पांच मांगें, बीत गए पंद्रह साल फिर भी नतीजा सिफर
अरमानों को खुला आसमान मिलना तो दूर उसको उड़ान भी नहीं मिल सकी। विकास के तमाम दावों के बीच 15 साल बाद भी शाहगंज तहसील क्षेत्र की स्थिति में कोई सुधार नहीं हो सका।
जागरण संवाददाता, शाहगंज (जौनपुर): अरमानों को खुला आसमान मिलना तो दूर उसको उड़ान भी नहीं मिल सकी। विकास के तमाम दावों के बीच 15 साल बाद भी शाहगंज तहसील क्षेत्र की स्थिति में कोई सुधार नहीं हो सका। जनप्रतिनिधियों के तमाम आश्वासनों के बीच प्रमुख पांच मांगें 15 वर्षों से पूरी नहीं हो सकी हैं।
शाहगंज पूर्वांचल में एक महत्वपूर्ण स्थान है। इसकी पहचान एक बड़ी गल्ला मंडी के रूप में है। इसके अलावा इससे चार जनपदों की सीमाएं सटी हैं, जिससे आवागमन, चिकित्सा आदि के लिए प्रतिदिन बड़ी संख्या में लोग इस कस्बे की ओर रुख करते हैं। यहां बुनियादी सुविधाओं का भी पूरी तरह से अभाव है। मुंसिफ कोर्ट की भी स्थापना
तहसील मुख्यालय पर मुंसिफ कोर्ट की स्थापना की मांग करीब डेढ़ दशक पूर्व तत्कालीन तहसील अधिवक्ता संघ के अध्यक्ष रामहित यादव के नेतृत्व में की गई। तभी से अनवरत आंदोलन चल रहा है। सप्ताह में शनिवार के दिन अधिवक्ताओं का कार्य बहिष्कार भी दशक भर अधिक समय से चला आ रहा है। बावजूद इसके यह मांग पूरी नहीं हो सकी। वर्ष 2016 में जिला मुख्यालय से न्यायाधीश ने स्थानीय तहसील पहुंचकर कोर्ट के लिए जगह भी देखी, लेकिन मामला अटक गया।
शाहगंज-अमेठी रेल लाइन
शाहगंज से अमेठी तक एक नई रेल लाइन के विस्तार की योजना भी डेढ़ दशक से अटकी हुई है। इसके लिए कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के समय में रेल बजट में प्रस्ताव भी हुआ और फिर सर्वे। स्टेशन बनाने के लिए शाहगंज से अमेठी तक स्थान भी सूचीबद्ध किए गए लेकिन, योजना को मूर्त रूप नहीं मिल सका। नगर पालिका परिषद के सीमा विस्तार की आवाज
नगर पालिका परिषद शाहगंज की सीमा इसके टाउन एरिया बनने के बाद से नहीं बढ़ाई जा सकी। यानि टाउन एरिया जब बना तो उसकी जो सीमा थी वही नगर पालिका परिषद बनने के बाद भी है। इस लंबी अवधि में नगर के चारों ओर बड़ी आबादी बस चुकी है। यहां पर लोग रास्ता व नाली आदि को लेकर परेशान रहते हैं। सीमा विस्तार की मांग भी डेढ़ दशक से चली आ रही है। कभी सीमा विस्तार का खाका खींचा गया तो कभी नगर पालिका की बैठक में चर्चा हुई, लेकिन नतीजा सिफर ही रहा। बाईपास की नहीं पूरी हो सकी आस
जाम की समस्या से जनता त्रस्त है। मुख्य मार्ग पर बाईपास के निर्माण की मांग भी करीब डेढ़ दशक से चली आ रही है। 30 सितंबर 2001 को स्थानीय रामलीला मैदान में चुनावी जनसभा को संबोधित करने पहुंचे तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने मंच से इसकी घोषणा की थी। 18 वर्ष बाद भी योजना मूर्त रूप नहीं ले सकी।
नहीं बन सका महाविद्यालय
शिक्षा के क्षेत्र में भी स्थानीय क्षेत्र हमेशा से उपेक्षित रहा। विद्यार्थियों को शिक्षा के लिए जनपद मुख्यालय की ओर रुख करना पड़ता है। यहां पर एक महाविद्यालय बनाने की मांग कई वर्षों से चली आ रही है, लेकिन इस मांग को अनसुना किया जाता रहा है।