लॉकडाउन लोगों को रोजगार दे रही मूंग की खेती
संवाद सहयोगी हाथरस दिल्ली हरियाणा छोड़कर आए मजदूरों के लिए मूंग की फसल रोजगार का साधन बन गई है।
प्रतिदिन मजदूरी पर किसान तुड़वा रहे हैं मूंग, गांव में लोगों को मिल रहा रोजगार
संवाद सहयोगी, हाथरस: दिल्ली, हरियाणा छोड़कर आए मजदूरों के लिए मूंग की फसल रोजगार का साधन बन गई है। किसानों को भी अब मजदूरों के लिए इधर-उधर भटकना नहीं पड़ रहा है। इस समय पुरुष व महिला दोनों ही मजदूरी पर मूंग तोड़ने का कार्य गांवों में ही करके अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं।
वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के चलते लगे लॉकडाउन ने लोगों की दिनचर्या ही बदल कर रख दी है। खेती किसानी काम से दूर रहने के लिए लोग दिल्ली, हरियाणा, पंजाब आदि बड़े-बड़े शहरों में जाकर फैक्ट्री आदि में कार्य करते थे। परिवार के साथ वहीं उनका रहना हो रहा था। कोरोना के चलते काम-धंधे बंद हो जाने से लोगों को अपने गांव आना पड़ा। गांव तो गांव ठहरे। यहां पर पेट पालने के लिए मेहनत-मजदूरी के लिए खेतों के सिवा कुछ नहीं होता। ऐसे में मूंग की फसल लोगों के लिए रोजगार का अच्छा साधन बन गई है। फसल पकने के बाद उसकी फलियों की तुड़ाई मजदूरी पर यह बेरोजगार कर रहे हैं।
दो सौ से ढाई सौ रुपये की है मजदूरी
किसानों के यहां मजदूरी भला शहरों की तरह नहीं होती है। इस समय मूंग की फसल में किसानों को मजदूरी पर फलियां तुड़वानी पड़ती हैं। इनका रेट अलग-अलग होता है। पूरे दिन में दो सौ से ढाई सौ रुपये एक मजदूर को मिलते हैं। महिला को पचास रुपये कम दिए जाते हैं। कहीं-कहीं आधे-आधे में फलियां तुड़वाई जा रही हैं।
पहले मूंग की फसल करने से बचते थे किसान
मूंग की फसल ऐसी है कि इसे किसान अपने दम पर नहीं कर सकता। इसमें मजदूर की जरूरत रहती है। यदि फली समय पर नहीं टूटी तो वह खेत में ही बिखर जाती है। मजदूर नहीं मिलने से अधिकतर किसान इस फसल को नहीं करते थे। इस बार करीब डेढ़ गुना फसल अधिक हुई है। जनपद में चार सौ की बजाय छह सौ हेक्टेयर में मूंग की खेती की गई है।
इनका कहना है
लॉकडाउन के चलते कामधंधे बंद चल रहे हैं। ऐसे में पेट पालना भी मुश्किल हो रहा है। दिल्ली जैसे बड़े शहरों में भी रोजगार बंद हो जाने से अपने गांव आना पड़ा। यहां पर मूंग की फसल में मजदूरी कर रहे हैं।
- मायादेवी सहपऊ गांव में कोई बड़ा काम कहां मिलता है। काम के लिए ही लोग शहर जाते हैं। पर कोरोना ने फरीदाबाद शहर से यहां वापस गांव भेज दिया। यहां पर मूंग तोड़ने के दो सौ रुपये मिल रहे हैं। परिवार का खर्च चल जाता है।
- भगवान सिंह पीहुरा गांव में काम धंधा मिलता नहीं है। इसीलिए खेतों में मूंग तोड़ रहे हैं। इससे बच्चों को गुजारा तो हो रहा है। भले ही मजदूरी कम है। पर जब तक लॉक डाउन नहीं खुलता यह तो करना ही है।
- धनेंद्र पाल मजदूर हसायन दिल्ली में फैक्ट्री में काम करते थे। अब यहां अपने गांव आ गए है। यहां पर खेती हारी का काम मिलता है। ऐसे में मूंग की तुड़ाई हो रही है। दो सौ रुपये मजदूरी पड़ जाती है। गुजारा करना पड़ रहा है।
- हरिओम मजदूर हसायन मूंग की खेती आय का अच्छा साधन है। पकने के बाद इसकी फलियों को तुरंत तोड़ना पड़ता है। इसके लिए मजदूर भी अब आसानी से कम मजदूरी पर मिल रहे हैं। किसानों ने इस बार मूंग की खेत अधिक की है।
- यतेंद्र सिंह जिला कृषि रक्षा अधिकारी