अफसरों की 'कागजी बाजीगरी' में उलझा चौरासी गुंबद
विमल पांडेय उरई चीनी यात्री फाहियान ने जब भार
विमल पांडेय, उरई : चीनी यात्री फाहियान ने जब भारत भ्रमण किया तो मुगलकालीन धरोहरों पर उनका ध्यानाकर्षण हुआ। 11वी शताब्दी में कालपी के बने चौरासी गुंबद ने उन्हें इस कदर प्रभावित किया कि वह बोलने पर मजबूर हुए कि भारत की वास्तु कलाओं का विश्व स्तर पर कोई सानी नहीं है। 84 गुंबद अपने ही घर में बेगाना हो गया। शोधार्थी अब भी इस गुंबद की विशेषताओं का आंकलन करने हर वर्ष यहां आते हैं। अक्सर यह शोधार्थी विदेशी ही होते हैं। लेकिन जब इस प्राचीन स्थल की बदहाली देखते हैं भारत सरकार के संरक्षण पर सवाल उठाते हैं। लगभग दो दशकों से इस गुंबद के उत्थान के लिए शासन और प्रशासन ने कागजी बाजीगरी दिखाई है।
चौरासी गुंबद का इतिहास :
कालपी शहर के बाहरी पश्चिमी छोर पर स्थित चौरासी गुंबद को लोदी शाह के मकबरे के नाम से भी जाना जाता है। 11वीं शताब्दी में इस गुंबद के निर्माण की बात इतिहासकारों ने स्वीकारी है। यह इस्लामी वास्तुकला का एक अनूठा प्रयोग है। माना जाता है कि इसे लोदी सुल्तानों ने बनवाया था। इसमें 84 दरवाजे मेहराब हैं।
इसकी इमारत में 60 फीट की ऊंचाई का गुंबद है।
17 वर्षों से सरकारी संरक्षण की दरकार :
चौरासी गुंबद के संरक्षण के लिए सरकारों का प्रयास कागजी ही रहा। इस उपेक्षा पर जिले के इतिहासकारों और साहित्यकारों ने हमेशा आवाज भी उठाई लेकिन सरकारी अमले ने ज्ञापन लेने की रस्मअदायगी ही निभाई। वर्ष 2003 में पुरातत्व विभाग ने मध्यकालीन इस मकबरे के संरक्षण के लिए शासन से 70 लाख रुपये प्राप्त किया था। इन रुपयों से यहां दीवारों में पत्थर मसाला लगाया गया था लेकिन वह बजट भी कम पड़ गया । ऐसे में सरकारी अमले ने आधा- अधूरा कार्य कराकर कर्तव्यों की इतिश्री कर ली। वर्ष 2016 में गुंबद की एक दीवार को दुरुस्त कराने के लिए पर्यटन विभाग ने दस लाख रुपये खर्च किए थे। यह कार्य भी खानापूरी में सिमट गया।
बदहाल है वाटर कूलर :
वर्ष 2015 में जिला प्रशासन की पहल करीब ढाई लाख की लागत से यहां एक वाटर कूलर लगवाया गया था। वाटर कूलर रखरखाव के अभाव में दो वर्षों में ही बदहाल हो गया।
लंबित प्रस्ताव :
वर्ष 2001 में तत्कालीन कालपी महोत्सव के दौरान नगर विकास मंत्री रहे लाल जी टंडन ने मकबरे के चारो और मजबूत दीवार का प्रस्ताव मांगा था। यह प्रस्ताव भी गया था। करीब चालीस रुपये खर्च करने की बात भी सामने आई थी लेकिन बाद में बजट का रोड़ा सामने आ गया और कार्ययोजना धरातल पर उतर ही नहीं सकी। प्रमुख समस्या
- पर्यटन स्थल में पीने का नहीं है पानी
- गंदगी से पटा है मकबरा स्थल
-विद्युतीकरण की नहीं कराई गई व्यवस्था
- जर्जर दीवारों का जीर्णोद्धार नही
- चौकीदार नहीं है। शासन प्रशासन से अपेक्षाएं :
- 50 लाख का मिले पर्यटन पैकेज
- गुंबद के संरक्षण के लिए स्थानीय तौर पर बनाई जाये कमेटी
- पर्यटन के लिहाज से हो प्रचार- प्रसार
- हर साल हो सांस्कृतिक आयोजन