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पांच हजार साल से अधिक पुराना इतिहास समेटे है मादरडीह टीला

मुंगराबादशाहपुर क्षेत्र का मादरडीह टीला पुराने इतिहास समेटे हुए है। दो बार हुए उत्खनन में अनेक पुरानिधियां प्राप्त हो चुकी हैं। जिनके अध्ययन से यह साबित हो चुका है कि यहां पांच हजार साल पहले मानव आबाद था।

By JagranEdited By: Published: Tue, 14 Jan 2020 06:45 PM (IST)Updated: Wed, 15 Jan 2020 06:10 AM (IST)
पांच हजार साल से अधिक पुराना इतिहास समेटे है मादरडीह टीला
पांच हजार साल से अधिक पुराना इतिहास समेटे है मादरडीह टीला

जागरण संवाददाता, मुंगराबादशाहपुर (जौनपुर): मुंगराबादशाहपुर क्षेत्र का मादरडीह टीला पुराने इतिहास समेटे हुए है। दो बार हुए उत्खनन में अनेक पुरानिधियां प्राप्त हो चुकी हैं। जिनके अध्ययन से यह साबित हो चुका है कि यहां पांच हजार साल पहले मानव आबाद था। पुरातत्व अन्वेषकों का दावा है कि प्रमुख टीले का उत्खनन किया जाए तो मानव के आबाद होने की अवधि और पुरानी हो सकती है। दावा है कि प्राचीनकाल में यह टीला एक मील में फैला हुआ था। जहां आज पूरा गांव बस गया है, सैकड़ों परिवार आबाद हो चुके हैं।

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बीएचयू की पुरातत्व सर्वेक्षण टीम ने जून 2011 में 35 दिनों तक इस टीले पर उत्खनन किया। उत्खनन के दौरान बाइस सौ साल पुरानी शुंगकुषाण काल की आवासीय संरचना प्राप्त हुई। उस काल में यहां एक विकसित शहर था। शहरी संरचना का प्रमाण कई रिगवेल (सोख्ता) मिले। जिनकी गहराई 40 फिट से अधिक थी। कुएं के आकार में बने एक मीटर व्यास वाले रिगवेल का निर्माण मिट्टी के छल्लों से किया गया था। मिट्टी के छल्ले बनाकर उन्हें पकाया गया था फिर उससे रिगवेल का निर्माण किया गया था। अन्वेषकों का दावा है कि उस काल में रिगबेल समृद्ध शहरी संरचना का हिस्सा था। यहां बौद्ध स्तूप होने के पुराअवशेष प्राप्त हुए तथा बौद्ध भिक्षुओं के ठहरने के लिए बनाई गई आवासीय संरचना मिली। यहां पर शुंग कुषाण कालीन अनेक पुरानिधियां मृदभांड, लौह अयस्क, मूर्तियां, मटके आदि प्राप्त हुए। यहां रोम मृदभांड परंपरा के अवशेष प्राप्त हुए जिससे यह साबित हो गया कि यहां व्यापार विनिमय हेतु विदेशों से आना जाना था।

दूसरी बार अक्टूबर 2013 में पुन: उत्खनन किया गया। इस बार ताम्र पाषाण काल तक के अनेक पुराअवशेष प्राप्त हुए। उत्खनन के दौरान 51 चांदी के सिक्के मिले जो पंद्रह सौ साल पुराने थे। सिक्कों पर गहढ़वाल राजाओं के राजचिन्ह अंकित थे। उत्खनन में मूर्तियां, मनके, मुद्रांकन मृदभांड तथा बारहसिघा, शेर, चीता, बाघ आदि पशुओं की हड्डियां प्राप्त हुई। शोध शाला पुणे के वैज्ञानिक पीपी जोगलेकर ने प्राप्त हड्डियों का अध्ययन किया और दावा किया कि यह दो हजार साल पुरानी हैं। उत्खनन में अनेक पुरानिधियां प्राप्त हुई। जिनके अध्ययन से यह साबित हो गया कि यहां पांच हजार साल पहले मानव आबाद हो चुका था। बताते हैं कि नाले की शक्ल में तब्दील हो चुकी बसुही नदी प्राचीन काल में पूरे अस्तित्व में थी। जलमार्ग के रूप में नदी का प्रयोग किया जाता था। मादडीह टीले पर ढाई हजार साल पहले व्यापार विनिमय हेतु विदेशों से आवागमन के अनेक प्रमाण मिले हैं। रोम परंपरा के मृदभांड पाए गए। जिससे यह साबित हो जाता है कि विदेशों से यहां आवागमन होता था। उस काल में आवागमन का एकमात्र विकल्प जलमार्ग था। उत्खनन टीम का दावा है कि उस समय बसुही नदी पूरे अस्तित्व में थी जिसमें नौका चलती थी। जलमार्ग के रूप में नदी का प्रयोग किया जाता था।

उत्खनन किए जाने की है आवश्यकता

मादडीह टीले पर उत्खनन में पुरातत्व सर्वेक्षण टीम बीएचयू के प्रभारी रहे डॉ अनिल कुमार दुबे का दावा है कि सर्वेक्षण हेतु टीले पर अभी आगे उत्खनन किए जाने की आवश्यकता है। दो बार हुए उत्खनन में यह तो साबित हो चुका है कि यहां पांच हजार साल पहले मानव आबाद हो चुका था लेकिन यह अवधि और पुरानी हो सकती है। यहां मानव पहली बार कब आबाद हुआ यह ज्ञात करने के लिए अभी उत्खनन की आवश्यकता है।


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