जीर्णोद्धार की चादर में ढका घंटाघर का इतिहास
जासं हाथरस भले ही शहर के बीचोबीच घंटाघर की सुइयां थम गई हों और घंटा न बज रहा हो लेकिन इसकी ऊंची इमारत शहर की पहचान के साथ इतिहास की गवाही आज भी देती है।
नगर पालिका द्वारा कराए जा रहे कार्य में शिलालेख पढ़ने में नहीं आ रहा जासं, हाथरस : भले ही शहर के बीचोबीच घंटाघर की सुइयां थम गई हों और घंटा न बज रहा हो, लेकिन इसकी ऊंची इमारत शहर की पहचान के साथ इतिहास की गवाही आज भी देती है। इस धरोहर का अस्तित्व बचाए रखने के लिए जीर्णोद्धार के चक्कर में इसके मूल स्वरूप से छेड़छाड़ की जा रही है।
घंटाघर की इमारत तारीख के हिसाब से करीब 73 साल पुरानी लगती है, जो कि उसके शिलालेख पर धुंधली दिखाई रही है। आरंभ वर्ष 1947 तक समझ में आ रहा है। इसके बाद कब तक निर्माण पूरा हुआ है, साफ पढ़ने में नहीं आ रहा है। तत्कालीन नगर पालिका बोर्ड के चेयरमैन रहे हीरामल वर्मन के कार्यकाल का बना हुआ है। सरंक्षण के अभाव के अभाव में इसमें दरारें पड़ गई और बदरंग होने लगा। इसका अस्तित्व बचाने के लिए नगर पालिका ने इसका जीर्णोद्धार शुरू कराया है।
जीर्णोद्धार से मिट रही पहचान
घंटाघर की इमारत की फाउंडेशन को चारों तरफ मजबूती के लिए इसमें सरिया के अलावा सीमेंट, बदरपुर ओर रोड़ी से मजबूती दी जा रही है। इस मजबूती के चक्कर घंटाघर की इमारत का इतिहास बताता शिलालेख भी दबाया जा रहा है।
मूल स्वरूप से छेड़छाड़ क्यों?
किसी भी एतिहासिक इमारत का मूल स्वरूप बनाए रखने जरूरी है ताकि इनकी पहचान बनी रहे। ठीक उसी तरह इस घंटाघर की इमारत का मूल स्वरूप बनाए रखना जरूरी है। जिस तरह का बना हुआ है, उसी हिसाब से बनाया जाना चाहिए। वर्जन
घंटाघर के जीणोद्धार का काम अभी पूरा नहीं हुआ है। इसका मूल स्वरूप बनाए रखने की पूरी कोशिश की जाएगी।
आशीष शर्मा, चेयरमैन नगर पालिका