संकट से मुक्ति व धन-धान्य की वृद्धि के लिए है गणेश चतुर्थी व्रत
मछलीशहर (जौनपुर) नारद पुराण में माघ मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत का विधान बताया गया है।
जागरण संवाददाता, मछलीशहर (जौनपुर): नारद पुराण में माघ मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत का विधान बताया गया है। यह व्रत शुक्रवार को है। ज्योतिष एवं तंत्र आचार्य डाक्टर शैलेश मोदनवाल के अनुसार यह व्रत स्त्रियां करती हैं। इस व्रत में दिनभर उपवास रखकर चंद्रोदय से पूर्व स्नान आदि के पश्चात वे नए वस्त्रों को धारण करती हैं। खुले आसमान के नीचे गोबर से लेपन कर चौक पूरा जाता है। चंद्रोदय के पश्चात चंद्रमा को लाल चंदन, कुश, दूर्वा, फूल, अक्षत, शमीपत्र आदि से तांबे के पात्र से अर्घ्य प्रदान किया जाता है। इस व्रत में गौर गणेश व चंद्रमा का पूजन किया जाता है। पूजन में चार की संख्या में प्रत्येक वस्तु भगवान गणेश को चढ़ाई जाती हैं। इसमें लाल कंद, फल, गुड़, तिल्ली, पान व तिल चढ़ाए जाते हैं। गुड़, तिल और घृत की आहुति दी जाती है। चार पत्तियों वाले दीपक के साथ कपूर से भी आरती की जाती है। भगवान गणेश की चार कथाओं को कहा व सुना जाता है। काले तिल, जल व फूल को हाथ में लेकर चार बार प्रदक्षिणा करते हुए अर्घ्य प्रदान किया जाता है। इस व्रत में गुड़, तिल व लालकंद का विशेष महत्व है। पूजन के पश्चात फलाहार किया जाता है। परंपरा है कि पूजा करने वाली स्त्रियां अपने चढ़ाए हुए प्रसाद को नहीं ग्रहण करती हैं वे पास पड़ोस से आए हुए प्रसाद को ही ग्रहण करती हैं। इस व्रत के प्रभाव से संकट से मुक्ति मिलती है बाधा का निवारण होता है तथा परिवार में धन-धान्य की वृद्धि होती है। आचार्य डाक्टर टीपी त्रिपाठी के अनुसार शुक्रवार को चंद्रोदय रात्रि 8 बजकर 39 मिनट पर होगा। चतुर्थी तिथि दिन में 7 बजकर 26 मिनट पर लगेगी। रात्रि 8 बजकर 39 मिनट के बाद चन्द्रमा को अर्घ्य दें।