फीकी हो रही हसायन के इत्र की महक
संरक्षण इंफ्रास्ट्रक्चर और मूलभूत सुविधाओं के अभाव में पिछड़ रहा उद्योग प्वाइंटर- 18 प्रतिशत है वर्तमान में इत्र पर जीएसटी 5 प्रतिशत जीएसटी स्लैब की मांग कर रहे कारोबारी 3 हजार से अधिक परिवार कर रहे गुलाब की खेती 15 हजार से अधिक प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं इस कारोबार से 1500 से अधिक मजदूर काम कर रहे हैं इत्र फैक्ट्रियों में 20 करोड़ रुपये का कारोबार है हसायन में इत्र का
संवाद सूत्र, हाथरस : देशभर में महकने वाले हसायन के इत्र उद्योग की महक अब फीकी पड़ने लगी है। यह उद्योग अब सीमित होता जा रहा है। बढ़ती प्रतिस्पर्धा, इंफ्रास्ट्रक्चर, ट्रांसपोर्टेशन और जीएसटी के कारण इस उद्योग की पहले जैसी पहचान नहीं रह गई है। बाजार में गुलाब के फूल की जो कीमत मिल रही है। इससे न केवल खेती का रकबा कम हुआ है बल्कि इत्र उद्योग भी सीमित हो गया है। इत्र उद्योग को बरकरार रखने के लिए बड़े संरक्षण की दरकार है। इत्र कारोबार :
सिकंदराराऊ तहसील के कस्बा हसायन में सर्वाधिक गुलाब की खेती होती है। यहां पर करीब दो दर्जन इत्र फैक्ट्रियां हैं। वर्ष 2015 तक यहां पर 750 देग इत्र तैयार करने के लिए हुआ करती थीं, लेकिन अब यहां देगों की संख्या 400 तक ही सीमित रह गई हैं। उचित दाम न मिल पाने के कारण फूल का उत्पादन कम हो रहा है, जिसका सीधा असर कारोबार पर पड़ रहा है। इत्र बनाने का चालीस दिन का सीजन होता है। इसका कारोबार करी 20 करोड़ रुपये है। फूल के भाव गिरने से कारोबार ठप
गुलाब के फूल की बिक्री का सीजन मार्च के अंत से शुरू होता है और मई के मध्य तक चलता है। पिछले साल 5800 रुपये प्रति मन के हिसाब से गुलाब के फूलों का भाव खुला था, लेकिन बाद में यह भाव गिरकर चार हजार रुपये हो गया है। फूल का भाव गिरने से किसान अन्य फसलों को प्राथमिकता देते हैं और इसका सीधा असर कारोबार पर पड़ता है।
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आधुनिकी करण हो तो फले-फूले कारोबार
टूटने के बाद फूल 24 से 48 घंटे में खराब हो जाता है। ऐसे में किसानों को फूलों की बिक्री में बहुत समस्या आती है। मंडी परिसर में फूलों को संरक्षित रखने के लिए कोल्ड रूप बनाए जाएं तो किसानों को फसल का वाजिब दाम मिल सकते हैं और फूलों का कारोबार बढ़ सकता है। प्रोडक्शन और ब्रांडिग की जरूरत
हसायन की फैक्ट्रियों में गुलाब का इत्र और रूह तैयार होती है। सबसे ज्यादा जरूरत इन प्रोडक्ट के ब्रांडिग और प्रोडक्शन की है। अब इत्र की जगह लोग सेंट और डिओ को प्राथमिकता देते हैं। अगर रूह के प्रोडक्शन और ब्रांडिग को सरकार बढ़ावा दे तो यह कारोबार कुछ ही वर्ष में आसमान छुएगा। कन्नौज में मिलता नाम
यहां तैयार होने वाले कच्चे माल को कन्नौज में ले जाया जाता है। वहां से इत्र फैक्ट्री वाले इसे अपना ब्रांडेड नाम देते हैं। हसायन में तैयार होने वाले इत्र की खुशबू का बड़ा मुनाफा इत्र की फैक्ट्री वाले वसूलते हैं। यहां पर मुंबई, कानपुर, मध्य प्रदेश के व्यापारियों ने संपर्क करना शुरू कर दिया है। इन गांवों में गुलाब की खेती
कानऊ, अंडौली, इटरनी, वदनपुर, गोपालपुर, सूआ मोहनपुर, नवीपुर, हैदलपुर, वकायन, बपंडई, पोरा, भुर्रका, जरैरा, भैंकुरी, भितर, रति का नगला, छीतीपुर व हसायन में इसकी खेती होती है। आज से तीन साल पहले खेती का दायरा पांच सौ हेक्टेयर था जो निरंतर कम होता जा रहा है। वर्जन -
इत्र पर 18 प्रतिशत जीएसटी है। इससे कारोबार प्रभावित हुआ है। इत्र पर जीएसटी की सरकार दर कम करे तो यह उद्योग और रफ्तार पकड़ेगा।
रिकू सिंह, इत्र कारोबारी जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा है इत्र की मांग कम हो रही है। उसका कारण है सरकार का संरक्षण न होना। सरकार इसके प्रोडक्शन और ब्रांडिग को बढ़ावा दे तो कारोबार रंग लाएगा।
-हरिओम सिंह उर्फ बंटी, इत्र कारोबारी।
आगामी बजट में व्यापार को संरक्षण के साथ जीएसटी कम करने के बाद ही इस व्यापार में सुधार हो सकता है। यही नहीं बुनियादी सुविधाओं पर भी सरकार को बजट देना चाहिए।
- मनु जादौन, इत्र व्यवसायी। फूल को बचाने के लिए कोल्ड रूम स्थापित किए जाएं ताकि गुलाब की खेती का रकबा बढ़ स के। ओबरा होने वाली फसल को सुरक्षित रखा जा सके।
-सत्यनारायण अग्रवाल, इत्र व्यवसायी