सावन माह में भगवान शिव ने किया था विषपान
जागरण संवाददाता मछलीशहर (जौनपुर) पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन सावन मास में ही हुआ था। इस मंथन से विष निकला तो चारों तरफ हाहाकार मच गया। पूरी सृष्टि नष्ट होने लगी संसार की रक्षा करने के लिए भगवान शिव ने इस माह में ही विष को कंठ में धारण कर लिया। विष की वजह से कंठ नीला पड़ गया और वे नीलकंठ कहलाए।
जागरण संवाददाता, मछलीशहर (जौनपुर): पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन सावन मास में ही हुआ था। इस मंथन से विष निकला तो चारों तरफ हाहाकार मच गया। पूरी सृष्टि नष्ट होने लगी, संसार की रक्षा करने के लिए भगवान शिव ने इस माह में ही विष को कंठ में धारण कर लिया। विष की वजह से कंठ नीला पड़ गया और वे नीलकंठ कहलाए। विष का प्रभाव कम करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने भगवान शिव को जल अर्पित किया, जिससे उन्हें राहत मिली। इससे वे प्रसन्न हुए। तभी से हर वर्ष सावन मास में भगवान शिव को जल अर्पित करने या उनका जलाभिषेक करने की परंपरा बन गई।
वास्तु एवं ज्योतिष आचार्य डाक्टर टीपी त्रिपाठी ने बताया कि इस बार सावन 25 जुलाई रविवार श्रवण नक्षत्र और आयुष्मान योग में लग रहा है। इस बार बहुत सुंदर योग है। इस सावन में चार सोमवार होंगे और 22 अगस्त को रविवार धनिष्ठा नक्षत्र शोभन योग में माह समाप्त होगा। सावन के महीने में भगवान शिव की साधना अत्यंत शुभ एवं शीघ्र फलदाई होती है। देवों के देव कहलाने वाले महादेव यानि भगवान शिव की साधना सबसे सरल मानी गई है। भगवान भोलेनाथ के विभिन्न रूपों की तरह इनके विभिन्न नाम भी निराले हैं। हरहाल में खुश रहने वाले भगवान शिव अपने भक्तों से भी शीघ्र ही प्रसन्न हो जाते हैं। शिव की कृपा से उनके भक्तों को कभी भी कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ता है। सही मायने में सारी सृष्टि भगवान शिव में समाई हुई है। मंदिरों में भगवान शिव की सबसे अधिक पूजा शिवलिग रूप में की जाती है। ऐसे में सावन मास में भगवान शिव की आराधना करके अपने जीवन को सफल बनाया जा सकता है। शिवलिग भगवान शिव की सृजनात्मक शक्ति का परिचायक है।