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जेब्रा अब स्वाभिमानियों का बना मददगार

वे बेबस हैं। काम-धंधा बंद हो जाने से अक्सर उनके घर का चूल्हा ठंडा रहता है। आश्रित पाल्य पेट की भूख मिटाने की आस में उनकी तरफ आशाभरी नजरों से देखते हैं तो कलेजा फट उठता है पर समाज में उनकी पहचान बहुत संपन्न नहीं तो खाते-पीते परिवार की जरूरत है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 24 May 2020 05:32 PM (IST)Updated: Sun, 24 May 2020 05:32 PM (IST)
जेब्रा अब स्वाभिमानियों का बना मददगार
जेब्रा अब स्वाभिमानियों का बना मददगार

जासं, जौनपुर: वे बेबस हैं। काम-धंधा बंद हो जाने से अक्सर उनके घर का चूल्हा ठंडा रहता है। आश्रित पाल्य पेट की भूख मिटाने की आस में उनकी तरफ आशाभरी नजरों से देखते हैं तो कलेजा फट उठता है, पर समाज में उनकी पहचान बहुत संपन्न नहीं तो खाते-पीते परिवार की जरूरत है। ऐसे हालात में भी वे किसी के आगे हाथ पंसारने में संकोच करते हैं, क्योंकि आत्मसम्मान आड़े आ जाता है। कोरोना वायरस रूपी वैश्विक महामारी के चलते लॉकडाउन के तीसरे और अब चौथे चरण में ऐसे ही स्वाभिमानियों का बड़ा मददगार बन गया है जिले का अग्रणी रचनात्मक व सामाजिक संगठन 'जेब्रा फाउंडेशन ट्रस्ट।' इनके लिए 'जेब्रा बैग' मां अन्नपूर्णा के प्रसाद जैसा साबित हो रहा है। फाउंडेशन के लोग रोजाना ऐसे 20-25 स्वाभिमानियों को चिह्नित करते हैं। फिर उनके आत्मसम्मान का पूरा ख्याल करते हुए 'जेब्रा बैग' उपलब्ध कराते हैं। समाजसेवा का न दिखावा और न ही कोई फोटोग्राफी, जिससे उसे स्वीकारने में झिझक महसूस हो। यदि वह चाहता है कि संगठन के लोग बैग लेकर उसके घर न आएं तो वे उसके बताए स्थान पर पहुंचा देते हैं। यदि उसकी मर्जी होती है तो खुद संगठन के कार्यालय जाकर बैग ले लेता है। संगठन के अध्यक्ष संजय कुमार सेठ, विजयंत सोंथालिया, अनंत श्रीवास्तव, अमरनाथ सेठ राजू, रवि मनोज विश्वकर्मा, मो. तौफीक राजू, आशीष वाधवा, नीरज शाह, तथागत सेठ आदि पूरे मनोयोग से यह कार्य कर रहे हैं।

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