कभी दीप पर्व का उत्साह बढ़ाता था जालौन का 'अग्नि खिलौना'
विमल पांडेय उरई देश के प्रमुख महोत्सव की शान बढ़ाने वाली जालौन की प्रसिद्ध आतिशबाजी एवं
विमल पांडेय, उरई : देश के प्रमुख महोत्सव की शान बढ़ाने वाली जालौन की प्रसिद्ध आतिशबाजी एवं बारूद का परंपरागत शिल्प अब ढलान पर है, लेकिन कभी यह पूरे देश में अग्नि खिलौना के नाम से जाना जाता था। बुंदेलखंड में मरहठों के काल में आतिशबाजी का व्यवसाय खूब फला फूला। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में मरहठों ने कालपी में भूमिगत आयुध कारखाने बना रखे थे। कालांतर यहां की आतिशबाजी से पूरे देश के तीज त्योहारों और उत्सवों की परंपराओं का निर्वहन होता था।दीवाली में आतिशबाजी बनाने का मुख्य केंद्र कालपी, जालौन और कोंच कस्बा था। तीज त्योहारों में जालौन जिले की आतिशबाजी पूरे देश में धूम मचाती रही है। जालौन की आतिशबाजी कैसे बनी अग्नि खिलौना :
जिले के प्रख्यात साहित्यकार अयोध्या प्रसाद कुमुद कहते हैं कि जालौन जिले की आतिशबाजी पूरे देश भर में चर्चित रही है। इसे अग्नि खिलौना कहने के पीछे कहानी कुछ और ही है। दरअसल खिलौना को फारसी को कस कहते हैं जब कि इसे बनाने वाले को कसगर कहते हैं। इन कसगरों ने जालौन की आतिशबाजी को राष्ट्रीय स्तर की पहचान दिलाई। कालांतर कसगरों के इसे उत्पाद को अग्नि खिलौना कहा जाने लगा।
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कर्नाटक और महाराष्ट्र तक रही धूम :
जालौन के मिट्ठू लाल आतिशबाजी में पूरे देश में अपनी पहचान रखते थे। उनके बाद बेटे अकरम ने कमान संभाली है। बकौल अकरम देश और प्रदेश में जालौन की आतिशबाजी जानी जाती थी। बंगाल, असम में दुर्गा पूजा हो या महाराष्ट्र का गणेश उत्सव, कर्नाटक का दशहरा, हर प्रांत में जालौन की आतिशबाजी ही जाती थी। कालपी के आतिशबाज मन्नान कहते हैं कि अब जिले में आतिशबाजी का निर्माण दस फीसद भी नहीं होता है। अब बाहर से माल आता है।
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जालौन की आतिशबाजी का इतिहास :
बुंदेलखंड में मरहठों के प्रमुख शासन काल में जालौन का बारूद निर्माण कला आगे बढ़ी। मरहठा शासन काल में ही इस कारोबार ने पूरे देश में जमकर धूम मचाई थी। प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन में जब रानी लक्ष्मी बाई ने कालपी को प्रमुख युद्ध क्षेत्र बनाया था तब यहां एक बड़ा भूमिगत आयुध कारखाना तैयार किया गया था। इस कारखाने की क्षमता 500 बैरल की रही है। कालांतर यही कारीगर पीढ़ी दर पीढ़ी इस कारोबार से जुड़कर आगे बढ़ने लगे थे।