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जीवन के लिए पर्यावरण संरक्षण है बहुत जरूरी

ईश्वर ने हमें प्रकृति की सारी चीजें मुफ्त में दीं ताकि हम उनका यथा उपयोग कर सकें पर हमने विकास और आधुनिकता के नाम पर प्रकृति का ऐसा दोहन किया कि आज हमें उसकी बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 21 Oct 2021 01:09 AM (IST)Updated: Thu, 21 Oct 2021 01:09 AM (IST)
जीवन के लिए पर्यावरण संरक्षण है बहुत जरूरी
जीवन के लिए पर्यावरण संरक्षण है बहुत जरूरी

हाथरस : ईश्वर ने हमें प्रकृति की सारी चीजें मुफ्त में दीं, ताकि हम उनका यथा उपयोग कर सकें, पर हमने विकास और आधुनिकता के नाम पर प्रकृति का ऐसा दोहन किया कि आज हमें उसकी बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है। जल, शुद्ध वायु, पेड़-पौधे और न जाने कितनी चीजें जो प्रकृति का मुफ्त उपहार थीं, आज खरीद रहे हैं और भविष्य के लिए डर भी रहे हैं कि कहीं वह खत्म न हो जाए। डरना भी जरूरी है, क्योंकि कोई भी चीज असीमित नहीं होती। सब कुछ नश्वर है और एक दिन उसे खत्म हो ही जाना है, इसलिए संरक्षण जरूरी है। पर्यावरण संरक्षण की इस सुदीर्घ एवम् अति प्राचीन परंपरा को आधुनिकता की आग ने भारी नुक्सान पहुंचाया है और दोहन, शोषण , वैभव एवं विलासिता की रीति-नीति ने पर्यावरण संरक्षण तक को संकट में डाल दिया। परिणाम यह हुआ कि आज पूरा विश्व प्राकृतिक आपदाओं का क्रूर तांडव देख रहा है।

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अपने देश की बात करें तो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 253 में पर्यावरण संरक्षण के लिए स्पष्ट दिशा निर्देश दिए गए हैं, परंतु पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 तब बना जब हमने भोपाल गैस त्रासदी से सबक लिया। मनुष्य की यही सबसे बड़ी विडंबना है कि दुर्घटना होने या संकट में आने के बाद हम सावधान होते हैं। परिणाम यह होता है की हमारा भविष्य असुरक्षित लगने लगता है।

बचपन से अनेक कहानियों ने हमेशा हम लोगों को पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रेरित किया है। आज हम फिर उस मोड़ पर खड़े हैं, जब हमें पुन: सोचने की आवश्कता है कि पर्यावरण को हमें जीवन में पहले स्थान पर रखना है या विकास को, क्योंकि विकास की कोई सीमा नहीं, नित नए अविष्कार होते रहेंगे और हम यूं ही प्रकृति को नुकसान पहुंचाते रहेंगे। और फिर हम अगली पीढ़ी से ये उम्मीद करेंगे की वह जागरूक हो और इसका संरक्षण करे।

यही परंपरा वर्षों से चली आ रही है। हर नई पीढ़ी पुरानी पीढ़ी को इसका दोष देती आई है कि पुरानी पीढ़ी ने उन्हें शुद्ध हवा, जल और प्राकृतिक समृद्धि से दूर कर दिया। कुछ तो सबक लेना ही होगा, कुछ तो कोशिश करनी ही होगी। वरना एक दिन हम ही विनाशक कहे जाएंगे। करना कुछ ज्यादा नहीं है, बस लोगों को जागरूक करना है ताकि लोग स्वयं का विनाश न करें। यदि जीवन बचाना है तो पर्यावरण के सभी तत्वों को बचाना होगा। यदि शुद्ध हवा चाहिए तो वातावरण शुद्ध रखना ही होगा। शुद्ध जल चाहिए तो पानी को प्रदूषित होने से बचाना ही होगा। पेड़-पौधे तथा उसमें रहने वाले जीव जंतु के महत्व को समझना ही होगा। एक वृक्ष को दस पुत्रों के समान महत्व देना होगा। नदियों की पुन: माता के रूप में पूजा करनी होगी ताकि हम माता के आंचल को मैला न करें। पर्यावरण संरक्षण के उपायों की जानकारी हर स्तर तथा हर उम्र के व्यक्ति के लिए आवश्यक है। पर्यावरण संरक्षण की चेतना की सार्थकता तभी हो सकती है जब हम अपनी नदियां, पर्वत, पेड़, पशु-पक्षी, प्राणवायु और हमारी धरती को बचा सकें। इसके लिए सामान्य जन को अपने आसपास हवा-पानी, वनस्पति जगत और प्रकृति उन्मुख जीवन के क्रिया-कलापों जैसे पर्यावरणीय मुद्दों से परिचित कराया जाए। युवा पीढ़ी में पर्यावरण की बेहतर समझ के लिए स्कूली शिक्षा में जरूरी परिवर्तन करने होंगे। पर्यावरण मित्र माध्यम से सभी विषय पढ़ाने होंगे, जिससे प्रत्येक विद्यार्थी अपने परिवेश को बेहतर ढंग से समझ सके। विकास की नीतियों को लागू करते समय पर्यावरण पर होने वाले प्रभाव पर भी समुचित ध्यान देना होगा। तो आइए जल, जंगल और जमीन के लिए कुछ सोचें कुछ करें और कुछ और करने का संकल्प लें, ताकि इनके और मानव जाति के अस्तित्व के जद्दोजहद को मिटने से बचा सकें।

-डा. विनोद चंद्र शर्मा, प्रधानाचार्य, सेकसरिया सुशीला देवी पब्लिक स्कूल, हाथरस।


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