। चुनावों में ऐसे परिणामों ने ही बुन्देलखण्ड राज्य के मुद्दे को राजनैतिक सफलता हासिल नहीं होने दी है।
बुन्देलखण्ड राज्य को लेकर प्रमुख घटनाएं
0 बुन्देलखण्ड राज्य की लड़ाई को मुकाम पर पहुँचाने के लिए वर्ष 1989 में बुन्देलखण्ड मुक्ति मोर्चा का गठन किया गया और बागडोर शंकर लाल मेहरोत्रा ने सँभाली।
0 इस संगठन ने आन्दोलन शुरू किए। दिल्ली, लखनऊ, भोपाल में पैरोकारों ने धरना, प्रदर्शन और अनशन किए, लेकिन आवा़ज अनसुनी कर दी गई। संगठन ने आन्दोलन उग्र कर दिया। ट्रेन रोकी गई। कई बार तो लाइन मैन व गेट मैन तक को अगवा किया गया, ताकि ट्रेन के पहिए थामे जाएं। उनके साथ राजा मधुकर शाह (टीकमगढ़) भी आन्दोलन का झण्डा थामे रहे।
0 शंकर लाल मेहरोत्रा के नेतृत्व में 24 अप्रैल 1993 में मध्य प्रदेश विधानसभा में पृथक राज्य की माँग को लेकर पर्चे फेके गये।
0 शंकर लाल मेहरोत्रा के ही नेतृत्व में बुन्देलखण्ड राज्य के पैरोकारों ने 25 मार्च 1995 में लोकसभा में पर्चे उछाले गए तो बुन्देलखण्ड राज्य का आन्दोलन को राजनैतिक गलियारों में सुर्ख हो गया।
0 31 मार्च 2008 को कानपुर में हुए अधिवेशन में सोनिया गाँधी व राहुल गाँधी के सामने पृथक बुन्देलखण्ड राज्य का प्रस्ताव पारित किया गया।
0 18-19 मई 2011 को वाराणसी अधिवेशन में भी प्रस्ताव पारित हुआ तथा राज्य पुनर्गठन द्वितीय की वकालत की गई।
0 फरवरी 2012 में बहुजन समाज पार्टी ने उप्र को चार भागों में बाँटने का प्रस्ताव विधानसभा में पारित किया।
0 बसपा के इस सियासी खेल में फँसी कौंग्रेस ने प्रस्ताव में तमाम खामियाँ गिना दीं और राज्य का विभाजन अधर में अटक गया।
0 वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में झाँसी-ललितपुर सीट से चुनाव लड़ रहीं भाजपा की प्रत्याशी उमा भारती ने जनता से पृथक राज्य देने का वादा किया।
बुन्देलखण्ड का अतीत
15 अगस्त 1947 को भारत की आ़जादी के साथ ही देशी राज्यों को अंग्रे़जों ने सन्धियों मुक्त कर दिया। तत्कालीन उप-प्रधानमन्त्री व गृहमन्त्री वल्लभभाई पटेल की पहल पर 12 मार्च 1948 को इस क्षेत्र की देशी रियासतों का विलय हुआ। भारत सरकार ने माना था कि इस भू-भाग का तभी विकास हो सकता है जब इसकी अपनी विधायिका, कार्यपालिका और न्याय पालिका हो। तब संयुक्त राज्य विन्ध्य प्रदेश का निर्माण हुआ, जिसकी दो इकाइयाँ बनाई गई - बुन्देलखण्ड व बघेलखण्ड। बुन्देलखण्ड राज्य की राजधानी नौगाँव (छतरपुर) बनाई गई, जिसका मुख्यमन्त्री कामता प्रसाद सक्सेना को बनाया गया, लेकिन 3 माह में ही इसका विलय विन्ध्य प्रदेश में हो गया और राजधानी रीवा (मध्य प्रदेश) घोषित कर दी गई। कालान्तर में इसे भी समाप्त कर मध्य भारत में यह भू-भाग शामिल किया गया और राजधानी नागपुर (महाराष्ट्र) बना दी गई। वर्ष 1955 में राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन किया गया, जिसने वर्ष 1956 में रिपोर्ट दी। इसके बाद विन्ध्य प्रदेश को उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश के बीच बाँट दिया गया, जो स्थिति अब भी बरकरार है।
बुन्देलखण्ड राज्य के पैरोकार नहीं बना सके जनान्दोलन
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हरगोविन्द कुशवाहा
