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रामवीर के जरिये भाजपा साधेगी कई जिलों में सियासी तीर

तीन दशक पहले भाजपा से की थी राजनीति की शुरुआत 1993 में टिकट न मिलने पर की थी बगावत अब हुई घर वापसी।

By JagranEdited By: Published: Sun, 16 Jan 2022 01:16 AM (IST)Updated: Sun, 16 Jan 2022 01:16 AM (IST)
रामवीर के जरिये भाजपा साधेगी कई जिलों में सियासी तीर
रामवीर के जरिये भाजपा साधेगी कई जिलों में सियासी तीर

हिमांशु गुप्ता, हाथरस : बसपा के डेढ़ साल के वनवास के बाद रामवीर उपाध्याय ने आखिर बहुप्रतीक्षित निर्णय ले ही लिया। बसपा सरकार में 25 वर्ष कद्दावर नेता के रूप में विभिन्न पदों पर रहे रामवीर का परिवार पहले ही भाजपाई हो गया था, शनिवार को खुद उन्होंने भी भगवा चोला पहन लिया। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बसपा से इस्तीफा देकर ऐसी चाल चली, जिसने कड़ाके की सर्दी में भी राजनीतिक पारे को हाई कर दिया।

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29 साल पहले जिस तेवर से भाजपा से बगावत करके गए थे, उसी तेवर से घर वापसी हुई है। सियासत के जानकार इस दल-बदल में रामवीर को सियासत की नई राह मिलना मान रहे हैं तो भाजपा को भी चुनावी वैतरणी पार करने में पतवार मिली है। इससे पार्टी को कई जिलों में सियासी नफा मिलना तय माना जा रहा है। क्योंकि रामवीर की ब्राह्मणों के साथ एससी वोट बैंक में भी मजबूत पकड़ मानी जाती है।

तीन दशक पहले हाथरस, अलीगढ़ जनपद का हिस्सा था। अलग-अलग बिरादरियों के नेता यहां अपने बर्चस्व को साबित करने में लगे हुए थे। उन दिनों हाथरस में ब्राह्मणों का बहुत मजबूत नेता नहीं था। वर्ष 1989 में हाथरस के रामवीर ने गाजियाबाद से आकर राजनीति में सक्रियता बढ़ाई। हाथरस की लेबर कालोनी में रहकर राम मंदिर की लहर के दौरान भाजपा के रथ पर सवार हुए। इसी बीच संघ में अच्छी पकड़ बनाने के लिए अपने पैतृक गांव बामौली में आरएसएस का ओटीसी कैंप लगवाया पर प्रयास कामयाब न हुए। 1993 के चुनाव में भाजपा ने उन्हें प्रत्याशी नहीं बनाया। पार्टी की टिकट राजवीर पहलवान की मिलने के बाद रामवीर बागी हो गए। ब्राह्मणों को एकजुट करने में तो शुरू से ही जुटे थे, यही काम आया। वे ब्राह्मण नेता के रूप में उभरे। ब्राह्मणों की पंचायत में रामवीर को हाथरस सदर से निर्दलीय चुनाव लड़ाने का फैसला लिया गया। हालांकि, राम मंदिर लहर में भाजपा की जीत हुई। लेकिन, रामवीर सियासी दांव-पेच में माहिर हो गए। वह समाजवादी पार्टी के संपर्क में भी आए। समाजवादी पार्टी की बैठकों में शामिल होने लगे। हाथरस में मुलायम सिंह यादव की जनसभा भी कराई। उनके बढ़ते कद को सपा में उनके प्रतिद्वंद्वी पचा नहीं पा रहे थे। सपा में विरोध के चलते 1996 की शुरुआत में रामवीर हाथी पर सवार हो गए और हाथरस सदर विधानसभा क्षेत्र से विधायक बने। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। बसपा में रहा 25 साल का सफर

बसपा में रामवीर उपाध्याय के पास अहम जिम्मेदारियां रहीं। मायावती के वह करीबी रहे। 1996 में पहली बार हाथरस सदर से विधायक बनने के बाद 1997 में हाथरस को अलग जनपद का दर्जा दिलाने में रामवीर उपाध्याय की अहम भूमिका रही। इसके बाद से ब्राह्मण ही नहीं, बल्कि बसपा के कैडर वोट में भी उनकी पकड़ मजबूत हो गई। वे परिवहन और चिकित्सा शिक्षा, ग्रामीण समग्र विकास जैसे महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री रहे। इसके बाद उन्होंने कई वर्ष ऊर्जा मंत्रालय भी संभाला। वर्ष 2002 और 2007 में हाथरस सदर, 2012 में सिकंदराराऊ और 2017 से वह सादाबाद से विधायक बने। बसपा ने उन्हें लोक लेखा समिति का सभापति भी बनाया। विधानमंडल दल में मुख्य सचेतक भी रहे। इस दौरान रामवीर का पूरा परिवार राजनीति में आ चुका था। पत्नी सीमा उपाध्याय लगातार दो बार 2002 और 2007 में जिला पंचायत अध्यक्ष बनीं। वर्ष 2009 में वह फतेहपुर सीकरी से सांसद का चुनी गईं। उन्होंने सिने स्टार राज बब्बर को हराया था। वर्तमान में सीमा भाजपा से जिला पंचायत अध्यक्ष हैं। रामवीर उपाध्याय के छोटे भाई विनोद उपाध्याय 2015 में जिला पंचायत अध्यक्ष बने। दूसरे भाई मुकुल उपाध्याय 2005 में इगलास के उपचुनाव में बसपा से विधायक बने। इसके अलावा अलीगढ़ मंडल से एमएलसी और राज्य सेतु निगम के निदेशक भी रहे। वे वर्तमान में भाजपा में हैं। सबसे छोटे भाई रामेश्वर वर्तमान में मुरसान के ब्लाक प्रमुख हैं। बसपा की वजह से भाइयों में दरार

बसपा सुप्रीमो मायावती ने वर्ष 2018 में रामवीर उपाध्याय के छोटे भाई मुकुल उपाध्याय को पार्टी से निष्कासित कर दिया था। इसके बाद दोनों भाइयों में विवाद पैदा हो गया। 2019 में मुकुल उपाध्याय भाजपा में चले गए। 2019 में ही बसपा ने रामवीर उपाध्याय को निलंबित कर दिया। इसके बाद उनके पुत्र चिराग उपाध्याय भाजपा में शामिल हुए और पंचायत चुनाव 2021 के बाद पत्नी सीमा उपाध्याय, भाई रामेश्वर ने भी भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली। मंडल में अकेले सीट निकाल पाए थे

रामवीर उपाध्याय वर्ष 2017 में मोदी लहर में बसपा से सादाबाद सीट पर चुनाव जीतने में कामयाब हुए थे। अलीगढ़ मंडल में बसपा से केवल रामवीर की ही जीत हुई थी। जाट लैंड सादाबाद में रालोद-सपा गठबंधन की मजबूत स्थिति को देखते हुए रालोद प्रत्याशी के सामने भाजपा रामवीर को मजबूत प्रत्याशी के रूप में देख रही है। वहीं ब्राह्मण चेहरा होने के नाते आगरा, अलीगढ़, मथुरा, बुलंदशहर समेत अन्य सीटों पर भी फायदा लेने की सोच रही है। हालांकि खराब स्वास्थ्य के कारण व्हील चेयर पर रामवीर किस प्रकार विजय रथ पर सवार होंगे, यह देखना दिलचस्प होगा।


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