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परदेस से किरदारों को खींच लाता है रामलीला का मंच

काशी नरेश ने शुरू कराई थी खानापट्टी की प्रसिद्ध रामलीला - तकनीक के दौर में आज भी जीवंत सनातन परंपराओं का मंचन - पात्रों के चयन से ही बढ़ जाती है रामलीला की दीवानगी

By JagranEdited By: Published: Fri, 12 Oct 2018 05:51 PM (IST)Updated: Fri, 12 Oct 2018 05:51 PM (IST)
परदेस से किरदारों को खींच लाता है रामलीला का मंच
परदेस से किरदारों को खींच लाता है रामलीला का मंच

सतीश ¨सह, जौनपुर

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शक्ति अर्जन व प्रदर्शन की आंधी के बीच खानापट्टी की रामलीला अपनी विशिष्टता बनाए हुए है। अपने आप में अनेकों इतिहास समेटे इस ऐतिहासिक रामलीला की शुरुआत लगभग आठ दशक पूर्व काशी नरेश ने कराई थी, जो अब तक अनवरत होती चली आ रही है। तकनीक के जमाने में भी उसी सनातन परंपरा का रूप लिए यहां की रामलीला आज भी जिन्दा है। यहां आधुनिकता को रंगमंच पर रंचमात्र भी प्रवेश की अनुमति नही मिल सकी है। रामलीला की दीवानगी पात्रों के चयन के समय से ही बढ़ जाती है।

इतिहास गवाह परंपराओं का

आजादी से पहले सिकरारा बाजार के समीप ताहिरपुर गांव में राजा बनारस की छावनी थी। स्थानीय लोगों के कहने पर काशी नरेश ने खर्च देकर अपनी देखरेख में रामलीला का मंचन शुरू कराया। आजादी के बाद जमींदारी प्रथा समाप्त होने पर खानापट्टी गांव निवासी बृजमोहन ¨सह व बड़े भाई राम लखन ¨सह, ताहिरपुर से रमेश ¨सह, भरतपुर से राज बहादुर ¨सह, इटहवां गांव से तिलकधारी ¨सह के साथ बाजार निवासी रामप्रसाद गुप्ता व मदन सेठ की देखरेख में उसी स्थान पर मंचन कार्य जारी रखा।

रामलीला आज भी जीवंत

उक्त स्थान पर कुछ वर्षों तक मंचन कार्य उत्साहपूर्वक चलता रहा। धीरे- धीरे कुछ सदस्यों की निष्क्रियता के चलते रामलीला मंचन कार्य बंद होने के कगार पर पहुंचा तो खानापट्टी गांव निवासी बृजमोहन ¨सह अपने बड़े भाई रामलखन ¨सह के सहयोग से वर्ष 1954 में श्री राधाकृष्ण मन्दिर पर मंचन शुरू करा दिया। वर्ष 1961 में गांव में चकबंदी के दौरान रामलीला मैदान हेतु श्री विश्वम्भर नाथ योगेंद्र आश्रम मन्दिर के समीप भूमि आवंटित कराकर मिट्टी का चबूतरा बना वहीं पर सरायहरखू से किताब मंगाकर रामलीला का मंचन शुरू करा दिया।

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समाजसेवी ने बनवाया विशाल मंच

गांव निवासिनी बैजनाथ कुंवर ने अपने पति स्व. रामनाथ की स्मृति में वर्ष 1976 में एक मंच बनवाया। मंच जर्जर होने पर उनके पौत्र समाजसेवी विनय कुमार ¨सह और उनकी पत्नी किरन ¨सह ने रामलीला मैदान के पूर्वी छोर पर ग्रामीणों की मदद से भव्य मंच बनवाया जिसपर मंचन आज भी जारी है।

परदेस से ¨खचे आते हैं कलाकार

रामलीला के कुछ ऐसे भी कलाकार हैं जो नौकरी करने के लिए मुम्बई, दिल्ली, गुजरात, हैदराबाद, पूना आदि महानगरों में रहते हैं। अपने गांव की इस परंपरा को बचाये रखने के लिए ये लोग अवकाश लेकर रामलीला का मंचन करने आ जाते हैं। राम का अभिनय करने वाले सुनील ¨सह मुंबई में एक टेलीकॉम कम्पनी में काम करते हैं तो रावण का अभिनय करने वाले सत्यानंद ¨सह मुंबई में भवन बनाने वाली एक निजी कम्पनी में नौकरी करते हैं। राम के सखा व गंधी का अभिनय करने वाले अश्वनी ¨सह मुम्बई में निजी कम्पनी में कार्यरत है। खर-दूषण व दुष्ट राजा सहित रावण का सेनापति बनने वाले अवनीश ¨सह टोनी पूना में ग्लास कम्पनी में मैनेजर के पद पर हैं। सीता की सखी, तारा, सुलोचना का अभिनय करने के लिए दिल्ली से सूरज ¨सह आते हैं। सूरज बीटेक के छात्र हैं।

नहीं बदले मारीचि, जामवंत व सुषेन

इस साल अधिकतर कलाकारों की भूमिका और दायित्व में बदलाव हो गया है। रावण का किरदार निभाने वाले शरद ¨सह इस बार केवट का अभिनय करेंगे। अधिकतर पात्र बदले गए लेकिन मारीचि और बालि का पाठ करने वाले शैलेंद्र ¨सह, जामवंत का रणविजय, सुषेन का आशुतोष व विभीषण का रोल निभाने वाले कमलेश ¨सह नहीं बदले गए।


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