श्रमजीवी विस्फोट कांड:आतंकियों के व्यक्तिगत बंधपत्र की दरखास्त स्वीकार
श्रमजीवी विस्फोट कांड के आरोपितों के व्यक्तिगत बंधपत्र देने का प्रार्थना पत्र अपर सत्र न्यायाधीश प्रथम के कोर्ट ने स्वीकार किया गया। सीआरपीसी की धारा 437 ए के तहत बहस के पूर्व कोर्ट ने उनसे जमानतदार देने की बात कही थी। आतंकियों ने अधिवक्ता के माध्यम से कोर्ट में दरखास्त दिया था कि दौरान विचारण वे जमानत पर नहीं रहे हैं न उनका कोई जमानतदार ही है। इसके पूर्व एडीजीसी अनूप शुक्ला ने अभियोजन पक्ष से बहस प्रारंभ करने को कहा।
जागरण संवाददाता, जौनपुर: श्रमजीवी विस्फोट कांड के आरोपितों के व्यक्तिगत बंधपत्र देने का प्रार्थना पत्र अपर सत्र न्यायाधीश प्रथम के कोर्ट ने स्वीकार किया गया। सीआरपीसी की धारा 437 ए के तहत बहस के पूर्व कोर्ट ने उनसे जमानतदार देने की बात कही थी। आतंकियों ने अधिवक्ता के माध्यम से कोर्ट में दरखास्त दिया था कि विचारण के दौरान वे जमानत पर नहीं रहे हैं, न उनका कोई जमानतदार ही है। इसके पूर्व एडीजीसी अनूप शुक्ला ने अभियोजन पक्ष से बहस प्रारंभ करने को कहा।
हरपालगंज स्टेशन के पास 28 जुलाई 2005 को श्रमजीवी एक्सप्रेस ट्रेन में हुए बम विस्फोट के मामले में बांग्लादेशी आतंकवादी रोनी उर्फ आलमगीर एवं ओबैदुर्रहमान को फांसी की सजा सुनाई गई है, जिसके खिलाफ अपील हाईकोर्ट में लंबित है। आतंकी रोनी के अवयस्क होने की अपील को भी जिला जज ने निरस्त कर दिया। पूर्व में आतंकी रोनी ने नैनी जेल से यहां के अधिवक्ता श्याम शंकर तिवारी को पत्र लिखा था कि आप हाईकोर्ट में अपील के लिए मुकदमे की पैरवी करें। खर्च की चिता न करें। कट्टरपंथी संगठन से जुड़े लोगों द्वारा आतंकियों की पैरवी करने का उल्लेख पत्र में था। सजायाफ्ता दोनों आतंकियों ने हाईकोर्ट में महंगे वकीलों को किया है। इसके अलावा यहां विचाराधीन आतंकी हिलाल व नफीकुल की पैरवी भी आजमगढ़ व दीवानी के अधिवक्ता करते हैं। लखनऊ से भी यहां के अधिवक्ताओं को फोन आते हैं। प्रश्न यह उठता है कि बहस के पूर्व आतंकी जमानत देने में असमर्थता जताते हैं दूसरी तरफ विभिन्न जिलों के महंगे वकील उनकी पैरवी करते हैं?