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पुरखों की धरोहर दरी कारोबार से शाकिब जला रहे 55 घरों का चूल्हा

वेंटिलेटर पर चल रहे दरी उद्योग को नई दिशा देने में रामनगर ब्लाक के शाकिब अंसारी ने दिन-रात एक कर दिया है। दरी का यह कारोबार उन्हें पुरखों से मिला है। जिसे सहेजते हुए वह आज 55 परिवारों में चूल्हा जला रहे हैं। यह शाकिब के दृढ़ इच्छाशक्ति का ही परिणाम है कि विपरीत समय में भी उन्होंने अपने हौसले को नहीं टूटने दिया। बुनाई का अधिकतर कार्य मशीनों से होने के बावजूद हाथों से कराई जाने वाली बुनाई भी अपने आप में खास है। शाकिब के दादा कुतुबुद्दीन ने पचास वर्ष पहले इस कारोबार को शुरू किया था। कुतुबुद्दीन के बाद उनके बेटे ताजुद्दीन ने इसमें हाथ बंटाना शुरू किया। देखते ही देखते इस कार्य में बरक्कत हुई तो कारीगरों की संख्या भी बढ़ने लगी। ताजुद्दीन के बाद उनके बेटे शाकिब ने इस कार्य को थाम पुरखों के इस विरासत को आगे बढ़ाया।

By JagranEdited By: Published: Mon, 10 Aug 2020 10:47 PM (IST)Updated: Mon, 10 Aug 2020 10:47 PM (IST)
पुरखों की धरोहर दरी कारोबार से शाकिब जला रहे 55 घरों का चूल्हा
पुरखों की धरोहर दरी कारोबार से शाकिब जला रहे 55 घरों का चूल्हा

जौनपुर: वेंटिलेटर पर चल रहे दरी उद्योग को नई दिशा देने में रामनगर ब्लाक के शाकिब अंसारी ने दिन-रात एक कर दिया है। दरी का यह कारोबार उन्हें पुरखों से मिला है। जिसे सहेजते हुए वह आज 55 परिवारों में चूल्हा जला रहे हैं। यह शाकिब के दृढ़ इच्छाशक्ति का ही परिणाम है कि विपरीत समय में भी उन्होंने अपने हौसले को नहीं टूटने दिया। बुनाई का अधिकतर कार्य मशीनों से होने के बावजूद हाथों से कराई जाने वाली बुनाई भी अपने आप में खास है। शाकिब के दादा कुतुबुद्दीन ने पचास वर्ष पहले इस कारोबार को शुरू किया था। कुतुबुद्दीन के बाद उनके बेटे ताजुद्दीन ने इसमें हाथ बंटाना शुरू किया। देखते ही देखते इस कार्य में बरक्कत हुई तो कारीगरों की संख्या भी बढ़ने लगी। ताजुद्दीन के बाद उनके बेटे शाकिब ने इस कार्य को थाम पुरखों के इस विरासत को आगे बढ़ाया। कभी विदेशों तक होता था निर्यात

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वर्ष 2008 में रामनगर ब्लाक के औरा गांव व जमालापुर में बनी दरी की खपत जर्मनी, अमेरिका स्वीडन व डेनमार्क जैसे देशों में होती थी। कुछ समय बाद एक बायर्स ने अपना कारोबार भारत से बंद कर चाइना से शुरू कर दिया। इससे नाता टूटने से दरी कारोबारियों को थोड़ी निराश जरूर हुई, लेकिन किसी का हौसला नहीं टूटा। तमाम चुनौतियों को पार करते हुए दरी कारोबारी अभी पूरे दिलो-जान से इस व्यवसाय को बचाए हुए हैं।

व्यवसाय में लगे हैं 350 कारीगर

औरा गांव से लेकर जमालापुर तक 350 कारीगर दरी व्यवसाय से जुड़े हैं। सभी कच्चा माल भदोही से लाते हैं और आर्डर के मुताबिक माल तैयार कर वहां पहुंचाते हैं। हालांकि मौजूदा समय में बदली परिस्थितियों के बीच इस व्यवसाय पर भी असर पड़ा है। दरी व्यवसायियों का कहना है कि यदि सरकार थोड़ी इनायत करे तो निश्चित तौर पर तस्वीर में भी बदलाव आएगा।

ऐसा हो प्रयास तो बने बात

-कारीगरों को प्रशिक्षण दिया जाए।

-कालीन व्यवसाय से जुड़े लोगों को किया जाय प्रशिक्षित।

-बाजार की मांग के हिसाब से उपलब्ध कराया जाए उत्पाद।

-कालीन व्यवसाय से जोड़ने वालों को किया जाए प्रोत्साहित।

बोले व्यवसाई

कोरोना संक्रमण का असर दरी कारोबार पर भी पड़ा है। ऐसे में यदि सरकार सीधे कोरोबारियों से उत्पाद खरीदे तो व्यवसायियों समेत बुनकरों का भी आय बढ़ने के साथ ही रोजगार में भी इजाफा होगा। दादा ने महज एक-दो लोगों के साथ मिल इस कारोबार को शुरू किया था, लेकिन आज 55 लोग मिलकर इस कार्य को गति दे रहे हैं। आने वाले दिनों में स्थिति बेहतर होने की उम्मीद है।

-शाकिब अंसारी।


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