भूखों को कराते हैं भोजन, खिलता है तन-मन
हाथरस में ढाई साल से काम कर रही है चार रोटी भूखे पेट के नाम की संस्था समाजसेवा हर रोज भूखों को बांटने निकलती है रोटी-सब्जी के पैकेट लेकर टीम अब तो कुछ लोग अपने बर्थ-डे आदि पर भी भोजन उपलब्ध कराते
योगेश शर्मा, हाथरस :
हाथरस में जोश से भरे युवाओं की एक ऐसी टीम भी है जो भूखों को भोजन खिलाए बिना चैन से नहीं सोती। इन युवाओं ने एक संस्था बनाई है जिसका नाम रखा 'चार रोटी भूखे पेट के नाम।' टीम के सदस्यों का कहना है कि भूखों को भोजन खिलाने पर तन-मन प्रफुल्लित हो जाता है और रात में चैन से नींद आती है। भोजन पाकर बुजुर्ग जब सिर पर हाथ रखकर बोलते हैं, 'भूखे गरीब की ये ही दुआ है, औलाद वालों फूलो-फलो' तो मन को विशेष संतुष्टि मिलती है। भोजन का अधिकार, कर रहे साकार
सही मायने में हाथरस की यह टीम भोजन के अधिकार को साकार कर रही है। अब से करीब ढाई साल पहले गिने-चुने दोस्तों ने एक टीम इसलिए तैयार की थी कि हर रविवार को कुछ खाने के पैकेट गरीबों के बीच बांटे जाएं, जिससे गरीब भूखे पेट न सोएं।
फिर तीन महीने पहले इन दोस्तों ने मीटिंग कर फिर से चर्चा की कि भूखे लोगों को क्या सिर्फ रविवार को ही भूख लगती है? बाकी दिनों के लिए भी इंतजाम होना चाहिए। इसके बाद शहर के कुछ और दोस्तों को टीम से जोड़ा। जो भी सदस्य जुड़ता उस पर भोजन का एक से दो पैकेट लाने का लक्ष्य रखा।
ऐसे आया भूखों का ख्याल :
संस्था के प्रमुख सदस्य अरुण उपाध्याय बताते हैं कि एक बार एक अफसर ने सुनाया कि मेरठ शहर में एक बड़े अधिकारी का बेटा रोजाना एक गरीब महिला को सुबह-शाम रोटी खिलाने जाता था। इसके बाद उसने कई और गरीबों को भोजन खिलाना शुरू कर दिया था। इस संस्मरण को सुनने के बाद हम लोगों में भूखों को भोजन खिलाने की प्रेरणा जागी। पिछले 96 दिनों से टीम हर शाम छह बजे शहर के ऐसे स्थानों पर निकलती है जहां दिव्यांग, बुजुर्ग और भूखे लोग भोजन की तलाश में खुले आसमान के नीचे बैठे रहते हैं। ऐसे लोगों को न सिर्फ रोटी-सब्जी बल्कि कंबल आदि भी ठंड के दिनों में बांट रहे हैं। ये हैं टीम के सदस्य :
अरुण के अलावा अमित कुमार, पम्मी शर्मा, संदीप पचौरी, राजवीर सिंह प्रधान, राहुल खंडेलवाल, तनुज अग्रवाल, कुलदीप शर्मा, अतुल उपाध्याय, देवकीनंदन, शोमेंद्र शर्मा, प्रियांशु कुशवाह, देवकीनंदन, चेतन राठौर, भरत वर्मा हैं। मां-बाप से भी मिली प्रेरणा
अरुण उपाध्याय बताते हैं कि जब भोजन के पैकेट गरीबों को टीम के साथ बांटने जाता तो माता-पिता काफी खुश होते हैं। उन्होंने कभी नहीं रोका। पत्नी ने भी पूरा सहयोग किया। अरुण के अनुसार बर्थ-डे और शादी की सालगिरह के मौके पर लोग भोजन के पैकेट लेकर आते हैं, जिनको हम गरीबों के बीच बांटते हैं। टीम में वही लोग हैं तो स्वेच्छा से सहयोग करते हैं। इसमें चंदा किसी से मांगने नहीं जाते।