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मुकुन्द मेहरोत्रा
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डॉ. किशन यादव
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प्रदीप चौबे
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यह बोले जानकार
0 इतिहासकार हरगोविन्द कुशवाहा का मानना है कि बुन्देलखण्ड राज्य की पैरोकारी करने वालों ने ईमानदारी से प्रयास नहीं किया। उन्होंने केवल अपनी राजनैतिक रोटियाँ सेंकने का काम किया। बुन्देलखण्ड राज्य की माँग करने वालों की स्थिति '13 मासे तीन किसान, खेलन खेतन बहुअन घर' जैसी है, जो एक मंच पर नहीं आ सके।
0 बुन्देली संस्कृति के जानकार मुकुन्द मेहरोत्रा का कहना है कि बुन्देलखण्ड राज्य का मुद्दा उठाने वाले जनता के सामने सही स्थिति रखने में नाकाम रहे। पहले यह क्षेत्र विन्ध्याचल के नाम से दो बार अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में रहा, लेकिन बाद में इसे खत्म कर दिया गया। फिर किसी ने इस मुद्दे पर ईमानदारी से काम नहीं किया।
0 बुन्देलखण्ड कॉलिज के राजनीति विज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ. किशन यादव का कहना है कि बुन्देलखण्ड के पास आत्मनिर्भर बनने के लिये खुद के संसाधन नहीं हैं। इस कारण सरकार भी अलग राज्य बनाने का जोखिम नहीं उठाती। दूसरी ओर सही तरीके से आन्दोलन खड़ा करने के लिये कोई असरदार चेहरा जनता के सामने नहीं आ सका, जिस पर भरोसा किया जा सके।
0 बुन्देलखण्ड विकास बोर्ड के सदस्य प्रदीप चौबे बोले कि बुन्देलखण्ड प्रान्त बनाने का उद्देश्य विकास ही है, जो वर्तमान सरकार पूरी तरह से कर रही है। बुन्देलखण्ड विकास बोर्ड भी इसी की कड़ी है। बुन्देलखण्ड में सौर ऊर्जा का हब बनने जा रहा है, जिससे इस इलाके को कोई पिछड़ा नहीं कह पायेगा।
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भानुसहाय
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सत्येन्द्र पाल सिंह
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हरीश कपूर
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यह बोले पैरोकार
0 बुन्देलखण्ड निर्माण मोर्चा के अध्यक्ष भानुसहाय ने बिना लाग लपेट के स्वीकार किया कि लोगों को पृथक राज्य का मुद्दा समझाने में संगठन सफल नहीं हुये। जिन पर भरोसा किया वह इस मुद्दे को लेकर संसद-विधानसभा में पहुँचे, लेकिन बाद में पार्टी की लीक से हटकर आवा़ज उठाने से मना कर दिया। हमें धनबल नहीं मिला, इसलिये जनबल भी खड़ा नहीं कर सके।
0 बुन्देलखण्ड क्रान्ति दल के अध्यक्ष सत्येन्द्र पाल सिंह ने कहा कि पृथक राज्य के फायदों के बारे में जनता तक सही तरीके से बात नहीं पहुँचा सके। जो लोग बुन्देलखण्ड राज्य की माँग करते हैं, वे भी चुनाव में बुन्देलखण्ड के पैरोकारों को वोट नहीं देते। जनता भी दलगत और जातिगत हिस्सों में बँट जाती है।
0 बुन्देलखण्ड सेना के अध्यक्ष हरीश कपूर 'टीटू' कहते हैं कि चुनाव आते ही नेताओं को बुन्देलखण्ड राज्य की बात याद आती है, लेकिन 5 साल बुन्देलखण्ड का जिक्र तक नहीं करते। निर्वाचित सांसद या विधायक एक बार भी सदन में बुन्देलखण्ड राज्य की आवाज को बुलन्द नहीं करते।
फाइल : राजेश शर्मा