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संस्कारशाला : जीवन में नकारात्मकता की ओर ले जाता है स्वार्थ

फोटो संख्या 23 से 28 बाद में अकेला रह जाता स्वार्थी व्यक्ति व्यक्ति को कभी स्वार्थी नहीं होना

By JagranEdited By: Published: Thu, 22 Oct 2020 12:01 AM (IST)Updated: Thu, 22 Oct 2020 05:03 AM (IST)
संस्कारशाला : जीवन में नकारात्मकता की ओर ले जाता है स्वार्थ
संस्कारशाला : जीवन में नकारात्मकता की ओर ले जाता है स्वार्थ

फोटो संख्या : 23 से 28

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बाद में अकेला रह जाता स्वार्थी व्यक्ति :

व्यक्ति को कभी स्वार्थी नहीं होना चाहिए। हमेशा स्वार्थ से दूर रहना चाहिए। स्वार्थ व्यक्ति को अपने स्वजनों एवं समाज से दूर ले जाकर नकारात्मक हालातों की ओर धकेलता है। परिणाम स्वरूप व्यक्ति अकेला रह जाता है। स्वार्थ शीशे में फैली धूल की तरह है, जिसकी वजह से व्यक्ति अपना प्रतिबिब नहीं देख पाता और वह स्वार्थ में लिप्त होकर सिर्फ अपनी भलाई के बारे में ही सोचता है। इसी में वह खुश रहता है। वास्तव में ऐसा करते समय वह खुद को छल रहा होता है, क्योंकि धीरे-धीरे उसके सामाजिक रिश्ते, मित्र, संबंधी सभी धीरे-धीरे स्वार्थ के गुण के कारण ही दूर हो जाते हैं। लोगों के बीच स्वार्थी व्यक्ति का विश्वास कम हो जाता है। उसकी बातों एवं वादों को कोई गंभीरता से नहीं लेता। स्वार्थ रिश्तों में आने वाली कटुता एवं दूरी का मुख्य कारक है। जब-जब संबंधों के मध्य स्वार्थ आ जाता है तब घरों में क्लेश होने लगता है। आजकल के बढ़ते हुए भौतिकवादी युग ने मानव को और भी ज्यादा अवसरवादी एवं स्वार्थी बना दिया है। भौतिक सुखों की चाह में व्यक्ति स्वार्थ वश अंधा हो जाता है और उसके अंदर लालच एवं अवसरवादी सोच विकसित हो जाती है। धीरे-धीरे यह गुण उसके व्यक्तित्व में स्थायी हो जाता है। वह सिर्फ अपने भले के बारे में ही सोचता रहता है। उसका हर कदम स्वार्थ से परिपूर्ण होता है। इस क्रम में वह अपनों से दूर हो जाता है। वह स्वजनों का भरोसा खो देता है और असल मुसीबत में भी कोई भी उसकी मदद नहीं करता। वह अलग-थलग पड़ जाता है। ऐसे में हमें राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न के चरित्र से शिक्षा लेनी चाहिए। उनके आपसी प्रेम के मध्य स्वार्थ का लेश मात्र भी स्थान नहीं था। तभी उनके गुणों की सराहना आज भी पूरा संसार करता है। निस्वार्थ भाव अहंकार को भी मारता है। अत: हमेशा हमें स्वार्थ से दूर रहना चाहिए।

रणविजय सिंह

प्रधानाचार्य एसबीडीएम इंटर कालेज जालौन

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अपने को धोखा देता स्वार्थी व्यक्ति :

स्वार्थी व्यक्ति कभी कामयाब नहीं होते क्योंकि स्वार्थ के वशीभूत होकर व्यक्ति सिर्फ अपने बारे में ही सोचता हैं। व्यक्तित्व में उनका यह गुण स्थाई हो जाता है स्वार्थ वक्त कभी-कभी ऐसे व्यक्ति अन्य व्यक्तियों के साथ- साथ अपनों को भी धोखा देते हैं। अपने परिजनों एवं मित्रों के साथ स्वार्थ रूपी बर्ताव करते हैं। ऐसा करते वक्त व्यक्ति उनकी नजरों में गिर जाता है और उनका विश्वास खो देता है। स्वार्थी एवं चतुर व्यक्ति यह सोचता है कि उसके इस गुण को कोई नहीं समझ पाया। ऐसे में वह खुद ही अपना नुकसान करता है और समाज से अलग-थलग पड़ जाता है।

मोहम्मद तालिब

शिक्षक,एसबीडीएम इंटर कालेज जालौन

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कामयाबी की सीढि़यां नहीं चढ़ पाते स्वार्थी :

