संसाधनों के अभाव में थाईलैंड नहीं जा सका वेटलिफ्टर पूजेंद्र
पांच बार राष्ट्रीय प्रतियोगिता में जमा चुका है हुनर की धाक
किशोर वाष्र्णेय, हाथरस : यह कहानी है हाथरस के सासनी निवासी भारोत्तोलक पूजेन्द्र ¨सह की, जिसके अंदर प्रतिभा तो कूट-कूटकर भरी है, लेकिन संसाधनों के अभाव में वह बेहतर मुकाम से वंचित है। राष्ट्रीय स्तर पर उसने पांच बार वेटलि¨फ्टग में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है, लेकिन संसाधनों के अभाव के चलते पिछले साल नवंबर में थाईलैंड में होने वाली अंतरराष्ट्रीय भारोत्तोलक व शक्ति प्रदर्शन प्रतियोगिता में शामिल नहीं हो पाया। इस राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी का कहना है वह भी इंटरनेशनल वेटलिफ्टर मीराबाई चानू और पूनम यादव की तरह हाथरस का नाम विश्व पटल पर दर्ज कराना चाहता है, लेकिन आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण लगातार उसका सपना दम तोड़ रहा है। खिलाड़ी का दावा है कि यदि उसे प्रशासन और खेल मंत्री का सहयोग मिले तो निश्चित ही वह हाथरस का नाम रोशन करेगा।
राया रोड निवासी पेशे से किसान हरेंद्र ¨सह का बेटा पूजेंद्र ¨सह (22) पांच बार नेशनल पॉवर लि¨फ्टग में हाथरस का नाम रोशन कर चुका है। हाल ही में उसने इंदौर व राजस्थान में आयोजित राष्ट्रीय स्तर की वेटलि¨फ्टग प्रतियोगिगता में गोल्ड मेडल जीता था। इसके अलावा उसने जयपुर (राजस्थान), औरंगाबाद (महाराष्ट्र) व केरल में भी राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में धमाकेदार उपस्थिति दर्ज कराई थी। घर में पूजेंद्र का कमरा मेडल व प्रमाणपत्रों से सजा है, लेकिन परिवार पूजेंद्र के सपनों को पूरा करने में सक्षम नहीं है। वर्जन-
नवंबर में थाईलैंड में हुई अंतरराष्ट्रीय भारोत्तलक मुकाबले शक्ति प्रदर्शन का मौका नहीं मिल पाया। अभ्यास के लिए मशीनें दिलवाने में परिवार सक्षम नहीं है। 12 स्वर्ण, आठ रजत, छह कांस्य पदक जीत चुका हूं, मगर अभी बहुत कुछ करने का जज्बा है। विश्व पटल पर हाथरस का नाम रोशन करना चाहता हूं।
-पूजेंद्र ¨सह, भारोत्तोलक