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टीकाकरण ही पशुओं के बचाव का प्रमुख उपाय

खुरपका-मुंहपका बीमारी पशुओं के स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह है। यह अत्यंत संक्रामक एवं घातक विषाणुजनित रोग है। इसकी चपेट में गाय भैंस भेड़ बकरी सूअर आदि पालतू पशुओं के अलावा हिरन जैसे जंगली पशु आ जाते हैं। तेज बुखार तथा बीमार पशु के मुंह मसूड़े जीभ के ऊपर नीचे ओंठ के अंदर का भाग खुरों के बीच छोटे-छोटे दाने उभर आते हैं। धीरे-धीरे यह दाने आपस में मिलकर बड़ा छाला बनाते हैं और आगे चलकर घाव हो जाता है। जिससे पशु जुगाली करना बंद कर देता है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 11 Aug 2020 11:20 PM (IST)Updated: Wed, 12 Aug 2020 06:03 AM (IST)
टीकाकरण ही पशुओं के बचाव का प्रमुख उपाय
टीकाकरण ही पशुओं के बचाव का प्रमुख उपाय

जौनपुर: खुरपका-मुंहपका बीमारी पशुओं के स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह है। यह अत्यंत संक्रामक एवं घातक विषाणुजनित रोग है। इसकी चपेट में गाय, भैंस, भेड़, बकरी, सूअर आदि पालतू पशुओं के अलावा हिरन जैसे जंगली पशु आ जाते हैं। तेज बुखार तथा बीमार पशु के मुंह मसूड़े, जीभ के ऊपर, नीचे ओंठ के अंदर का भाग, खुरों के बीच छोटे-छोटे दाने उभर आते हैं। धीरे-धीरे यह दाने आपस में मिलकर बड़ा छाला बनाते हैं और आगे चलकर घाव हो जाता है। जिससे पशु जुगाली करना बंद कर देता है। चपेट में आने से दुग्ध देना पशु कम कर देते हैं और प्रजनन क्षमता भी प्रभावित हो जाती है। पशु चिकित्साधिकारी डॉ. एसके अग्रवाल ने बताया कि टीकाकरण ही इससे बचाव का प्रमुख उपाय है। पशुपालन विभाग द्वारा लगातार चल रहे टीकाकरण अभियान के कारण बीमारी पर काफी हद तक नियंत्रण हो गया है।

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ये हैं मुख्य लक्षण..

-प्रभावित होने वाले पैर को झाड़ना (पटकना)।

-लंगड़ा कर चलना।

-खुर में घाव होना व घावों में कीड़े पड़ जाना।

-मुंह से लार गिरना, जीभ, मसूड़े, ओंठ आदि पर छाले पड़ जाना।

-दुग्ध उत्पादन में कमी, हांफना।

-प्रजनन क्षमता प्रभावित होना।

-शरीर में रोएं व खुर बहुत बढ़ जाते हैं। गर्भवती पशुओं में गर्भपात की संभावना बनी रहती है।

उपचार के प्रमुख उपाय

-पशु के पैर को नीम एवं पीपल की छाल का काढ़ा बनाकर दिन में दो बार धोएं।

-फिनायलयुक्त पानी से दिन में दो-तीन बार धोकर मक्खी को दूर रखने वाली दवा का प्रयोग करें।

-मुंह के छाले को एक प्रतिशत फिटकिरी 100 मिलीलीटर पानी में घोलकर दिन में तीन बार धोएं।

-पीड़ित पशु को सुपाज्य और पौष्टिक आहार दें।

-पशु चिकित्सक के परामर्श पर दवा दें।

ये बरतें सावधानी..

प्रभावित पशु को साफ एवं हवादार स्थान पर अन्य पशुओं से दूर रखें। पशुओं की देखरेख करने वाले व्यक्ति को भी हाथ-पांव अच्छी तरह साफ करके ही दूसरे पशुओं के पास जाना चाहिए।


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