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बूढ़ी हड्डियों में शिक्षा के उजियारे का जोश

86 वर्षीय सुखवीर सिह पेंशन के पैसे से गरीब बचों को उपलब्ध कराते हैं पाठ्य सामग्री और कपड़े।

By JagranEdited By: Published: Thu, 20 Jan 2022 06:34 AM (IST)Updated: Thu, 20 Jan 2022 06:34 AM (IST)
बूढ़ी हड्डियों में शिक्षा के उजियारे का जोश
बूढ़ी हड्डियों में शिक्षा के उजियारे का जोश

संसू, हाथरस : बेहतर शिक्षा सफलता की गारंटी है मगर तमाम बच्चे प्रतिभा होते हुए भी संसाधनों के अभाव में पढ़ाई बीच में ही छोड़ देते हैं। 86 वर्षीय सेवानिवृत्त शिक्षक सुखवीर सिंह ऐसे बच्चों की बैसाखी बन रहे हैं। निराश-हताश बच्चों में जोश भरकर शिक्षा का उजियारा फैला रहे हैं। उनका जज्बा और जोश आज भी बरकरार है।

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आमतौर पर सेवानिवृत्ति के बाद की उम्र आराम के लिए मानी जाती है, मगर सुखवीर सिंह ऐसे नहीं हैं। वे लगातार शिक्षा का अलख क्षेत्र में जगाए हुए हैं। अब वे ऐसे गरीब बच्चों को शिक्षा देने और दिलाने के लिए चुनते हैं जिनमें प्रतिभा और मेहनत का जज्बा तो होता है मगर संसाधनहीन होते हैं। उन्हें प्रोत्साहित कर शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ रहे हैं।

29 वर्ष तक दी सेवाएं

सुखवीर सिंह मूल रूप से बोदरा, मेरठ के मूल निवासी हैं। उनकी नियुक्ति शिक्षक के रूप में बिसावर के एसबीजे इंटर कालेज में हुई थी। यहां पर बच्चों को इतिहास व अंग्रेजी पढ़ाते थे। इस विद्यालय में उन्होंने 29 वर्ष तक अध्यापन कार्य किया।

सेवानिवृत्ति के बाद भी सेवा

बिसावर के एसबीजे इंटर कालेज से सुखवीर सिंह वर्ष 2001 में सेवानिवृत्त होने के बाद भी घर नहीं बैठे। उन्होंने सरस्वती विद्या मंदिर मालवीय नगर, मां भगवती इंटर कालेज खमानी गढ़ी, सुखलाल इंटर कालेज फतेहपुरा, एसकेडी पब्लिक स्कूल पचावरी में लगातार ज्ञान की ज्योति जलाने का काम किया है। कई निजी विद्यालयों में वह बच्चों को आज भी निश्शुल्क पढ़ाने जाते हैं। 'गुरुजी' की उपाधि

बच्चों को शिक्षा देने का कार्य अभी रुका नहीं है। बच्चे तो उन्हें गुरुजी कहकर पुकारते ही हैं, अभिभावक व अन्य लोग भी अब उन्हें 'गुरुजी' ही संबोधित करते हैं। यह शब्द अब उनके लिए उपाधि जैसी है। क्षेत्र में उन्हें सुखवीर के नाम से कम, गुरुजी के नाम से अधिक लोग जानते हैं। सेवानिवृत्ति के बाद वह सादाबाद के गांव नगला मदारी में आवास बनाकर रह रहे हैं। गरीबों के खेवनहार

शिक्षा से कोई वंचित न रहे, इसपर पूरा ध्यान देते हैं। आसपास के गरीब बच्चों को पूरी निष्ठा से पढ़ाते हैं। गरीब बच्चों के लिए पाठ्य सामग्री व कपड़े भी अपनी पेंशन से खरीदकर देते हैं। उनके एक पुत्र व पुत्रवधू भी शिक्षक हैं। वह अपने पिता के कार्य में हमेशा सहयोगी के रूप में खड़े नजर आते हैं। इनका कहना है

शिक्षा मेरे लिए जीवनयापन का साधन मात्र नहीं है। यह मेरे लिए सेवा भाव है। शिक्षा को घर-घर तक पहुंचाना ही मेरा लक्ष्य रहा है। बिना किसी भेदभाव के यह कार्य मैं अंतिम सांस तक करता रहूंगा। इसमें मुझे सच्चे सुख की अनुभूति होती है।

-सुखवीर सिंह, सेवानिवृत्ति शिक्षक


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