गोवा की चमक से अच्छा है मेरा गांव
गांव की माटी में रच-बस रहे हैं दूसरे शहरों से अपने घर लौटे लोग खुशबू माटी की कोई कर रहा है मनरेगा में मजदूरी तो कोई दूसरे कामों में है व्यस्त गांवों में थोड़ी बहुत सक्रियता भी कमाई के साथ दे रही संतोष
जागरण संवाददाता, हाथरस: भले ही देश लॉकडाउन से अनलॉक-2 में बढ़ गया हो, मगर अभी दूसरे शहरों में काम पटरी पर नहीं लौटा है। लॉक डाउन के दौरान गैर शहरों से घर लौटे मजदूर कहते हैं कि शहर में कमाई थी मगर परिवारों का प्यार नहीं था। सच्ची खुशियां तो अपने गांव की मिट्टी में है। गोवा से आए एक मजदूर का कहना है कि गोवा की वादियों से मेरा गांव अच्छा है। गोवा में भागमभाग भरी जिदगी थी, मगर गांव में आकर सुकून मिला है। अगर माहौल सामान्य होगा तो फिर लौट चलेंगे। लॉकडाउन से लेकर अब तक ऑन रिकार्ड आठ हजार से अधिक मजदूर गैर शहरों से हाथरस लौट आए हैं।
कोई अकेला मजदूरी करने गया था तो कोई परिवार के साथ, मगर लॉकडाउन होने पर काम धंधा चौपट हो गया। जिन कारखानों में काम कर रहे थे वे भी बंद हो गए सो गांव लौटना मजबूरी हो गया। हाथरस में अब तक लौटे मजदूरों में सबसे ज्यादा दिल्ली, नोएडा, गुजरात और महाराष्ट्र में काम करते थे। इनका कहना है
मैं पिछले 12 साल से गोवा में था। वहां गोवा एक्सप्रेस में वेंडर था, मगर वहां लॉकडाउन के कारण आना पड़ा। गांव में लौटने की खुशी है। मनरेगा में काम के साथ साथ मंडी में भी काम मिल गया, तब बुरा क्या है।
-विष्णु कुमार, नयाबांस मुरसान। मैं नोएडा की एक कंपनी में नौकरी करता था, मगर लॉकडाउन के कारण गांव लौटना पड़ा। अब मुरसान में बिजली से संबंधित कार्य करके परिवार पाल रहा हूं। उम्मीद है कि ये महामारी खत्म होगी तो काम भी मिलेगा।
विष्णु तिवारी, मुरसान कई साल से नोएडा में होटल चला रहा था, मगर लॉक डाउन के कारण गांव वापस आना पड़ा। गांव में ही मेहनत करके परिवार पाल रहा हूं। ये तो सच है कि शहरों से अपना गांव अच्छा है, मगर पेट के लिए काम भी जरूरी है।
-कमल भारद्वाज, मुरसान
वर्जन
हम लगातार बाहर से मजदूरों को काम दे रहे हैं। मजबूरी है कि साल में 100 दिन का ही काम हम सरकार के निर्देश पर दे पा रहे हैं। मनरेगा में मजदूरी के अलावा सरकार राशन से लेकर नकदी खाते में पहुंचा कर पूरी मदद कर रही है। तीन महीने और राशन मिलने का एलान कर दिया गया है।
-अश्वनी कुमार मिश्रा, परियोजना निदेशक ग्राम्य विकास अभिकरण हाथरस।