स्वार्थी व्यक्ति कभी कामयाब नहीं होते। उनका विचार यह होता है कि अपना भला कैसे हो। यह मनन करने में ही उसका पूरा समय बीत जाता है। जाता है। क्योंकि वह स्वार्थ को अपने स्वभाव में शामिल कर चुका होता है। व्यक्तित्व में उनका यह गुण स्थायी हो जाता है। स्वार्थ के चलते कभी-कभी ऐसे व्यक्ति अन्य व्यक्तियों के साथ अपनों को भी धोखा देते हैं। अपने परिजनों एवं मित्रों के साथ स्वार्थ वश बुरा बर्ताव करते हैं। ऐसा करते वक्त व्यक्ति उनकी नजरों में गिर जाता है।

शोभित द्विवेदी

शिक्षक, एसबीडीएम इंटर कालेज जालौन ----------------------------------------------------

स्वार्थ की अधिकता ही विनाश का कारण :

इंसान में जब स्वार्थ की अधिकता उत्पन्न होनी आरंभ होती है तो वह स्वार्थ पूर्ति के लिए अनुचित कार्यों को अंजाम देने लगता है। जो उसके जीवन में भ्रष्टाचार का आरंभ होता है। जिसके अधिक बढ़ने से इंसान धीरे- धीरे अपराध की ओर बढ़ने लगता है । इंसान के स्वार्थ में लोभ का जितना अधिक मिश्रण होता है इंसान उतना ही अधिक भयंकर अपराध करने पर उतारू हो जाता है यह स्थिति इंसान में विवेक की कमी अथवा विवेकहीनता होने पर अधिक भयंकर होती है क्योंकि इंसान परिणाम की परवाह करना छोड़ देता है या परिणाम से बेखबर हो जाता है जो उसके विनाश का कारण बन जाता है । इंसान में स्वार्थ की अधिकता का कारण उसके मन की चंचलता एंव लोभ है । स्वार्थ की वृद्धि मन करता है तो उसमे रंग भरने का कार्य इंसान की कल्पना शक्ति करती है तथा क्रिर्याशील करने का साहस भावना शक्ति के कारण उत्पन्न होता है व स्वार्थ पूर्ति को अंतिम रूप इच्छाशक्ति प्रदान करती है । यदि इन मानसिक शक्तियों में आपसी तालमेल न हो तो स्वार्थ इन्सान के मन में अवश्य रहता है परंतु वह अपने स्वार्थ को किर्याशील नहीं कर सकता। इंसान यदि विवेक द्वारा अपनी स्वार्थी कामनाओं की पूर्ति करता है तो वह परिश्रम एंव बौद्धिक बल द्वारा जीवन में अनेकों संसाधन एंव धन एकत्रित कर सफलता प्राप्त करता है जो जीवन को खुशहाल बनाता है परंतु इंसान में विवेक की कमी या हीनता हो अथवा इंसान का विवेक नकारात्मक भूमिका में सक्रिय हो तो वह फरेब, धोखेबाजी, ठगी, चोरी व लूट जैसे कार्यों द्वारा अपना स्वार्थ सिद्ध करने की ओर अग्रसर होता है। जो उसे अपराधी बनाकर विनाश की राह पर ले जाता है । सौरभ पांडेय

कार्यवाहक प्राचार्य, बीएसएस कालेज आफ साइंस एंड आर्टस उरई

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कोयले की तरह होते हैं स्वार्थ के रिश्ते :

मतलब और स्वार्थ के रिश्ते कोयले की तरह हैं। जब गर्म होते हैं तो जला देते हैं और ठंडे होते हैं तो कालिख या काला लगा देते हैं। इनसे दूर ही रहना अच्छा है। ऐसे रिश्ते से सचेत भी रहना जरुरी है।

कुछ लोग मतलबी होते हैं, उनका मकसद, धोखा देना, ऐसे लोग तभी तक आपसे जुड़े रहते हैं। •ाब तक उनका मकसद पूरा न हो, जैसे काम हुवा वो पलट कर भी आपकी और नहीं देखते, ये मतलबी लालची लोग समाज में आपको झूठा या नीचा दिखाने से भी नहीं चूकते हैं। स्वार्थी रिश्ते धोये नहीं जा सकते हैं।, समय और समझ हमें सतर्क रहने की सीख देते हैं।

अनमोल यादव

प्रवक्ता बीएसएस कालेज आफ साइंस एंड आर्टस उरई

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स्वार्थ का संतुलन जरुरी :

स्वार्थ को समाज में अनुचित समझा जाता है किसी को स्वार्थी कहना उसके लिए अपशब्द के समान है जबकि संसार का प्रत्येक इंसान स्वयं स्वार्थी होता है क्योंकि इंसान द्वारा कर्म करने का आरंभ ही स्वार्थ के कारण है। यदि इंसान का स्वार्थ समाप्त हो जाए तो उसे कर्म करने की आवश्यकता ही क्या है । यदि सम्मान चाहिए तो स्वार्थ का संतुलन बनाकर रखना आवश्यक है।

श्वेता दीक्षित

प्रवक्ता बीएसएस कालेज आफ साइंस एंड आर्टस उरई


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