सामुदायिक सहभागिता से ही दूर होंगी संक्रामक बीमारियां
जागरण संवाददाता उरई संक्रामक बीमारियों पर प्रभावी नियंत्रण के लिए आम जनमानस में जागरूकता आवश्यक है। विगत कुछ महीनों में जनपद ने कोविड महामारी का सामना किया। जिसमें कुछ क्षेत्रों में कोविड के मरीज अधिक निकले तथा कुछ क्षेत्रों में जहां लोगों ने बचाव के उपायों पर गंभीरता से अमल किया उन क्षेत्रों में महामारी का उतना प्रभाव देखने को नहीं मिला। इससे कहा जा सकता है कि समुदाय में संक्रामक बीमारियों के प्रति सतर्कता अत्यंत आवश्यक है।
जागरण संवाददाता, उरई : संक्रामक बीमारियों पर प्रभावी नियंत्रण के लिए आम जनमानस में जागरूकता आवश्यक है। विगत कुछ महीनों में जनपद ने कोविड महामारी का सामना किया। जिसमें कुछ क्षेत्रों में कोविड के मरीज अधिक निकले तथा कुछ क्षेत्रों में जहां लोगों ने बचाव के उपायों पर गंभीरता से अमल किया उन क्षेत्रों में महामारी का उतना प्रभाव देखने को नहीं मिला। इससे कहा जा सकता है कि समुदाय में संक्रामक बीमारियों के प्रति सतर्कता अत्यंत आवश्यक है।
बचाव के उपायों को प्रभावी रूप से संचालित करने के लिए 'स्वैच्छिक सामुदायिक सतर्कता कार्यक्रम' की शुरुआत की जानी है। इसके लिए मंडल से निर्देश मिल चुके हैं। इस कार्यक्रम का मूल उद्देश्य है स्थानीय लोगों की भागीदारी से ऐसा वातावरण का सृजन करना है जिससे कि कोविड तथा अन्य संक्रामक बीमारियों का फैलाव रोका जा सके। सामुदायिक सहभागिता से न सिर्फ कोविड बल्कि अन्य संक्रामक बीमारियों को भी दूर किया जा सकता है। ग्राम पंचायतों, ब्लॉक व नगर निकायों को 'कोरोना मुक्त' क्षेत्र घोषित करने का आदेश भी आया है। इसके लिए जनपद के सभी ग्राम पंचायतों तथा नगरीय वार्ड में 'स्वैच्छिक सामुदायिक सतर्कता कार्यक्रम' का संचालन किया जाना है। नामित किए जाएंगे नोडल अधिकारी
जनपद स्तर पर इस कार्यक्रम के संचालन के लिए मुख्य विकास अधिकारी को नोडल अधिकारी नामित करते को कहा गया है। पंचायती राज विभाग तथा नगर विकास विभाग के अधिकारियों को कार्यक्रम क्रियान्वयन के दायित्व सौंपे जा रहे हैं। आम जनमानस में 'कोविड एप्रोपियेट बिहेवियर' जैसे केवल आवश्यक होने पर ही घर से निकलना, मास्क पहनना, हाथों की नियमित सफाई, समूह में एकत्र होकर न बैठना आदि का पालन करने के प्रति जागरूकता पैदा की जाए। कोट
इस अभियान से न सिर्फ कोविड बल्कि बरसात के मौसम में अन्य संक्रामक बीमारियों में डायरिया, मलेरिया आदि के प्रसार को रोकने के लिए भी यह व्यवस्था कारगर साबित हो सकती है।
डॉ. ऊषा सिंह, एसीएमओ