संस्कृति की रक्षा संस्कृत के बिना संभव नहीं
देश में ही संस्कृत की उपेक्षा दुर्भाग्यपूर्ण सुजानगंज (जौनपुर): संस्कृत भाषा देव वाणी होने के
देश में ही संस्कृत की उपेक्षा दुर्भाग्यपूर्ण
सुजानगंज (जौनपुर): संस्कृत भाषा देव वाणी होने के साथ-साथ सभी भाषाओं की जननी है। संस्कृत के बिना संस्कृति की रक्षा नहीं की जा सकती है। संस्कृत की महत्ता को अब दुनिया भी स्वीकार करने लगी है। वैज्ञानिक भी अब इस सच्चाई को स्वीकार करने लगे हैं कि कंप्यूटर के लिए संस्कृत सबसे अच्छी भाषा है। उक्त उद्गार श्री शिव संस्कृत विद्यालय बटेश्वरनाथ पर संस्कृत दिवस के अवसर डा.मिथिलेश त्रिपाठी ने व्यक्त किया।
उन्होंने कहा कि इसकी लिपि देवनागरी है, जिसमे भ्रामक उच्चारण के लिए जगह नहीं है। लेकिन इस देश में संस्कृत की उपेक्षा दुर्भाग्यपूर्ण है। रमाराम पाण्डेय ने कहा कि संस्कृत में ही भारत का संस्कार और संस्कृति समाहित है। संस्कृत का अपमान संस्कृति का अपमान है। इस मानसिकता को बदलने की आवश्यकता है। संस्कृत की एक पत्रिका निकाली जाए जिसमे क्षेत्र के विद्वानों की सूची हो।
डा.प्रेम शंकर द्विवेदी Þभास्करÞने संस्कृत की महत्ता पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर अनुराग द्विवेदी, बृजेश कुमार उपाध्याय महेन्द्र पाण्डेय गिरिजेश मिश्र महेन्द्र मिश्र ब्यास बिन्द आदि उपस्थित रहे।