आत्मनिर्भर भारत की तस्वीर बुलंद कर रहा जिले का हैंडलूम कारोबार
हाथरस विषम परिस्थितियों में भी हाथरस का हैंडलूम कारोबार आत्मनिर्भर भारत की आवाज को बुलंद कर रहा है। यह बात अलग है कि हालातों के मकड़जाल से इसमें वैसी ख्याति नहीं मिल पाई जैसी पड़ोसी जनपदों को मिल रही है।
केसी दरगड़, हाथरस :
विषम परिस्थितियों में भी हाथरस का हैंडलूम कारोबार आत्मनिर्भर भारत की आवाज को बुलंद कर रहा है। यह बात अलग है कि हालातों के मकड़जाल से इसमें वैसी ख्याति नहीं मिल पाई जैसी पड़ोसी जनपदों को मिल रही है।
हथकरघा : शहर के बालापट्टी मोहल्ले में घर-घर में दिखने वाले हथकरघा अब कम होने लगे हैं। इस काम से जुड़े लोगों की सरकार से उम्मीद तो बहुत है, मगर पूरी एक भी नहीं हो पा रही। उद्यमियों की मानें तो उन्हें प्रोत्साहन का सहारा मिले तो इस काम को फिर से बुलंदियों तक ले जा सकते हैं। तब बेहतर था कारोबार :
30 साल पहले हाथरस में एक जाति विशेष से जुड़े 1000 परिवारों की रोजी रोटी हैंडलूम कारोबार से जुड़ी थी। घर-घर में गलीचे, कालीन, पैरदान, दरी आदि तैयार करते थे। यह माल यूपी के अलावा महाराष्ट्, दिल्ली, राजस्थान, केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक आदि स्थानों पर जाता था। करीब सौ करोड़ का कारोबार था।
अब की स्थिति : बालापट्टी में हैंडलूम कारोबार अब भी चल रहा है। मगर बमुश्किल गिने चुने परिवार इस काम से जुड़े हैं, जोकि आज भी हाथ से गलीचे, कालीन, पैरदान व दरी आदि तैयार करते हैं। बाहर माल अब भी जा रहा है लेकिन हैंडलूम के उत्पादों की प्रतिस्पर्धा में पानीपत के हैंडलूम कारोबार ने इस पीट दिया। वहां स्थानीय स्तर पर उन्हें सरकारी प्रोत्साहन मिला और आधुनिक मशीनें खरीदकर नई डिजाइन का माल बाजार में उतारा गया। इसलिए घर-घर चलने वाला यहां का कुटीर उद्योग सीमित लोगों के हाथ में चला गया। मदद की दरकार
लागत कम करने के लिए कच्चा माल सस्ता मिले। पॉवरलूम उद्योग की तरह सब्सिडी मिले। अपग्रेड करने की सरकार से ऋण मिले। इनका कहना है
अब पहले जैसा काम नहीं है। सरकार को हमें प्रोत्साहन देना चाहिए ताकि हम इस काम को पुराने स्तर तक ले जा सकें। पावरलूम उद्योग की तरह हमें भी सब्सिडी मिलनी चाहिए।
ललित माहौर, बालापट्टी इस काम के लिए सरकार की मदद की जरूरत है। कच्चे माल की लागत लगातार बढ़ रही है। इससे मुनाफा भी कम होता जा रहा है। इसलिए काम सिमटता जा रहा है।
-रेवती प्रसाद, बालापट्टी मैंने भी गलीचे, दरी व पैरदान बनाने का काम शुरू किया था। यह काम पूंजीपतियों के हाथों में चले जाने से ठप हो गया। इसके कारण बंद करना पड़ा।
रामप्रकाश, बालापट्टी