Move to Jagran APP

आलू में झुलसा का खतरा, उत्पादन गिरने की नौबत

मौसम की मार का असर आलू की फसल पर पड़ रहा है। तापमान में उतार-चढ़ाव पाला व बारिश के कारण फसल झुलसा रोग की चपेट में है। समय से दवाओं का छिड़काव नहीं हुआ तो उत्पादन प्रभावित हो जाएगा। बारिश का मौसम आलू के अच्छी पैदावार के लिए अनुकूल नहीं है। इस तरह के मौसम में जब आसमान में बादल हों या बारिश हो रही हो तो आलू की फसल में बीमारी लगने की संभावना बहुत बढ़ जाती है। जिसमें मुख्य रूप से झुलसा बीमारी है। इस बीमारियों के कारण आलू के कंद छोटे रह जाते हैं और फसल लगभग 60 से 70 प्रतिशत तक बर्बाद हो जाती है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 09 Jan 2020 06:49 PM (IST)Updated: Thu, 09 Jan 2020 06:49 PM (IST)
आलू में झुलसा का खतरा, उत्पादन गिरने की नौबत
आलू में झुलसा का खतरा, उत्पादन गिरने की नौबत

जागरण संवाददाता, जौनपुर: मौसम की मार का असर आलू की फसल पर भी पड़ने का खतरा बढ़ गया है। तापमान में उतार-चढ़ाव, पाला व बेमौसम बारिश के कारण फसल झुलसा रोग की चपेट में है। समय से दवाओं का छिड़काव नहीं हुआ तो उत्पादन प्रभावित हो जाएगा।

loksabha election banner

बारिश आलू की अच्छी पैदावार के लिए अनुकूल नहीं है। इससे आलू में बीमारी की संभावना बहुत बढ़ जाती है। जिसमें मुख्य रूप से झुलसा की बीमारी है। इससे आलू के कंद छोटे रह जाते हैं और फसल लगभग 60 से 70 प्रतिशत तक बर्बाद हो जाती है। कृषि विज्ञान केंद्र के फसल सुरक्षा वैज्ञानिक डा. संदीप कुमार ने बताया कि ऐसे मौसम में पहली बीमारी अगेती झुलसा है। यह बीमारी फफूंद के द्वारा फैलती है, पत्तियों के नीचे बिखरे हुए हल्के भूरे रंग के छोटे-छोटे धब्बे बनते हैं जो बाद में बढ़कर पूरी पत्ती पर फैल जाते हैं। परिणाम स्वरूप पत्तियां झुलस जाती हैं और पौधे सूखने लगते हैं। इस बीमारी का असर आलू के कंदों पर भी होने लगता है। उन्होंने बताया कि आलू में पिछैती झुलसा रोग भी लगता है। इस बीमारी में पत्तियों पर हल्के हरे रंग के धब्बे बनते हैं जो बाद में भूरे रंग के हो जाते हैं और यह धब्बे अनियमित आकार के होते हैं। इसके विशेष पहचान में पत्तियों के किनारे एवं चोटी भाग झुलस कर सूखने लगते हैं। इस रोग का असर आलू के कंद पर अधिक पड़ता है। परिणामस्वरूप आलू के कंद सड़ने लगते हैं। इस तरह करें रोग से नियंत्रण

-जब भी फसल की खोदाई हो जाए तो अवशेषों को हमेशा जलाकर नष्ट कर देना चाहिए।

-फसल चक्र के अंतर्गत एक ही खेत में लगातार आलू की खेती न करके हर दूसरे या तीसरे वर्ष खेत को बदल देना चाहिए ।

-जब वातावरण में नमी हो, बदली हो या बारिश हो रही हो तो ऐसी परिस्थिति में फसल को पाले या रोग से बचाव अति आवश्यक है। झुलसा या पाले से बचाव के उपाय

-शाम के समय खेत के आसपास धुआं कर देना चाहिए।

-यदि सिचाई नहीं हुई हो तो सिचाई कर देना चाहिए।

-समय-समय पर 7 से 10 दिन के अंतराल पर घुलनशील सल्फर दो ग्राम प्रति लीटर की दर से छिड़काव करना चाहिए। रोग लगने पर यह करें उपाय

मैनको•ोब दो ग्राम प्रति लीटर या प्रापिकानाजोले दो मिलीलीटर प्रति लीटर अथवा रिडोमिल दो ग्राम प्रति लीटर घोल बनाकर छिड़काव करें। झुलसा बीमारी के अलावा आलू की फसल में जीवाणु बिगलन रोग भी लगता है। अनुकूल मौसम में इस रोग लगने से फसल को बहुत अधिक नुकसान पहुंचता है क्योंकि यह बीमारी जीवाणु के द्वारा लगती है। इसमें रोग से प्रभावित पौधे बोने हो जाते हैं तथा पौधे हरे रहते हुए ही सूखने लगते हैं। इनकी रोकथाम के लिए जीवाणु नाशक स्ट्रैप्टोसाइक्लिन 18 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 700 से 800 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.