85 फुट ऊंचा रावण का पुतला होगा मेले के आकर्षण का केंद्र
समाज को बांटने की नापाक कोशिश है हमेशा से होती रही है। लेकिन कुछ ऐसा जुड़ाव भी आपस में रहा है कि प्रेम और सौहार्द को बिगाड़ने की कोशिश करने वाले नाकाम रहे। स्थानीय नगर के विजयादशमी मेले में रावण के पुतले सहित तमाम पुतले की कृतियां एक मुस्लिम परिवार के हाथों से बनते रहे हैं। पीढि़यों से भादी के निवासी सुब्बन खां का कुनबा प्रभु राम के इस काम में हाथ बंटाता चला आया
जागरण संवाददाता, शाहगंज (जौनपुर): समाज को बांटने की नापाक कोशिश हमेशा से होती रही है। लेकिन कुछ ऐसा जुड़ाव भी आपस में रहा है कि प्रेम और सौहार्द को बिगाड़ने की कोशिश करने वाले नाकाम रहे। स्थानीय नगर के विजया दशमी मेले में रावण के पुतले सहित तमाम पुतले की कृतियां एक मुस्लिम परिवार के हाथों से बनती रहीं हैं। पीढि़यों से भादी के निवासी सुब्बन खां का कुनबा प्रभु राम के इस काम में हाथ बंटाता चला आया है। इस साल 85 फुट ऊंचा रावण का पुतला मेले के आकर्षण का केंद्र होगा।
शाहगंज नगर में 151 वर्ष पूर्व जब रामलीला और विजयादशमी मेले की शुरुआत हुई तभी से रावण के पुतले सहित राजा दशरथ का दीवान, अशोक वाटिका, मेघनाथ, सुपनखा, जटायु, हिरन आदि का पुतला बनाने का काम एक मुस्लिम परिवार करता चला रहा है।
भादी गांव निवासी सुब्बन खां बताते हैं कि उनके पहले उनके पिता कौसर खान रावण के पुतले को बनाने की जिम्मेदारी निभाते रहे। आज इस काम में सुब्बन खां का पत्नी महजबी, पुत्री अफरीन, गुलसबा व पुत्र शाहनवाज, आकिब इस काम में सहयोग करते हैं। इस परिवार पीढि़यों से बगैर किसी हिचक के विजयादशमी के पर्व में अपना सहयोग देकर चला आया है। उनका यह सहयोग गंगा-जमुनी तहजीब की एक जीती जागती मिसाल है और उनके लिए एक सबक भी है जो समाज को बांटने की सोचते हैं। सुब्बन बताते हैं कि इस वर्ष 85 फुट ऊंचा रावण का पुतला बनाया जा रहा है। पुतले को बनाने में लोहे के रिग का भी उपयोग हो रहा है, जो पुतले को मजबूती देगा और उसे खड़ा करने में भी मददगार होगा। विजयादशमी मेले का पूर्वांचल में है अहम स्थान
शाहगंज विजयादशमी का मेला पूर्वांचल में अपना एक अलग स्थान रखता है। यहां पर क्षेत्र के अलावा अगल-बगल के आजमगढ़, सुल्तानपुर, अंबेडकर नगर जिलों से भी लोग मेले में शरीक होने के लिए पहुंचते हैं। मेले में बैलगाड़ी से महिलाओं के पहुंचने की एक अनोखी परंपरा सी रही है। लेकिन अब बदले हालात में इक्का-दुक्का बैलगाड़ी ही दिखाई पड़ती हैं। इनकी जगह ट्रैक्टर और ट्रकों ने ले लिया है। गाड़ियों में चारपाई और चौकी आदि रखकर उस पर बैठकर महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग मेले में शरीक होने पहुंचते हैं। ऐसा दृश्य शायद ही कहीं और देखने को मिले। यह एक परंपरा सी बन चुकी है। जो कि मेले के शुरुआत के समय से ही चली आ रही है। मेला स्थल पर व्यवस्था को बनाए रखने में पुलिस प्रशासन के साथ ही रामलीला समिति के पदाधिकारी और कार्यकर्ता भी सक्रिय भूमिका निभाते हैं। आयोजन स्थल में बने पंडाल में क्षेत्रीय जनप्रतिनिधि और प्रशासनिक अफसरों की मौजूदगी मेले के महत्व को दर्शाती है। विजयादशमी मेले के अगले दिन भरत मिलाप के कार्यक्रम का भव्य आयोजन भी किया जाता है। मेले के अगले दिन रात में आयोजित होने वाले इस कार्यक्रम में शरीक होने के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। प्रभु श्रीराम का रथ आगे चलता है और इसके बाद कलाकारों द्वारा बनाए गए झांकी और अंत में दुर्गा प्रतिमाओं का क्रम चलता है। कई कलाकार अपनी प्रस्तुति देकर लोगों को रोमांचित करते हैं। इस भरत मिलाप के कार्यक्रम में मुस्लिम समाज से जुड़े लोग भी सहयोग करते रहे हैं।